Jagannath Puri Rath Yatra 2025 : जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा एक बेहद पवित्र और दिव्य उत्सव है, जिसमें भगवान श्रीजगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने रथों पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देने नगर भ्रमण पर निकलते हैं. इस भव्य उत्सव के दौरान एक अत्यंत श्रद्धास्पद और रहस्यमयी परंपरा निभाई जाती है, जिसे “छेड़ा पाहरा” कहा जाता है, जिसमें रथ मार्ग को सोने की झाड़ू से बुहारा जाता है. आइए जानें इस परंपरा का धार्मिक रहस्य:-

– भगवान के सेवक होने का प्रतीक है यह सेवा
रथ यात्रा के दौरान उड़ीसा के गजपति राजा स्वयं सोने की झाड़ू लेकर रथों के सामने रास्ता साफ करते हैं. यह कार्य यह दर्शाता है कि भगवान के समक्ष सबसे बड़ा राजा भी केवल एक दास है. यह विनम्रता की परम अभिव्यक्ति है, जहां सांसारिक पद और वैभव तुच्छ हो जाते हैं.
– भक्ति में समर्पण और शुद्धि का प्रतीक
झाड़ू लगाना एक प्रतीकात्मक कार्य है, जो यह दर्शाता है कि भगवान के मार्ग को शुद्ध और पवित्र करना भक्त का कर्तव्य है. सोने की झाड़ू न केवल भौतिक रूप से रास्ता साफ करती है, बल्कि यह मन और आत्मा की शुद्धि का भी संदेश देती है – कि जब प्रभु हमारे जीवन में पधारें, तो हमारा अंत:करण निर्मल हो.
– समानता और भक्तिरस की भावना
जब राजा स्वयं झाड़ू लगाते हैं, तो यह एक गहन संदेश देता है कि ईश्वर की सेवा में सब समान हैं – कोई ऊंच-नीच नहीं. भक्त और राजा, अमीर और गरीब, सब प्रभु की लीला में समान सहभागी हैं. यह परंपरा सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक एकता का संदेश देती है.
– धार्मिक अनुष्ठान का भाग और शुभता का आह्वान
छेड़ा पाहरा केवल प्रतीक नहीं, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान भी है, जिससे यात्रा का शुभारंभ होता है. सोने की झाड़ू से रास्ता बुहारना दिव्यता और सौभाग्य का आह्वान करता है. यह विश्वास है कि इस सेवा से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और भगवान की कृपा सहज प्राप्त होती है.
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जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान सोने की झाड़ू से मार्ग की सफाई न केवल एक प्राचीन परंपरा है, बल्कि यह भक्ति, समर्पण, सेवा और ईश्वरीय भाव को जीवंत करती है. यह हमें सिखाती है कि ईश्वर के मार्ग में सेवा सबसे बड़ा धर्म है