Jagannath Rath Yatra 2025: निःस्वार्थ भक्ति और अटूट श्रद्धा का इससे सुंदर उदाहरण और क्या हो सकता है कि भक्त अपने ईश्वर को एक नन्हे बालक की तरह मानकर उनकी सेवा करते हैं, जब वे ‘बीमार’ हो जाते हैं. भगवान जगन्नाथ को स्नान पूर्णिमा के बाद सर्दी लगने की मान्यता है और तभी से शुरू होती है उनकी विशेष सेवा—बिल्कुल एक रोगी शिशु की तरह. उन्हें इस दौरान देसी जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा पिलाया जाता है, और भोजन में केवल हल्के मौसमी फल और परवल का रस दिया जाता है.
मंदिर के पट बंद
भक्त मानते हैं कि ज्येष्ठ पूर्णिमा से अमावस्या तक भगवान अस्वस्थ रहते हैं और मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं. इस अवधि में कोई विशेष पकवान नहीं, केवल औषधीय भोग चढ़ाया जाता है. लगभग 15 दिन की इस सेवा और उपचार के बाद, भगवान पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथयात्रा पर निकलते हैं, जहां वे अपनी मौसी रोहिणी देवी से मिलने गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं.
108 कलशों से जलाभिषेक
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार राजा इंद्रद्युम्न भगवान की मूर्ति बनवा रहे थे. शिल्पकार प्रतिमा को अधूरा छोड़ गए, जिससे राजा दुखी हो उठे. तब भगवान स्वयं प्रकट हुए और कहा कि वे इसी अधूरे रूप में बालस्वरूप में विराजमान होंगे. उन्होंने 108 कलशों से जलाभिषेक का आदेश दिया—जो ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन था. तभी से माना जाता है कि कुंए के ठंडे जल से स्नान के कारण भगवान को जुकाम हो जाता है और वे बीमार पड़ जाते हैं.
इस वर्ष, ज्येष्ठ पूर्णिमा आज 11 जून को थी और तभी से भगवान की आरोग्यता की सेवा आरंभ हुई. 27 जून को, रथयात्रा से एक दिन पूर्व, भगवान को पुनः गर्भगृह में लाया जाएगा. उसी दिन वे अपने भाई-बहन के साथ रथ पर सवार होकर मौसी के घर गुंडीचा मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे, जहां भव्य उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम और विविध भोग अर्पित किए जाएंगे. सात दिन बाद भगवान पुनः अपने मूल मंदिर लौटते हैं.