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महाशिवरात्रि का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? जानिए इससे जुड़ी कथाएं

फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाए जाने वाले महाशिवरात्रि पर पढ़ें भगवान शिव से जुड़ी कथाएं.

महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव का पर्व माना जाता है. यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है. यह पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. इसी दिन परम ब्रह्म निराकार भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. दुनिया भर में शिव भक्त अलग-अलग रूपों में भगवान शिव की पूजा करते हैं. महाशिवरात्रि पर आइए जानते हैं भगवान शिव से जुड़ी विभिन्न कथाएं…

महाशिवरात्रि : भोलेनाथ शिव के अग्निलिंग रूप में प्रकट हुए

एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच विवाद हो गया कि दोनों में सबसे बड़ा कौन है? विष्णु जी ने कहा, मैं महान हूं. ब्रह्मा जी ने कहा, मैं महान हूं, तब इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव अग्निलिंग के रूप में उन दोनों के सामने प्रकट हुए. जिसकी न कोई शुरुआत थी और न ही कोई अंत. तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा दोनों अपने वाहन पर बैठकर अग्निलिंग के आदि और अंत की खोज में निकल पड़े।दोनों ने काफी देर तक खोजा लेकिन वह नहीं मिला। अंत में वे दोनों भगवान शिव की शरण में गये. तभी से भगवान शिव की पूजा अग्निलिंग के रूप में की जाती है.

भगवान शिव तथा माता पार्वती का विवाह

माता सती की मृत्यु के बाद भगवन शिव लम्बी साधना में चले गए थे उन्होंने संसार के सुख को त्याग किया तथा देव लोक से कोई मतलब नहीं रह गया था तब सती ने पुनः पृथ्वी पर जन्म लिया जिनका नाम पार्वती था .जब भगवान शिव को मालूम चला तो उन्होंने माता पार्वती से इस दिन विवाह रचाया था महाशिवरात्रि का पर्व इस दिन से विशेष रूप से मनाया जाने लगा. कहा जाता है इस दिन से भगवान शिव के जीवन में फिर से खुशी आई थी.

शिव इस दिन विष पिए थे

जब समुद्र मंथन का कार्य देवता और दानव दोनों मिलकर कर रहे थे. जैसे-जैसे समुद्र मंथन का कार्य आगे बढ़ रहा था, उसमें से बहुमूल्य रत्न निकल रहे थे. देवताओं और राक्षसों का समुद्र मंथन का एक ही उद्देश्य था – उसमें से बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त करना. बंटवारा करना क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि समुद्र से अमृत ही निकलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अमृत निकलने से पहले समुद्र से विष निकला. विष निकलते ही देवताओं और दानवों में हाहाकार मच गया.सभी लोग भगवान शिव के पास गए और भोलेनाथ से सृष्टि की रक्षा करने को कहा. जब महादेव से मदद मांगी गई तो उन्होंने ब्रह्मांड को बचाने के लिए सारा जहर पी लिया, लेकिन माता पार्वती के प्रभाव के कारण जहर भगवान शिव के गले से नीचे नहीं उतरा, इसलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ गया.

भगवन शिव का रौद्र रूप

भगवान शिव का विवाह माता सती से हुआ था जो उनकी प्रथम पत्नी थी. वैसे तो भगवान शिव ने वैराग्य भाव अपनाया हुआ था जिनको सांसारिक मोह-माया से कोई अंतर नहीं पड़ता था किंतु वे अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करते थे. एक दिन उनके ससुर दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें भगवान शिव व माता सती को नहीं बुलाया गया था किंतु माता सती हठ करके उस यज्ञ में चली गयी थी. वहां अपने पति का अपमान देखकर माता सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. अपनी पत्नी की मृत्यु के वियोग से भगवान शिव इतने ज्यादा क्रोधित हो गए थे कि उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया था.

संहार के देवता कहे जाते हैं शंकर

भगवान शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है. भगवान शंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्र रूप दोनों के लिए विख्यात हैं. इन्हें अन्य देवों से बढ़कर माना जाने के कारण महादेव कहा जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं. त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं. शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं. शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं.

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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