Raksha Bandhan 2025 : रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है जो न केवल भाई-बहन के प्रेम और रक्षा के भाव को दर्शाता है, बल्कि इसके पीछे गहराई से जुड़े वैदिक मंत्रों का भी अत्यंत पवित्र महत्व होता है. जब बहन अपने भाई को राखी बांधती है, तो वह एक विशिष्ट संस्कृत मंत्र का उच्चारण करती है, जिसका अर्थ मात्र रक्षा की कामना नहीं, बल्कि धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक भावनाओं से जुड़ा होता है. रक्षाबंधन 2025 में यह पर्व 9 अगस्त, शुक्रवार को मनाया जाएगा. आइए जानते हैं उस रक्षा मंत्र का वास्तविक अर्थ और उसका पौराणिक आधार:-
– रक्षा मंत्र का शाब्दिक रूप और अर्थ
जब बहन राखी बांधती है, तो वह यह मंत्र बोलती है:
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल”
अर्थ:
जिस रक्षा सूत्र से प्राचीन काल में दानवों के राजा बलि को बांधा गया था, उसी पवित्र सूत्र से मैं आज तुम्हें बांधती हूं. यह रक्षा सूत्र तुम्हारी सदा रक्षा करे और तुम्हें कभी विचलित न होने दे.
– मंत्र का पौराणिक संदर्भ – राजा बलि और वामन अवतार
यह मंत्र विष्णु पुराण से लिया गया है. जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और उसे पाताल भेजा, तब माता लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधकर उसे भाई बना लिया और विष्णु को वैकुण्ठ ले जाने की याचना की. इस घटना के स्मरणस्वरूप यह मंत्र बोला जाता है.
– मंत्र के शब्दों में छिपा आत्मिक बल
इस मंत्र में “रक्षे मा चल मा चल” का अर्थ है – “हे रक्षा, स्थिर रहो, अडिग रहो” यह केवल बाह्य सुरक्षा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक सुरक्षा का भी प्रतीक है. यह मंत्र भाई को दुर्भावना, रोग, और नकारात्मक शक्तियों से दूर रखने का संकल्प है.
– रक्षा सूत्र की शक्ति और उद्देश्य
रक्षा सूत्र मात्र धागा नहीं, बल्कि यह संस्कारित और मंत्र-संहित बंधन होता है. इसे वैदिक ऊर्जा के साथ बांधा जाता है, जिससे भाई के जीवन में दीर्घायु, विजय, और समृद्धि का प्रवेश होता है. बहन का भाव, उसकी श्रद्धा और यह मंत्र – सब मिलकर एक आध्यात्मिक सुरक्षा कवच तैयार करते हैं.
– रक्षाबंधन 2025 में मंत्र का सही प्रयोग कैसे करें
इस वर्ष रक्षाबंधन पर, जब आप राखी बांधे तो इस मंत्र का उच्चारण शुद्ध उच्चारण और एकाग्रता के साथ करें. इससे भाई के जीवन में सकारात्मकता बढ़ेगी. साथ ही, बहन को भी आत्मिक संतोष और पुण्य फल प्राप्त होगा.
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रक्षाबंधन पर बोला गया यह मंत्र कोई सामान्य वाक्य नहीं, बल्कि सनातन धर्म की रक्षा परंपरा का एक सशक्त स्तंभ है. यह भाई-बहन के प्रेम को दैविक ऊर्जा से जोड़ता है और रक्षाबंधन के पर्व को अधितात्त्विक गरिमा प्रदान करता है.