Rasagulla Bhog:भारतीय संस्कृति में विभिन्न देवी-देवताओं को विशेष प्रकार के प्रसाद अर्पित किए जाते हैं. उदाहरण के लिए, भगवान गणेश को मोदक, श्रीकृष्ण को मक्खन-मिश्री, और माता लक्ष्मी को खीर पसंद है. इसी प्रकार, भगवान जगन्नाथ को रसगुल्ला अत्यधिक प्रिय माना जाता है.
भगवान जगन्नाथ और रसगुल्ला का ऐतिहासिक संबंध
उड़ीसा (ओडिशा) के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा की पूजा की जाती है. यहां सदियों से भगवान जगन्नाथ को रसगुल्ले का भोग अर्पित किया जाता है, विशेष रूप से ‘नीलाद्री बिजय’ उत्सव के अवसर पर.
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नीलाद्री बिजय और रसगुल्ला उत्सव
नीलाद्री बिजय रथयात्रा महोत्सव का समापन दिन होता है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा नौ दिनों की यात्रा के बाद अपने मुख्य मंदिर में लौटते हैं. इस दौरान, देवी लक्ष्मी (भगवान जगन्नाथ की पत्नी) नाराज हो जाती हैं, क्योंकि भगवान बिना उन्हें सूचित किए यात्रा पर निकल गए थे.
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जब भगवान जगन्नाथ वापस लौटते हैं, तो देवी लक्ष्मी उनसे रुष्ट होकर मंदिर के द्वार बंद कर देती हैं. उन्हें मनाने के लिए भगवान जगन्नाथ रसगुल्ला अर्पित करते हैं और क्षमा याचना करते हैं. इस घटना को “रसगुल्ला उत्सव” के नाम से जाना जाता है, जो प्रेम और समर्पण का प्रतीक है.
उड़ीसा और रसगुल्ले का ऐतिहासिक महत्व
उड़ीसा के निवासियों का मानना है कि रसगुल्ले की शुरुआत उनके राज्य से हुई थी, और इसे भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में अर्पित करने की परंपरा कई सदियों से चली आ रही है. इसे ‘खिरमोहन’ के नाम से भी जाना जाता है, जो आज के रसगुल्ले का प्रारंभिक स्वरूप माना जाता है.