Sawan 2025 : भगवान शिव की पूजा सावन में विशेष फलदायक मानी जाती है. इस पवित्र माह में शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा आदि अर्पित करना भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक होता है. लेकिन धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में कुछ ऐसे विशेष समय बताए गए हैं जब शिवलिंग पर जल अर्पण करना वर्जित या अशुभ माना गया है. यदि इन नियमों का पालन न किया जाए, तो पूजा का प्रभाव उल्टा भी पड़ सकता है. अतः सावधानी आवश्यक है:-
– संध्या काल
शिवपुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, संध्या काल यानी सूर्यास्त का समय शिवलिंग पर जल अर्पण के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता.
यह समय दिन और रात के बीच का संधिकाल होता है, जिसमें रज-तम गुण प्रबल होते हैं.
इस समय पूजा करने से मानसिक अशांति, रोग और पारिवारिक क्लेश बढ़ सकते हैं.
यदि यह समय ही पूजा का विकल्प हो, तो केवल ध्यान या नामस्मरण करें.
– ग्रहण के समय
ग्रहण काल में किसी भी देवी-देवता की मूर्ति या शिवलिंग को छूना वर्जित होता है.
ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक होती है.
इस काल में शिवलिंग पर जल या कोई सामग्री अर्पित करने से पूजा निष्फल हो सकती है.
ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान करके शुद्ध होकर ही पूजा करनी चाहिए.
– अशुद्ध अवस्था में (शरीरिक या मानसिक अपवित्रता में)
यदि शरीर अपवित्र है, जैसे स्नान न किया हो, मासिक धर्म की स्थिति में हों, या मन में द्वेष, क्रोध, ईर्ष्या जैसे विचार हों —
तो ऐसे में शिवलिंग पर जल अर्पण नहीं करना चाहिए।
शिव भक्ति में पवित्रता सर्वोपरि है. अशुद्ध अवस्था में अर्पण करने से विपरीत फल मिल सकता है.
– पूजा का शुभ समय क्या है?
- प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे से 6 बजे)
- त्रयोदशी तिथि पर विशेष फल मिलता है
- सोमवार को जलाभिषेक करना श्रेष्ठ माना गया है
- शिव पंचाक्षरी मंत्र “ ओम नमः शिवाय” का जाप करते हुए अर्पण करें.
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सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाना जितना पुण्यदायक है, उतना ही जरूरी है सही समय और शुद्धता का ध्यान रखना. यदि आप इन अशुभ समयों से बचकर पूजा करते हैं, तो शिव जी की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.