सलिल पाण्डेय, मिर्जापुर
Shiv Ganga Divine Conflict Story: मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण उस समय हुआ जब राजा सगर के वंशज श्रापित हो चुके थे. उनकी मुक्ति के लिए एक दिव्य माध्यम की आवश्यकता थी—देवनदी गंगा. इसी उद्देश्य से राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की. वास्तव में भगीरथ कोई व्यक्ति मात्र नहीं, बल्कि वह एक ऐसा प्रतीक हैं जो समाज के कल्याण हेतु विषमताओं से लड़ने वाली व्यवस्था को दर्शाते हैं. साठ हजार पूर्वजों के उद्धार का प्रयत्न एक संपूर्ण समुदाय की मुक्ति का प्रतीक बन गया, और यही लोककल्याण की भावना महादेव को भी प्रभावित कर गई.
एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को दबाने हेतु विराट रूप धारण किया, तब उनके चरण अंतरिक्ष से होते हुए ब्रह्मलोक तक पहुंचे. विष्णु के चरणों के साथ अनेक विषाणु भी ब्रह्मलोक में प्रवेश कर गए, जिन्हें वहां के देवमंडल ने शुद्ध किया. यही जल ब्रह्मा ने अपने कमंडल में संग्रहित किया, जो आगे चलकर गंगा का स्वरूप बना.
जब भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा को पृथ्वी पर उतरने का आदेश मिला, तो उन्होंने पृथ्वी के पाप और प्रदूषण का हवाला देकर मना कर दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि वे पृथ्वी पर आईं तो प्रलय मचा देंगी. उनके इस व्यवहार पर महादेव कुपित हो उठे और अपने जटाजूट में उन्हें बांध लिया. शिव-तांडव स्तोत्र में वर्णन है कि गंगा जटाओं में अग्नि-ज्वाला की तरह धधक रही थीं. लेकिन अंततः शिव ने उन्हें भगीरथ के साथ पृथ्वी पर उतरने की अनुमति दे दी.
यह दिन था ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का—तीव्र गर्मी का समय. फिर भी गंगा ने भगीरथ के नेतृत्व और हजारों ऋषियों के साथ मिलकर ढाई हजार किलोमीटर की अविरल यात्रा गंगोत्री से गंगासागर तक स्वीकार कर ली. यह विश्वास जताया कि यदि नेतृत्व पवित्र हो तो वह हर प्रदूषण को निर्मलता में बदल सकती है.
देवी पुराण की एक कथा कहती है कि भगवान शिव के विवाह के अवसर पर विष्णु ने संगीत का आग्रह किया, और शिवजी ने स्वयं गाना शुरू किया. इस आनंद में वैकुंठ में जल उमड़ पड़ा, जिसे ब्रह्मा ने कमंडल में एकत्र कर लिया. यह कथा बताती है कि तनाव के क्षणों में भी संगीत और माधुर्य मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं.
गंगा का जीवन कभी भी सरल नहीं रहा—वह धारण करने वाली पृथ्वी की भांति है, जो सुख-दुख, पाप-पुण्य सब कुछ सहती है. फिर भी मां गंगा सदैव सम और विषम परिस्थितियों में शीतलता, शुद्धता और निर्मलता के साथ बहती रहती हैं. यही उनका दिव्य स्वरूप है.