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Shradh Rituals: श्राद्ध में कौए को खिलाया जाता है भोजन, जानिए इसके पीछे की मान्यता

Shradh Rituals and Feeding Crow:हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म के दौरान कौए को भोजन कराना एक महत्वपूर्ण परंपरा है. इसे पितरों की तृप्ति और आशीर्वाद प्राप्ति से जोड़ा जाता है. मान्यता है कि कौआ यमराज का दूत होता है और उसके माध्यम से पूर्वजों तक अर्पित अन्न पहुंचता है.

Shradh Rituals and Feeding Crow: हिंदू धर्म में पितरों की तृप्ति और मोक्ष के लिए श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व होता है. यह पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इन कर्मों में एक प्रमुख परंपरा कौए को भोजन कराना भी है. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर श्राद्ध में कौए को ही भोजन क्यों दिया जाता है?

श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

हिंदू ग्रंथों और पुराणों में कौए को यमराज का दूत माना गया है. ऐसा विश्वास है कि कौए के माध्यम से पितर इस लोक में आते हैं और श्राद्ध में परोसे गए भोजन को ग्रहण करते हैं. जब कौआ भोजन करता है, तो यह संकेत माना जाता है कि पितरों ने भोजन स्वीकार कर लिया है और वे प्रसन्न हैं.

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गरुड़ पुराण के अनुसार, कौआ तीनों लोकों – पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग – में आने-जाने की शक्ति रखता है. वह पितरों और यमलोक का प्रतिनिधि होता है. इसलिए कौए को भोजन कराना, सीधे पितरों तक अन्न पहुंचाने जैसा माना जाता है.

आध्यात्मिक महत्व

  • श्राद्ध कर्म में कौए को भोजन कराना आत्मा की शांति, कुल के कल्याण और पितरों की कृपा प्राप्त करने का प्रतीक है. यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने का एक माध्यम है. जब कौआ भोजन स्वीकार करता है, तो इसे शुभ संकेत माना जाता है और यह दर्शाता है कि पूर्वजों को अर्पण स्वीकार्य हो गया.
  • कौए को भोजन कराना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संवाद है, जो जीवित लोगों और उनके दिवंगत पूर्वजों के बीच एक अदृश्य संबंध को बनाए रखता है. यह श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक है, जो हमें हमारे मूल, संस्कृति और कर्तव्यों की याद दिलाता है.
  • हिंदू धर्म में श्राद्ध संस्कार के समय कौए को भोजन कराना एक विशेष और पवित्र परंपरा मानी जाती है. ऐसा विश्वास है कि कौआ यमराज का प्रतिनिधि होता है, जिसके माध्यम से पितरों तक अर्पित अन्न और तर्पण पहुंचता है, जिससे वे तृप्त होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष

इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर 2025 से आरंभ होकर 21 सितंबर 2025 को समाप्त होगा. इस अवधि में पितरों का तर्पण और श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि (तिथि अनुसार) किया जाता है. यदि किसी पूर्वज की तिथि ज्ञात न हो, तो उनके लिए सर्वपितृ अमावस्या के दिन पिंडदान या श्राद्ध करना शुभ माना जाता है.

प्रभात खबर के धर्म सेक्शन में प्रकाशित सभी जानकारियां धार्मिक, ज्योतिषीय और परंपरागत मान्यताओं पर आधारित हैं. इनका उद्देश्य पाठकों को जानकारी प्रदान करना है, न कि किसी भी प्रकार की अंधविश्वास को बढ़ावा देना. पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी उपाय या सलाह को अपनाने से पहले विशेषज्ञ या ज्ञानी आचार्य की सलाह अवश्य लें. प्रभात खबर किसी भी धार्मिक या ज्योतिषीय दावे की पुष्टि नहीं करता और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.

Shaurya Punj
Shaurya Punj
रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद मैंने डिजिटल मीडिया में 14 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव हासिल किया है. धर्म और ज्योतिष मेरे प्रमुख विषय रहे हैं, जिन पर लेखन मेरी विशेषता है. हस्तरेखा शास्त्र, राशियों के स्वभाव और गुणों से जुड़ी सामग्री तैयार करने में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है. इसके अतिरिक्त, एंटरटेनमेंट, लाइफस्टाइल और शिक्षा जैसे विषयों पर भी मैंने गहराई से काम किया है. 📩 संपर्क : [email protected]

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