23.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Susari Parv: सात दिनों तक कठिन शिव उपासना, आठवें दिन मां दुर्गा के स्वरूप में आते हैं मुख्य भोक्ता

Susari Parv: सुसरी पर्व की परंपरा 400 वर्षों से जारी है. पूर्वजों के अनुसार, राजा अजम्बर सिंह की देखरेख में सुसरी पर्व की शुरुआत की गई थी. तब से लेकर अब तक, सुसरी पर्व का निरंतर आयोजन होता आ रहा है.

राहे के पुरनानगर में 400 वर्षों से चल रही सुसरी पर्व की परंपरा

Susari Parv: झारखंड प्रकृति के साथ-साथ परंपराओं से भी भरा-पूरा राज्य है. यहां अलग-अलग समाज, अलग-अलग समुदाय की अलग-अलग परंपराएं हैं. ऐसी ही एक परंपरा रांची से महज 50-60 किलोमीटर दूर यहे प्रखंड के पुरनानगर गांव की है, जहां पिछले 400 साल से भी ज्यादा समय से पारंपरिक सुसरी पर्व का आयोजन होता आ रहा है. इसमें नौ दिनों तक पूजा प्रक्रिया चलती है. पहले दिन से लेकर सातवें दिन तक शिव जी की उपासना होती है. वहीं आठवें दिन मुख्य भोक्ता मां दुर्गा के स्वरूप में आते हैं. जिसे दुर्गा घट भी कहा जाता है, यह आकर्षण का केंद्र होता है. मौके पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. इसे देखने के लिए आसपास के गांव के हजारों लोग आते हैं. जिसमें मुख्य भोक्ता को बेहोशी की अवस्था से जगाते हुए महेशपुर गांव के तालाब से पुरनानगर गांव के राजा घर में लाया जाता है. फिर उन्हें शिव मंदिर ले जाया जाता है. वहां मुख्य भोक्ता पूरी तरह से होश में आते हैं फिर अन्य भोक्ता के साथ पारंपरिक वाद्ययंत्र पर नृत्य करते हैं. इस साल सुसरी पर्व की शुरुआत ही चुकी है. सोमवार को शोभायात्रा निकाली जायेगी.

फुलसुंदी में भोक्ता व उनके परिवार के लोग होते हैं शामिल नौवें दिन आधी रात को गांव के ही मिसिर पोखर से मुख्य भोक्ता को मां काली का स्वरूप दिया जाता है. जिसे काली घट भी कहा जाता है. मुख्य भोक्ता को काली मां का स्वरूप देने के बाद उन्हें मुख्य मंदिर में लाया जाता है. कहा जाता है इस दौरान वे बेहोश अवस्था में चले जाते हैं. मुख्य मंदिर में लाने के बाद वे पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते हैं. उसी दिन सुबह में फुलसुंदी होती है, जिसमें सभी भोक्ता और उनके परिवारजन अंगारों से होकर गुजरते हैं. शामिल होते हैं अलग-अलग समुदाय के लोग इसमें अलग-अलग दिन अलग-अलग नेग नियम होते हैं. उपासना में कठिन नियमों का पालन किया जाता है. जिसमें गांव के अलग अलग समुदाय के लोग भोक्ता के रूप में शामिल होते हैं. पहले सात दिनों तक शिव जी की कठिन उपासना होती है. इस दौरान भी कई नियम होते हैं. इसमें घेरघेरी, परदक्षिण, बड़ा लोटन, छोटा लोटन आदि की परंपरा है. आठवें दिन की शोभायात्रा में काफी संख्या में बच्चे और युवा भी शामिल होते हैं. जो शिव गण की भूमिका निभाते हैं.

राजा अजम्बर सिंह की देखरेख में हुई थी सुसरी पर्व की शुरुआत

पुरनानगर गांव के वर्तमान राजा प्रताप सिंह बताते है कि यह परंपरा 400 साल से चलती आ रही है. पूर्वजों के अनुसार राजा अजम्बर सिंह की देखरेख में सुसरी पर्व की शुरुआत की गयी थी. तब से लेकर अब तक सुसरी पर्व का लगातार आयोजन हो रहा है. वहीं, जयकिशोर सिंह ने बताया कि सालों साल से चल रही इस परंपरा का पालन किया जा रहा है. ताकि गांव में सुख-शांति बनी रहे. पर्व में आसपास के गांव के सभी समुदाय के लोग शामिल होते हैं.

Shaurya Punj
Shaurya Punj
रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद मैंने डिजिटल मीडिया में 14 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव हासिल किया है. धर्म और ज्योतिष मेरे प्रमुख विषय रहे हैं, जिन पर लेखन मेरी विशेषता है. हस्तरेखा शास्त्र, राशियों के स्वभाव और गुणों से जुड़ी सामग्री तैयार करने में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है. इसके अतिरिक्त, एंटरटेनमेंट, लाइफस्टाइल और शिक्षा जैसे विषयों पर भी मैंने गहराई से काम किया है. 📩 संपर्क : [email protected]

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel