Vat Savtiri Vrat 2025: विवाह के बाद जब कोई स्त्री पहली बार व्रत करती है, तो वह दिन न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी बहुत खास होता है। वट सावित्री व्रत, सुहागिन महिलाओं के लिए एक ऐसा ही पर्व है, जो पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए रखा जाता है. खासकर नई नवेली दुल्हनों के लिए यह पहला व्रत यादगार बन जाता है, क्योंकि यह उनकी श्रद्धा, आस्था और रिश्ते के प्रति समर्पण का प्रतीक होता है.
क्या कहते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य?
देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंद किशोर मुद्गल बताते हैं कि वट सावित्री व्रत का महत्व बहुत गहरा है. यह व्रत केवल पति की लंबी उम्र के लिए नहीं, बल्कि संतान सुख की कामना के लिए भी रखा जाता है. वे बताते हैं कि कुछ महिलाएं यह व्रत निर्जला यानी बिना पानी के रखती हैं, लेकिन पहली बार व्रत कर रहीं नई दुल्हनों को फलाहार कर यह व्रत करना चाहिए. व्रत और पूजन तभी शुभ फल देते हैं जब वह पूरी श्रद्धा और शुद्ध विधि-विधान से किया जाए. पंडित जी कहते हैं कि व्रत करने के साथ-साथ सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण करना भी जरूरी होता है, तभी इस व्रत का पूर्ण फल मिलता है.
कैसे रखें नई नवेली दुल्हन वट सावित्री व्रत
अगर आप पहली बार यह व्रत रखने जा रही हैं तो घबराने की जरूरत नहीं है. इसे पूरी आस्था, सादगी और श्रद्धा से करें. 26 मई को व्रत का संकल्प लें और फलाहार (फल या दूध) से उपवास करें. पूरी कोशिश करें कि दिनभर संयम और शांति से रहें. अगले दिन यानी 27 मई को पूजा करनी होती है.
पूजन सामग्री तैयार करें:
- एक बांस की टोकरी लें और उसमें यह सामग्री रखें – भगवान शिव की तस्वीर, बस का पंखा, रोली, चंदन, अक्षत (चावल), पान, सुपारी, फूल, फल, चना, कच्चा दूध, गंगाजल और नवेद्य (भोग).
- वट वृक्ष के पास जाएं और यह विधि अपनाएं:
- सबसे पहले वट वृक्ष को गंगाजल और दूध से स्नान कराएं.
- फिर पेड़ के चारों ओर मौली (लाल धागा) लपेटते हुए 7 या 21 बार परिक्रमा करें.
- पंचोपचार विधि से पूजा करें यानी – गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें.
- इसके बाद सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें या पढ़ें और मन ही मन पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करें.
- पूजा के बाद अपने पति के हाथ से जल या फल ग्रहण कर व्रत खोलें.
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