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आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का पारसनाथ जैन दिगंबर शांति निकेतन से रहा गहरा लगाव

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का इसरी बाजार स्थित श्री पारसनाथ जैन दिगंबर शांति निकेतन उदासीन आश्रम से गहरा संबंध रहा. साल 1983 में विद्यासागर जी महाराज उदासीन आश्रम पहुंचे थे. इन्होंने यहां 9 महीने की साधना की.

डुमरी (गिरिडीह), शशि जायसवाल : आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का इसरी बाजार स्थित श्री पारसनाथ जैन दिगंबर शांति निकेतन उदासीन आश्रम से गहरा संबंध रहा. साल 1983 में विद्यासागर जी महाराज उदासीन आश्रम पहुंचे थे. इन्होंने यहां 9 महीने की साधना की. इस दौरान उन्होंने अपने शिष्यों को शिक्षा-दीक्षा दी. आचार्यश्री के सान्निध्य में शांति निकेतन उदासीन आश्रम में 1983 में दीक्षा कार्यक्रम हुआ था, जिसमें पांच मुनियों ने दीक्षा ली थी.

दीक्षा लेने वालों में पूज्य मुनि सुधा सागर जी, समता सागर जी, स्वभाव सागर जी, समाधि सागर जी और सरल सागर जी शामिल थे. इसरी बाजार उदासीन आश्रम में साधना कर रहे पंकज भैया ने बताया कि आचार्य भगवन गुरुवर विद्यासागर जी महाराज सभी के गुरु थे. सिर्फ जैन धर्म ही नहीं, अपितु समस्त जनमानस के वह संत थे. उन्होंने कहा कि आचार्यश्री ने धर्म, समाज, राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने कार्यों से लोगों को प्रेरणा दी. अपने जीवन में इस तरह के कार्यों को किया.

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जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने संलेखन और समाधि को धारण किया. उनके चले जाने से समस्त समाज और समस्त मानव जाति के लिए अपूरणीय क्षति है. उन जैसे संत विरले होंगे, जो इस प्रकार की साधना और इस प्रकार की सोच रखते होंगे. उनके ध्यान में प्रत्येक जनमानस के प्रति करुणा और दया का भाव था. बंगाल के लोगों को धर्म से जोड़ने को लेकर बहुत बड़ा उपक्रम किया था.

महाराज जी के सान्निध्य में जिनेंद्र प्रसाद वर्णी जी की संलेखना और समाधि उन्हीं के आचार्यत्व में संपन्न हुई थी. विद्यासागर जी महाराज से उनके गृहस्थ आश्रम के पिता मुनि माली सागर जी की मुलाकात शांति निकेतन आश्रम में हुई थी और यहां रहकर उन्होंने सभी को धर्म का उपदेश दिया था. सभी लोगों के अंदर, संयम, आचरण की प्रेरणा उन्होंने दी. लोगों को धर्म से जोड़ने का कार्य किया. उदासीन आश्रम इसरी में इसका लाभ जनमानस को मिला.

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महाराज जी से मिलने के बाद एआर किदवई ने एक दिन छोड़ा मांसाहार

संयुक्त बिहार, बंगाल, एमपी सहित कई प्रांतों और विदेशों के भी लोग इनकी सेवा कर अपने जीवन काे सार्थक करते थे. पूरे जीवन में समाज, राष्ट्र और धर्म के लिए कार्य किये. समाज के लोगों का कहना है कि 1983 में विद्यासागर जी महाराज शांति निकेतन उदासीन आश्रम पहुंचे. जैन परंपरा के मुताबिक कर-साधना प्रवचन हुआ. इससे लोग लाभान्वित हुए.

संयुक्त बिहार के राज्यपाल एआर किदवई 1983 में महाराज से मिलने उदासीन आश्रम पहुंचे थे. महाराज के दर्शन के बाद उन्होंने एक दिन के लिए मांसाहार त्याग दिया था. जब विद्यासागर महाराज इसरी बाजार के उदासीन आश्रम पहुंचे, तो जैन धर्म के लोगों में काफी खुशी थी. आश्रम में बने ऊपरी तल के एक कमरे में महाराज ने 9 महीने की अखंड साधना की थी. उसी कमरे में आज भी कई साधक साधना करते हैं.

क्या बोले जैन समाज के लोग

साधक के जीवन की परीक्षा समाधि के समय होती है. आचार्य विद्यासागर जी महाराज शत-प्रतिशत कसौटी पर खरे उतरे. कठोर तपचर्या से उन्होंने 55 वर्ष तक साधना की, जिससे उनकी आत्मा कुंदन-सी चमक रही है. अध्यात्म की गंगा के कुशल तैराक के रूप में यह संत सदैव विश्व के मानस पटल पर छाया रहेगा. रत्नत्रय का पालन करके आत्मा के साथ-साथ देह को भी पवित्र किये हैं. धर्म ध्वज के संवाहक गुरुदेव का आगम उपदेश सतत मील के पत्थर की भांति धर्मप्रेमी बंधुओं के लिए पथ प्रदर्शक बना रहेगा.

सुनील जैन, प्राचार्य, पीएनडी हाइस्कूल

जिनके विचार आज शास्त्र बने परम पूज्य गुरुदेव ने अपने विचारों से समाज के लाखों युवक व युवतियों को भौतिकता के मार्ग से निकलकर धर्म के मार्ग से जोड़ा. इंडिया नहीं भारत बोलो स्वदेशी बनने के लिए उन्होंने एक नारा दिया. चलो अब लौट चलो आदि विचारों से समाज में अपेक्षित परिवर्तन हुआ. हथकरघा के माध्यम से अहिंसा धर्म का प्रचार भी हुआ. देश के सैकड़ों जेलों में हथकरघा केंद्रों की स्थापना हुई. आत्मानुशासन को सर्वोपरि रखकर विश्व विजेता बनकर क्षितिज पर सुशोभित रहे.

संजीव जैन, शिक्षक

आचार्यश्री संतों के संत रहे, जो अपनी साधना से सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे. जनहित में बालिकाओं के लिए प्रतिभास्थली, गायों की रक्षा के लिए भारत के कई स्थानों में गोशाला खुलवायी. उनका समस्त जीवन मानव कल्याण के लिए था. उनका चले जाना समाज और सभी के लिए अपूरणीय क्षति है. जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने सल्लेखन और समाधि को धारण किया.

संगीता जैन

एक ऐसा संत, जिसकी चर्या से शास्त्रों का उद्भव हुआ. जिन्होंने जीवन भर के लिए पांच पापों का त्याग किया. 500 से अधिक साधकों को इन पापों का त्याग करा दीक्षा प्रदान की एवं उनके गुरु बने. पूज्य गुरुदेव ने कलयुग में भी वसुंधरा को धर्म अमृत से सींच दिया. जिनकी वाणी सतत कल्याणकारी बनी. जिन्होंने प्रवचन नहीं वचन दिया और वचन का अनुकरण भी किया. लोग उन्हें आज महावीर कालघुनंदन कहते हैं. संपूर्ण विश्व में लोग उन्हें महावीर का अवतार भी मानते हैं. सचमुच वह महावीर ही थे.

अशोक जैन
Prabhat Khabar Digital Desk
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