गढ़पुरा. मिथिलांचल की परंपरा के अनुसार मधुश्रावणी व्रत मंगलवार से शुरू हो गया. इस व्रत में नवविवाहिताएं 13 दिनों तक अपने पति की दीर्घायु और दांपत्य जीवन की सुख-समृद्धि एवं पति पत्नी के बीच प्रेम को बढ़ावा देने के लिए व्रत और पूजा करती हैं. इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि इसमें महिलाएं ही पुरोहित की भूमिका निभाती हैं. व्रत के दौरान पुरुष पंडित की आवश्यकता नहीं होती है. गढ़पुरा के पंडित नवीन झा ने बताया कि इसमें पूरे व्रत के दौरान नवविवाहिता बिना नमक का भोजन करती हैं. प्रतिदिन सुबह महिलाएं अपने सहेलियों के साथ फूल तोड़ने फूलवारी को जाती हैं और फिर उसी फूल से पूजा करती हैं. पूजा में पंचमी, गौरी, पृथ्वी, महादेव, गंगा कथा और बिहुला कथा सहित 13 कथाओं का श्रवण किया जाता है. शाम को आरती के दौरान सुहाग गीत गाकर भगवान शिव की आराधना भी जाती है.
इस व्रत में कंधे से लेकर पैर तक टेमी की रस्म
मधुश्रावणी की टेमी दागने की परंपरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. यह नवविवाहिताओं के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नही है. बताया गया कि व्रत के अंतिम दिन वर-वधू पूजा करने के बाद दीपक की बाती से नवविवाहिता के शरीर के 8 स्थानों पर टेमी दागने की रस्म होती है. कंधे से लेकर पैर तक जलती बाती से दागने की यह परंपरा पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक है. इस क्रम में वधू के भाई पान के पत्ते से उसकी आंखें बंद रखते हैं फिर टेमी दागने का रस्म शुरू होता है. माना जाता है कि टेमी दागने के दौरान जितना बड़ा घाव नवविवाहिता के शरीर पर बनता है, उसे उतना ही शुभ माना जाता है बाद में चंदन का लेप लगाकर घाव स्वत: ठीक हो जाता है. इस व्रत को लेकर गढ़पुरा, कुम्हारसो, दुनही एवं मालिपुर में उत्सवी माहौल है.
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