बेतिया. ईद-उल-अजहा यानि बकरीद पर्व शनिवार को मनाई जाएगी. इसको लेकर बकरों की बिक्री काफी बढ़ गई है. शहर के द्वारदेवी चौक पर दूर दराज से बकरों को बेचने के लिए लोग ला रहे हैं. वहीं खरीददार अपने बजट के अनुसार बकरों की खरीदारी कर रहे हैं. जो लोग आर्थिक स्थिति से काफी मजबूत है. वें तीनों दिन बकरों की कुर्बानी करते हैं. तीन दिनों तक चलने वाला कुर्बानी को मुस्लिम धर्मावलम्बी काफी धूम धूम धाम से मनाते है. जंगी मस्जिद के इमाम मौलाना नजमुद्दीन अहमद कासमी ने बताया कि जो व्यक्ति साहेबे नेशाब है. उस पर कुर्बानी वाजिब हो जाती है. अगर पति पत्नी दोनो साहेबे नेशाब हो तो उन दोनो पर कुर्बानी वाजिब हो जाती है. अगर मा बाप साहेबे नेशाब नहीं है तो उन पर कुर्बानी वाजिब नहीं होती है. कुर्बानी पहले जिन्दे इंसान के नाम से की जाती है. उसके बाद अपने मरे हुए परिजन के नाम से की जाती है. ————– तकवा के साथ की गई कुर्बानी अल्लाह को है पसंद:मौलाना इस्लामिक कैलेंडर के आखिर महीना जिल्हिज्जा के दसवी तारीख को ईद-उल-अजहा मनाई जाती है. मौलाना ने बताया कि कुर्बानी भी तक़वा की परहेजगारी के साथ अदा किया जाएगा तभी अल्लहाताला कुर्बानी को कबूल फरमाता है. साथ ही इबादत में रेयाकारी अल्लहाताला को पसंद नही है. अल्लहाताला को खून और गोश्त पसन्द नहीं है बल्कि तक़वा के साथ कि गई इबादत पसन्द है. कुर्बानी के बाद यह हुक्म दिया गया कि गोश्त को तीन हिस्सों में बांटो. एक हिस्सा गरीब, मिस्कीन को दूसरा अपने गरीब रिस्तेदारों को और तीसरा हिस्सा खुद अपने लिये रखो. ताकि गरीब,मिस्कीन भी पर्व को खुशी खुशी मना सके. जिन पर जकात वाजिब है उनपर कुर्बानी भी वाजिब है. जिसके पास साढे सात तोला सोना या साढे बावन तोला चांदी या इसके बराबर रकम सारे कार्य करने के बाद बचा हो उनपर कुर्बानी वाजिब हो जाती है.
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