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Buxar News: 1.24 लाख परिवारों के पास पक्का घर नहीं

जिले के एक लाख 24 हजार 154 ग्रामीण परिवार आज भी पक्के मकानों से वंचित है.

बक्सर

. जिले के एक लाख 24 हजार 154 ग्रामीण परिवार आज भी पक्के मकानों से वंचित है. जबकि सरकार के द्वारा प्रत्येक वर्ष प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत हजारों परिवार को पक्का मकान बनाने के लिए सहायता राशि दी जा रही है. इसके बावजूद 2025 में जब प्रधानमंत्री ग्रामीण अवास योजना का सर्वे किया गया तो पता चला कि जिले में अभी भी 1 लाख 24 हजार 154 ग्रामीण क्षेत्र के ऐसे परिवार है.

जिनको अभी तक पक्का का मकान नसीब नहीं हुआ है. आजादी के 75 वर्षों बाद भी जिले के कई हिस्सों में बुनियादी जरूरतें अधूरी हैं. इंसान के सबसे जरुरी रोटी ,कपड़ा , मकान इन तीनों में से महत्वपूर्ण मकान होता है. जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी करीब 1 लाख 24 हजार 154 परिवार ऐसे हैं जिनके पास रहने के लिए पक्का छत नहीं है. ये आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है बल्कि सरकार की ग्रामीण आवास योजनाओं की जमीनी हकीकत को भी उजागर करता है. जिला एक प्रमुख कृषि प्रधान जिला है, जहां कुल जनसंख्या का लगभग 70 हजार हिस्सा गांवों में रहता है. कृषि, दिहाड़ी मजदूरी और पशुपालन यहां के मुख्य जीविका के स्रोत हैं. लेकिन इसके बावजूद हजारों परिवार ऐसे हैं जो अब भी मिट्टी, टिन, खपड़ैल या प्लास्टिक की छतों वाले कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं. इन घरों में न तो बारिश से सुरक्षा है, न गर्मी या सर्दी से.बरसात में घर टपकते हैं, दीवारें गिरती हैं और जीवन संकट में पड़ जाता है. गरीब, बुजुर्ग, विधवा, विकलांग और आदिवासी समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. भारत सरकार ने 2015 में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य 2022 तक ”हर गरीब को पक्का घर” देना था.लेकिन 2025 में भी जिले के आंकड़े बताते हैं कि योजना अपने लक्ष्य से काफी पीछे है. लेकिन जब 2025 में इसका गणना किया गया तो पता चला कि अभी भी जिले में एक लाख 24 हजार 154 परिवार है जिनके पास अपना मकान नहीं है. इनके सबसे ऐटी परिवार के 2648 वही ऐसी परिवार के लोग 23824 तो अदर परिवार के 65392 परिवार है . जमीन तक योजना पहुंचाने में आयी दिक्कतें : प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ सबसे अधिक उन लोगों को मिला है जिनके पास पहले से ही पककी मकान है. यह योजना में भ्रष्टाचार और बिचौलियों का बोलबाला लाभार्थियों को पैसे दिलाने के बदले कमीशन की मांग किया जाता है. सूची में नाम न होना हजारों पात्र परिवार आज तक सूची में नहीं जुड़ पाए . जबकि 2025 सर्वे हुआ तो इन सभी परिवार का नाम जोडा गया. जब प्रभात खबर कि टिम जिले के विभिन्न गांवों का दौरा किया और उन परिवारों से बात की जो पक्के मकान के लिए वर्षों से इंतजार कर रहे हैं. पडरी निवासी रामवती देवी : एक झोपड़ी में अपने दो पोतों के साथ रहती हैं.उनका घर टीन की चादरों से ढंका है.हर बारिश में पानी अंदर घुस आता है.उन्होंने बताया कई मुखिया से कहाँ लेकिन सूची में नाम नहीं होने के कारण अभी तक प्रधानमंत्री अवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया. लेकिन इस बार जब जनवरी में सर्वे हुआ तो नाम शामिल किया गया देखिए कब तक इस योजना का लाभ मिलता है. सरकारी आंकड़े बनाम जमीनी सच्चाई : जिला प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार अब तक दो लाख से अधिक मकान बनाए जा चुके हैं.लेकिन ग्रामीणों की शिकायतें बताती हैं कि कई मकान अधूरे हैं, कई लाभार्थियों को बार-बार सर्वे के नाम पर टाल दिया जाता है. जब प्रभात खबर कि टीम ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंची तो पाया गया कि बहुत सारे ऐसे परिवार है जिनका पहली किस तो मिल गया है लेकिन दूसरा एक साल के बाद भी नहीं मिला है.जलवायु और असुरक्षा की दोहरी मारकच्चे मकान केवल असुविधाजनक ही नहीं, बल्कि असुरक्षित भी हैं.जब भी तेज आधी बारिश आता है. आशियाना उडने और गिरने का भय बना रहता है. ग्रामीणों की यह स्थिति जिले के विकास के दावों पर सवाल उठाती है. जब तक हर नागरिक को मूलभूत सुविधाएं जैसे कि सिर पर छत, पीने का पानी और शौचालय नहीं मिलेगा, तब तक “विकास” अधूरा है. पक्के घर केवल ईंट-पत्थर नहीं होते, ये आत्मसम्मान और सुरक्षा का प्रतीक होते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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