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Buxar News: इंद्र के धर्म, बल और रूप से हुआ है द्रौपदी का विवाह : पौराणिक

शहर के रामरेखाघाट स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर में कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम द्वारा आयोजित 17 वें धर्मायोजन के दूसरे दिन शनिवार को मंडप प्रवेश व पंचांग पूजन किया गया.

बक्सर.

शहर के रामरेखाघाट स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर में कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम द्वारा आयोजित 17 वें धर्मायोजन के दूसरे दिन शनिवार को मंडप प्रवेश व पंचांग पूजन किया गया. इसी के साथ श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का विधिवत शुभारंभ हो गया. वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विधि विधान से देवी-देवताओं के पूजन-अर्चन किए गए और यज्ञ कुंड में आहुतियां दी गईं. जिससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया. शाम को श्री मारकंडेय पुराण कथा सुनायी गयी.

जिसमें कर्म की प्रधानता बताया गया. मारकंडेय पुराण की कथा में आचार्य श्री कृष्णानंद जी पौराणिक उपाख्य शास्त्री जी ने कहा कि ब्रह्म लोक से लेकर पाताल लोक तक मृत्यु लोक है. यह 50 करोड़ योजन के परिमाप में स्थित है. इसके अंदर चाहे कोई भी व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों ना हो उसके द्वारा किए गए अच्छे अथवा बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है. महात्मा जैमिनि के प्रश्न के जवाब में पक्षियों ने कहा कि आपने जो प्रश्न किया कि द्रौपदी के पांच पति कैसे हुए, इसका कारण यह है कि इंद्र के पाप कर्मों का परिणाम उन्हें मिला तथा उनकी पत्नी शची, द्रौपदी बनकर अपने पति के कर्म में सहभागी बनी. इंद्र के प्रथम पाप का उल्लेख करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि त्वष्टा के पुत्र त्रिशिरा (विश्वरूप) का वध उन्होंने छल पूर्वक किया. उसी पाप के कारण उनका धर्म उनको छोड़कर धर्मराज में समाहित हो गया. इंद्र ने कपट पूर्ण व्यवहार से वृत्रा का वध किया. जिसके कारण इंद्र का बल इनको छोड़कर पवन देव में समाहित हो गया और इंद्र धर्म व बल से हीन हो गए. इंद्र ने जब अहिल्या के साथ दुष्कर्म किया तो इस पाप के कारण उनका रूप सौंदर्य विनष्ट होकर अश्विनी कुमार में चला गया. कालांतर में जब राक्षस गण (देवासुर संग्राम में जो मारे गए) जब भूमंडल पर राजा होकर धर्म के विरुद्ध धर्म करने लगे तब धर्म विग्रह भगवान नारायण की प्रेरणा से धर्मराज ने इंद्र के धर्म से युधिष्ठिर ,पवन देव ने इंद्र के बल से भीम ,अश्वनी कुमार ने इंद्र के रूप से नकुल सहदेव तथा इंद्र ने अपने बल के आधा बल से अर्जुन को कुंती तथा माद्री को माध्यम बनाकर पांडव के रूप में पांच भाई बनकर जन्म लिए. यह देखने सुनने तथा शरीर से पांच थे, किंतु तत्वतः एक ही इंद्र पांच रूप में दिख रहे थे. इधर शची स्वयं ही द्रौपदी बनकर अग्निकुंड से प्रकट हुई. उनके अवतार का मुख्य कारण था धर्म वीरता, धर्म की रक्षा एवं अधर्म का नाश. यहां यह अत्यंत विचारणीय है कि इंद्र के द्वारा जो भी कार्य किया गया था उसमें इंद्र के व्यक्तिगत स्वार्थ में भी त्रिलोक का हित साधन हो रहा था, सो इंद्र का दुस्साहस भी धर्म रक्षा में समर्थ हुआ है. हे विप्रवर जैमिनि जी तीनों लोक में सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए इंद्र ने अलग-अलग कर्म किए हैं, जो देखने में पाप जैसा दिख रहे हैं, लेकिन तत्वतः इन कर्मों के पीछे सनातन धर्म की रक्षा होने से वह निंदित नहीं बने. इधर एक ही इंद्र को पांच रूपों में देखकर धर्म- युधिष्ठिर, बल- भीम , पराक्रम – अर्जुन, रूप एवं विद्या तथा शील नकुल- सहदेव के रूप में अवतरित जानकर देवी शची ने द्रौपदी बनकर इन पांचों से विवाह कर पत्नी धर्म निभाया तथा पति के ऊपर लगे कलंक को धूमिल करने हेतु महाभारत का कारण बनकर पुनः अपने पति इंद्र को पूर्ववत धर्म, बल, पराक्रम व सौंदर्य से परिपूर्ण करके भार्या धर्म को पुण्य बना दिया. ऐसे में द्रौपदी का विवाह पांच पुरुषों से नहीं, अपितु अपने पति के पांच विशिष्ट गुणों से हुआ है, जो मूलतः एक ही थे. यही गूढ़ रहस्य उन पंछियों ने महात्मा जैमिनी को बताया. अतः यह कहना है कि एक स्त्री को पांच पति होना सर्वथा अनुचित है यह युक्ति संगत नहीं है. क्योंकि द्रौपदी का विवाह पांच व्यक्तियों से नहीं बल्कि इंद्र के धर्म ,बल ,पराक्रम सौंदर्य एवं रूप से हुआ था.

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