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आज ही के दिन 26 जून 1539 में हुआ था चौसा का ऐतिहासिक युद्ध

15वीं सदी में गंगा व कर्मनाशा नदी के संगम पर हुए मुगल शासक व अफगानी शासक के बीच हुए महज कुछ घंटे की युद्ध ने चौसा का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया और भारतीय इतिहास में बादशाहियत का नया युग का आगाज करा गया.

चौसा. 15वीं सदी में गंगा व कर्मनाशा नदी के संगम पर हुए मुगल शासक व अफगानी शासक के बीच हुए महज कुछ घंटे की युद्ध ने चौसा का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया और भारतीय इतिहास में बादशाहियत का नया युग का आगाज करा गया. आज ही के दिन 26 जून 1539 में अफगानी शासक ने महज एक घंटे के युद्ध में मुगल बादशाह को जान बचाने नदी में कूदकर भागने को मजबूर कर दिया था. बात मुगल साम्राज्य को शिकस्त देकर दिल्ली की तख्त पर कब्जा जमाने वाले अफगानी शासक शेरशाह की हो रही है. जिसने अपने महज पांच वर्षों के शासनकाल में दिल्ली से पेशावर तक ग्रैंड ट्रंक रोड, सरायखाने, पौधारोपण तथा सिक्कों का पहली बार प्रचलन किया जो आज भी भारत में विद्यमान है. देश में आज भी लागू राजस्व वसूली, भूमि पैमाइशी, संवाद सम्प्रेषण जैसी खोज शेरशाह की ही देन है. कुशल कूटनीति व गोरिल्ला युद्ध की बदौलत शेर खाँ ने जीता चौसा का युद्ध : मुगल सम्राट हुमायूं का सेनापति हिंदूबेग पर कब्जा कर वहां से अफगान सरदारों को भगा देना चाहता था, तो वहीं दूसरी तरफ मुगल भी पूरे भारत में सिर्फ अपना कब्जा जमाने चाहते थे. ऐसी स्थिति में अपने-अपने राज्य की विस्तार नीति को लेकर चलाये गये विजय अभियानों के दौरान मुगलों और अफगानों के बीच जंग छिड़ गयी और मुगल शासक हुमायूं एवं अफगान सरदार शेरशाह सूरी एक-दूसरे के प्रबल दुश्मन बन गये. वहीं जब मुगल सम्राट हुमायूं मुगल साम्राज्य के विस्तार के लिए अन्य क्षेत्रों पर फोकस कर रहा था और अफगानों की गतिविधियों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था. जिनका शेरशाह सूरी ने फायदा उठाया और आगरा, कन्नौज, जौनपुर, बिहार आदि पर कपना कब्जा जमा लिया एवं बंगाल के सुल्तान पर आक्रमण कर बंगाल के कई बड़े किले और गौड़ क्षेत्र में अपना अधिकार जमा लिया. जिसके बाद हुमायूं को शेरशाह की बढ़ती शक्ति जब बर्दाश्त नहीं हुआ और दोनों के बीच संघर्ष छिड़ गया. शेरशाह पराक्रमी होने के साथ-साथ एक कूटनीतिज्ञ शासक भी था, जिसने अपना एक दूत भेजकर मुगलों की सारी कमजोरियों का पता लगा लिया था और मुगलों से युद्ध के लिए सही समय का इंतजार करने तक मुगलों को शांति रूप से संधियों में उलझाये रखा था. फिर अचानक 25 जून, 1539 में उत्तर प्रदेश और बिहार बॉर्डर के पास कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक एक कस्बे के पास शेरशाह सूरी ने मुगलों की सेना पर मध्य रात के समय अचानक आक्रमण कर दिया. जिसके चलते अपनी जान बचाने के लिए कई मुगल सैनिकों ने गंगा नदी में कूदकर अपनी जान दे दी तो, बहुत से मुगल सैनिकों को अफगान सैनिकों द्वारा तलवार से मार दिया गया. ऐसे में मुगल सेना का काफी नुकसान हुआ और मुगल सम्राट हुमायूं कमजोर पड़ गया, जिसके बाद हुमायूं युद्ध भूमि छोड़कर वहां से गंगा में कूदकर भाग निकला और किसी तरह एक भिश्ती की मदद से अपनी जान बचायी और इस तरह अपनी कुशल कूटनीति के चलते शेरशाह सूरी की चौसा के युद्ध में जीत हुई थी. चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी की जीत के बाद उसे बंगाल और बिहार का सुल्तान बनाया गया. इसके बाद ही उसनेशेरशाह आलम सुल्तान-उल-आदित्य की उपाधि धारण की. चौसा के युद्ध के बाद अफगानों का प्रभुत्व भारत में काफी बढ़ गया और अफगानों ने आगरा समेत मुगलों के कई राज्यों पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया. चौसा के युद्ध में जीत की खुशी में शेरशाह ने अपने नाम के सिक्के ढलवाये. खुतबा पढ़वाया और इसके साथ ही फरमान जारी किये. चौसा के युद्ध के बाद मुगलों की शक्ति कमजोर पड़ गयी और मुगल सम्राट हुमायूं का लगभग पतन हो गया. चौसा के युद्ध के बाद 1540 ईसवी में हुमायूं और शेरशाह के बीच में बलग्राम और कन्नौज का युद्ध हुआ और इस युद्ध में भी हुमायूं को हार का सामना करना पड़ा और भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. तीन-तीन बादशाहों का उदय करने वाला चौसा गढ़ का राज्य पर्यटन विभाग चार करोड़ से करा रहा डेवलॉपमेंट : दिसंबर 2023 से ऐतिहासिक चौसा युद्ध स्थली का कायाकल्प की प्रक्रिया प्रारंभ है. बक्सर जिला मुख्यालय से 10 किमी पश्चिम चौसा अवस्थित शेरशाह की शौर्य स्थली को ग्रामीण पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप किया जा रहा है. यहां पर 26 जून 1539 में मुगल बादशाह हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह के मध्य युद्ध हुआ था. इसका विकास व सौदर्यीकरण राज्य पर्यटन विभाग द्वारा कराया जा रहा है. राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा तीन करोड़ नवासी लाख सतहत्तर हजार की राशि से ऐतिहासिक चौसा लड़ाई मैदान के विकास व सौदर्यीकरण के लिए राशि स्वीकृत की गयी थी. जिसमें प्रथम किश्त के रूप में एक करोड़ 94 लाख अठासी हजार पांच सौ रुपये की राशि से चौसा गढ़ को डेवलप किया जा रहा है. इस राशि से चौसा गढ़ की चहारदीवारी का जीर्णोद्धार, टिकट रूम, शौचालय, मुक्त खड़े चबूतरे का कार्य, मुख्य द्वार व पिछला द्वार, पार्क का जीर्णोद्धार, कंक्रीट सड़क, लैंड स्केपिंग, गुड अर्थ, सैंड स्टोन से पाथवे, पार्क में दस बेंच तथा 35 सोलर लाइट इत्यादि लगायी जा चुकी है. प्रथम फेज में कुछ काम अभी भी शेष है.

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