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Buxar News: अभियुक्त को बचाने के मामले में थानाध्यक्ष को शो कॉज

Show cause notice to SHO in the case of saving the accused

बक्सर कोर्ट.

डुमरांव थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष शंभू कुमार भगत की मुश्किलें बढ़ गई है, पॉक्सो की विशेष अदालत ने अपने तीन पेज के एक महत्वपूर्ण आदेश में डुमराव थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष शंभू कुमार भगत की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े किए है, कोर्ट ने आदेश की प्रति को डीआइजी और पुलिस अधीक्षक को अग्रिम कार्यवाही हेतु अग्रसारित भी किया है. बताते चलें की डुमराव थाना कांड संख्या 77/2025 में दाखिल जमानत के आवेदन की सुनवाई पोक्सो के विशेष न्यायाधीश अमित कुमार शर्मा की अदालत में की गई जहां उक्त मामला भारतीय न्याय संहिता की धारा 74 एवं 76 के तहत दर्ज किया गया था. दोनों दफाओं में महिला पर हमला संबंधित अपराध एवं उसके गरिमा तथा वस्त्र हरण को को लेकर दर्ज किए जाने का प्रावधान है जबकि पीड़िता एक नाबालिक थी तथा उसने स्वयं अपने हाथों प्राथमिकी दर्ज कराते हुए किए गए यौन उत्पीड़न के बारे में पुलिस को बताया था लेकिन प्राथमिकी दर्ज करने में पुलिस ने पॉक्सो की धाराओं को नहीं लगाया साथ ही पीड़िता को कमरे में बंद करने एवं अपहरण को लेकर भी कोई दफा नहीं लगाई गई थी. न्यायालय ने जमानत के आवेदन पर सुनवाई के समय काफी नाराजगी व्यक्त किया साथ ही आश्चर्य भी प्रकट किया है.

घटना 26 मार्च 2025 की है जब डुमरांव थाना की रहने वाली एक नाबालिक बच्ची दोपहर लगभग ढाई बजे घर से बाहर जा रही थी कि उसी गांव का रहने वाला लगभग 55 वर्षीय अभियुक्त ने उसे पकड़ लिया तथा जबरन कमरे में ले जाकर उसके निजी अंगों को छूने लगा जब वह जोर-जोर से बचाने के लिए चिल्लाने लगी तो अभियुक्त कमरे में ताला बंद कर फरार हो गया. मामले को लेकर ग्रामीणों ने 112 नंबर डायल कर पुलिस को सूचना दिया लेकिन उसके पहले गांव के मुखिया ने ताला खुलवाकर पीड़िता को रिहा कराया.

कोर्ट ने सुनवाई में इस बात पर गहरा आश्चर्य प्रकट किया है कि 2025 के इस युग में एक 54 वर्षीय व्यक्ति दिन के उजाले में पीड़िता को बंद कर ऐसे अपराध करने की कैसे हिम्मत कर सकता है.? सुनवाई में कोर्ट ने कई बिंदुओं पर विचार किया तथा आदेश में लिखा है कि घटना को 26 मार्च 2025 को अंजाम दिया गया था लेकिन अभियुक्त की गिरफ्तारी 12 जुलाई 2025 को महीनों बाद की गई. कोर्ट ने अपने आदेश में साफ-साफ लिखा है कि पुलिस ने जानबूझकर अभियुक्त का पक्ष लेकर उसे बचाने का प्रयास किया है तथा उसे अभी छोड़ देने से गवाहों को धमकाने की संभावना है, ऐसे में जमानत के आवेदन को खारिज करते हुए भारतीय दंड विधान की धारा 127(7) 137(2) एवं पोक्सो की धारा 10 एवं 18 को प्राथमिकी में जोड़ने के आदेश देते हुए थानाध्यक्ष को शो कॉज देने का आदेश दिया जाता है कि क्यों ना उसके खिलाफ पॉक्सो की धारा 21 के तहत कार्यवाही की जाए .बताते चले कि धारा 21 का उद्देश्य यौन अपराधों के दमन को रोकना एवं बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट को समय पर सुनिश्चित करना है ताकि जल्द से जल्द उन्हें न्याय मिल सके.

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