बक्सर.
शहर के रामरेखाघाट स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर परिसर में सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम द्वारा आयोजित 17 वें धर्म आयोजन के सातवें दिन गुरुवार को मार्कंडेय पुराण कथा में शक्ति के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या की गई. कथा में आचार्य श्री कृष्णानंद जी पौराणिक उपाख्य शास्त्री जी ने कहा कि मार्कंडेय पुराण में शक्ति के विविध रूपों का वर्णन किया गया है. कुल 13 अध्यायों में बताया गया है की शक्ति खुद को तीन रूपों में विभक्त करती है. पहली महाकाली, दूसरी महालक्ष्मी व तीसरी महा सरस्वती हैं. मुख्य रूप से ये तीनों स्वरूप शक्ति के हैं. तीनों रूपों द्वारा शत्रु संहार का विधिवत वर्णन किया गया है. संहार की अधिष्ठात्री देवी महाकाली ने मधु कैटभ नामक दैत्य का विनाश किया है. पालन की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी ने महिषासुर का नाश किया है और सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी महा सरस्वती ने शुंभ व निशुंभ सहित अनेकों दैत्यों को यमपुरी भेजा है. आचार्य श्री ने कहा कि इस पुराण में संसार में दानवीय शक्तियों की अभिवृद्धि, सृष्टि,पालन तथा संहार तीनों के लिए अभिशाप बताया गया है. अतएव जब-जब सृजन, पालन तथा विलयन में राक्षस वध किए गए तब-तब उन देवियों ने इनका संहार किया. यह तीनों शक्तियां त्रिदेवों के पास जीवन संगिनी के रूप में नित्य निवास करती है. भगवान श्री हरि के पास लक्ष्मी के रूप में शक्ति समस्त संसार का पालन करती है तथा पालन में बाधा आने पर उन तत्वों का स्वयं ही संहार करती है. यह वैष्णवी के नाम से जानी जाती है. यह अनंत बलशाली है एवं संपूर्ण सृष्टि का भरण पोषण करती है. उनके हाथ में कमल पुष्प हैं तथा धन की अधिष्ठात्री देवी हैं. इसी तरह मां सरस्वती ब्रह्मा जी तथा महाकाली भगवान शिव की अद्धांगिनी हैं. पक्षियों ने कहा है – हे विप्रवर यह संसार देवीमय है. शक्ति ही सब कुछ है जैसे धन के बिना धनवान, विद्या के बिना विद्वान ,रूप के बिना रूपवान गुण के बिना गुणवान असंभव है, उसी तरह शक्ति के बिना शक्तिमान होना भी सर्वथा असंभव है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है