24.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

महात्मा गांधी के लिए जब तिरहुत के कमिश्नर ने बिछाया था जाल, फंस गई थी ब्रिटिश सरकार

महात्मा गांधी का बिहार से पुराना नाता रहा. उन्होंने सत्याग्रह का पहला आंदोलन बिहार के चंपारण से ही शुरू किया था. जिसे रोकने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने पूरी जान लगा दी थी. ऐसी ही एक घटना मुजफ्फरपुर में हुई थी जब गांधी जी को जाल में फंसाने के लिए अंग्रेज कमिश्नर ने पूरी ताकत लगा दी थी. इस दौरान हुई घटनाओं को लेकर पढ़िए अनुज शर्मा और शशि चंद्र तिवारी की रिपोर्ट...

Independence Day: भारत की आजादी के लिए पहला सत्याग्रह महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण जिले में सन् 1917 में किया गया था. चम्पारण सत्याग्रह को कुचलने के लिए अंग्रेज सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. दो जुलाई 1914 में तिरहुत प्रमंडल के आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त हुए एल.एफ. मोरशेड ने महात्मा गांधी को रोकने के लिए जाल बिछाया था, लेकिन गांधी की सूझबूझ से दांव उल्टा पड़ गया और खुद ब्रिटिश सरकार इसमें फंस गई. सरकार को आत्मसमर्पण करना पड़ा.  

बिहार और उड़ीसा के उपराज्यपाल ई.ए. गेट ने मुख्य सचिव एच. मैकफर्सन के साथ मिलकर 5 जून को रांची में गांधीजी के साथ एक लंबी बैठक की. यहां एक समझौता हुआ जिससे किसानों को बड़ी राहत मिली और चंपारण से नील का दाग भी मिट गया. महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के पांचवें भाग के बारहवें अध्याय ‘नील का दाग’ में गांधी लिखते हैं, कि इसी दौरान उनको ईश्वर, अहिंसा और सत्य का साक्षात्कार हुआ.

राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को बताया था चंपारण के किसानों का दर्द

दिसंबर 1916 में लखनऊ में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में गांधी चंपारण का नाम भी नहीं सुने थे. यह भी नहीं जानते थे कि नील की खेती के कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है. चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल लखनऊ में गांधी से मुलाकात कर ने उनको बताया कि सदियों से चला आ रहा चंपारण के किसानों का शोषण दिन-ब-दिन बदतर होता जा रहा है. किसान नाराज़ हैं, लेकिन उन्हें राहत मिलती नहीं दिख रही है. ब्रिटिश शासकों ने तिनकठिया नामक एक व्यवस्था लागू की है. जिसके तहत किसानों को नील उगाने और कर चुकाने के लिए मजबूर किया जाता है. इसका पालन न करने पर पेड़ से बांधकर पीटना या मवेशियों को जब्त करना और खेतों और घरों की नीलामी करना आदि दंड दिये जाते हैं.

अंग्रेज कमिश्नर मोरशेड ने दी थी गांधी जी को धमकी

राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर बिहार आने को विवश हुए महात्मा गांधी पटना और फिर तिरहुत प्रमंडल के मुख्यालय मुजफ्फरपुर पहुंचे. गांधीजी ने मुजफ्फरपुर में रहने के दौरान अंग्रेज कमिश्नर मोरशेड से मुलाकात की. जिसका रवैया बहुत रुखा था. उसने गांधी को धमकाते हुए तिरहुत छोड़ देने की चेतावनी जारी कर दी. मोरशेड ने चंपारण के डीएम को पत्र लिखकर आगाह किया कि गांधी अगर वहां जाएं तो धारा 144 लगाकर उन्हें रोका जाए. वापस भेज दिया जाए. महात्मा गांधी ने बिना डरे मोतिहारी पहुंचे और गोरखबाबू के घर पर रहकर किसानों के हित में जुट गये.

हजारों की भीड़ उमड़ी, घबरा गए मजिस्ट्रेट

किसानों के उत्पीड़न का हाल जानने को जब वह हाथी पर बैठकर मोतिहारी से निकले एसपी के दूत ने बीच रास्ते में रोका. नोटिस देकर चंपारण छोड़ने को कहा. निर्वासन की आज्ञा का अनादर करने पर गांधी को कोर्ट में हाजिर रहने का समन मिला. कोर्ट के समन की खबर से पूरे चंपारण में चेतना जाग गई. गांधी के समर्थन में हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. ऐसा माहौल बना कि कोर्ट में जब गांधी पर मुकदमा चल रहा था तो सरकारी वकील, मजिस्ट्रेट सब घबराए हुए थे. सरकारी वकील ने तारीख मुलतवी की अपील की लेकिन गांधी ने सरकार के आदेश की नाफरमानी का अपराध स्वीकार कर लिया. महात्मा गांधी द्वारा कोर्ट में बयान पढ़ा गया.

10 अगस्त को हुई थी नील की खेती पर रोक लगाने की सिफारिश

यह बयान ही सत्याग्रह का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. इसके बाद भी कई ऐतिहासिक घटनाएं हुईं और अंत में ब्रिटिश सरकार को किसान हित में एक समिति का गठन करना पड़ा. महात्मा गांधी के नेतृत्व में गठित जांच समिति ने 10 अगस्त 1917 को नील की खेती पर रोक लगाने की सिफारिश की थी. 10 अगस्त का दिन चंपारण के किसानों के लिये काफी महत्वपूर्ण है. जिसके बाद 4 मार्च 1918 को बिहार एवं ओडीशा विधान परिषद के द्वारा चम्पारण एग्रेरियन बिल के द्वारा तीन कठिया नील की खेती के प्रथा के अंत के प्रस्ताव को पारित कर  दिया.

अप्रैल 1918 से नील की खेती की बाध्यता समाप्त

अप्रैल 1918 से नील की खेती की बाध्यता समाप्त हो गयी. महात्मा गांधी 10 अप्रैल 1917 को चंपारण पहुंचे. जिसके बाद 15 जुलाई 1917 को किसानों की स्थिति के आकलन के लिए एक समिति बनाई गयी. जिसमें कस्तूरबा गांधी, डॉ देव, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरणीधर प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, रामनवमी प्रसाद व डॉ राजेन्द्र प्रसाद शामिल थे. जांच समिति ने बेतिया,मोतिहारी, तुरकौलिया, राजपुर, पीपराकोठी, हरदिया, श्रीरामपुर छितौनी में हजारों किसानों का बयान रिकॉर्ड किया. जिसके बाद 10 अगस्त 1917 को जांच समिति ने तीन कठिया प्रथा को समाप्त करने की सिफारिश की.

यह भी पढ़ें: भागलपुर के मुकुटधारी बाबू ने टमटम पर मनाया था आजादी का पहला जश्न

क्या थी तीन कठिया नील की खेती

अंग्रेज सरकार द्वारा बनाई तीन कठिया प्रथा के अंतर्गत 20 कट्ठा खेती में तीन कट्ठा नील की खेती करना
अनिवार्य था. नील की खेती काफी कठिन था. इस खेती के विरोध में 1907-08 में मोतिहारी व बेतिया के किसानों ने उग्र आंदोलन किया. इस दौरान नील के फैक्ट्री के प्रबंधक ब्लूम्सफिल्ड नामक अंग्रेज की हत्या कर दी गयी.  जिसके फलस्वरूप किसानों पर अंग्रेजी हुकूमत का जुल्म और बढ़ गया.

सत्याग्रह यह महत्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु था इस घटना ने चंपारण की किसान अशांति को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ दिया. चंपारण संघर्ष को महात्मा गांधी ने जिस तरह से संभाला वह पूरी दुनिया के इतिहास में गंभीर नेतृत्व का एक आदर्श साबित हुआ.

डॉ राजीव झा,निदेशक यूजीसी, एचआरडीसी, बीआरए बिहार विवि मुजफ्फरपुर
Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel