Kolkata News: वरिष्ठ नक्सली नेता अजीजुल हक का सोमवार को कोलकाता में निधन हो गया. उनके निधन के साथ ही 1960 और 1970 के दशक में पूरे देश को हिलाकर रखने वाले बंगाल के उग्र वामपंथी इतिहास के एक रक्तरंजित अध्याय का भी अंत हो गया. अजीजुल हक एक तेजतर्रार कवि, राजनीतिक विचारक और भारत के नक्सली विद्रोह के अंतिम कद्दावर नेताओं में से एक थे. 83 साल की उम्र में कोलकाता के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. लंबे समय तक कारावास और यातनाओं ने उनके स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया था. 1989 में रिहा होने के बाद उन्होंने लेखन और विभिन्न जन अधिकारों के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया था.
लंबे समय से थे बीमार
अजीजुल हक का जन्म कोलकाता के हावड़ा में 1942 में हुआ था. हक नक्सल नेताओं की उस पीढ़ी से थे जो ‘बोंडुकर नोल-आई, खोमोतार उत्सा’ (राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से निकलती है) में विश्वास रखती थी. इस सिद्धांत हक के वैचारिक गुरु चारु मजूमदार ने लोकप्रिय बनाया गया था, जिन्होंने साठ और सत्तर के दशक में भारत में माओत्से तुंग के नारे को लोकप्रिय बनाया था. कवि, राजनीतिक विचारक और कभी भाकपा (माले) की दूसरी केंद्रीय समिति के प्रमुख रहे हक लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. घर पर गिर जाने से उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया था और उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था.
सीएम ममता बनर्जी ने जताया दुख
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया एक्स पर हक के निधन पर गहरी संवेदना जताई है. ममता बनर्जी ने उन्हें एक योद्धा बताया, जो अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कभी झुके नहीं. उनके निधन पर सीएम बनर्जी ने एक्स पर लिखा “मैं वरिष्ठ राजनेता अजीजुल हक के निधन पर अपनी संवेदना व्यक्त करती हूं. अजीजुल हक एक जुझारू और दृढ़ निश्चय नेता थे. अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. मैं उनके शोक संतप्त परिवार और सहयोगियों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करती हूं.” (भाषा इनपुट के साथ)