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बिहार के इस जिले में अलग तरीके से मनाई जाती है दिवाली, आतिशबाजी पर प्रतिबंध, जानिए अनोखी परंपरा

Diwali 2023: दिवाली में अब मात्र एक दिन शेष है. यह रौशनी का त्योहार होता है. इसे लेकर लोग तैयारियों में जुटे है. वहीं, एक ऐसी जगह है जहां अलग तरीके से इस त्योहार को मनाया जाता है. आतिशबाजी पर यहां प्रतिबंध रहता है. साथ ही दिवाली को मनाने का तरीका भी अलग है.

Diwali 2023: दिवाली में अब मात्र एक दिन शेष है. यह रौशनी का त्योहार होता है. इसे लकेर लोग तैयारियों में जुटे है. वहीं, एक ऐसी जगह है जहां अलग तरीके से इस त्योहार को मनाया जाता है. दिवाली का त्योहार भगवान राम के वनवास के बाद अयोध्या आगमन के खुशी में मनाया जाता है.इस दिन लोग आतिशबाजी के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. लोग अपने घरों में दीपक जलाते हैं. वहीं, कई लोग चाइनीज लाइटों से अपने- अपने घरों को सजाते है. इस पर्व को लोग धूम- धाम से मनाते है. दिवाली के त्योहार को लेकर बाजारों में भी रौनक देखने को मिल रही है. मिट्टी के दीपक, पटाखे, रंग- बिरंगी लाइटों से बाजार सजा है. लोग जमकर खरीददारी भी कर रहे हैं. वहीं, एक बिहार में एक ऐसी जगह है, जहां के लोग अलग तरीके से इस त्योहार को मनाते हैं. यह परंपरागत तरीके से इस त्योहार को मनाते हैं


महिलाएं मिट्टी के दीपक का करती हैं निर्माण

आधुनिक युग में थारू आदिवासियों ने अपनी परंपरा को नहीं भूलाया है. इस दिन आतिशबाजी पर पूरी तरीके से इनके बीच प्रतिबंध रहता है. यह पहले दिन दियाराई और दूसरे दिन सोहराई व सहभोज के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल से सटे गांवों में रहने वाले आदिवासी क्षेत्रों में सिर्फ मिट्टी का दीप ही जलाया जाता है. थारू जनजाति के लोग दिवाली का त्योहार मनाने में पटाखों और चाइनीज बल्ब का प्रयोग नहीं करते हैं. यहां की महिलाएं खुद अपने हाथों से मिट्टी के दीपक का निर्माण करती है. खास बात यह है कि यहां चिकनी मिट्टी भी नहीं मिलता है. यह बाहर जाकर मिट्टी लाती है. इसके बाद इनसे दीपक को खुद बनाती है.

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मवेशियों को लगाया जाता है लेप

दियाराई के दिन शाम होने के साथ ही मिट्टी के दीयों को जलाया जाता है. सभी आदिवासी गांव से बाहर मिट्टी के टीले पर दीप को रख देते हैं. इसके बाद इसे कुएं के पास रखा जाता है. ऐसा करने को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. पटाखों पर यहां पूरी तरीके से प्रतिबंध रहता है. पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीव की सुरक्षा को लेकर यहां आतिशबाजी नहीं होती है. दिवाली के दूसरे दिन सोहराई मनाई जाती है. इसमें हल्दी और मिट्टी का लेप तैयार कर मवेशियों को लगाया जाता है. सालों पुरानी परंपरा के साथ यहां के लोग दिवाली का त्योहार मना रहे हैं. यह प्रकृति के लिए वरदान भी है. साथ ही इस इलाके में इसे एकता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है.

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शादियों में दहेज नहीं लेते थारू समाज के लोग

बिहार के पश्चिम चंपारण में रहने वाले थारू समाज के लोगों की कई खासियत है. यहां के लोग शादियों में दहेज नहीं लेते है. इस कारण भी इन लोगों की खूब तारीफ होती है. नए जोड़े को यह समाज भगवान का दर्जा देता है. यहां वर पक्ष शादी का प्रस्वाव लेकर वधु पक्ष के पास जाता है. इसके बाद रिश्ता पसंद आने पर मात्र पांच रुपए और धोती के नेग पर ही शादी हो जाती है. शादी में अगुआ की अहम भूमिका होती है. यह लड़का का जीजा या फूफा होता है. पश्चिम चंपारण के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से लेकर भिखनाठोरी तक जंगल के सीमांचल में थारू आदिवासी रहते हैं. आधुनिकता के इस दुनिया में इन्होंने आज भी अपनी पुरानी परंपरा को बचाकर रखा हुआ है.

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तोहफे में अनाज देते हैं रिश्तेदार

थारू समाज में अगुआ की ओर से ही शादी की पूरी तैयारी भी की जाती है. यहां रिश्तेदार शादियों में अनाज तोहफे में देते है. इस समाज के कई लोग पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर व अधिकारी बन चुके हैं. इसके बाद भी यह बिना दहेज के ही शादी करते हैं. यह लोग शिक्षा के प्रति काफी जागरूक है. बताया जाता है कि यहां की 70 प्रतिशत की आबादी पढ़ी लिखी है. देशभर में यह अपनी सेवाएं देते हैं. पूर्वजों की बनाई गई संस्कृति को इन्होंने आज भी कायम रखा है.

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Sakshi Shiva
Sakshi Shiva
Worked as Anchor/Producer from March 2022 to January 2023 at DTV Bharat TV channel. Have worked with Sixth Sense weekly newspaper from August 2021 to January 2022. Have done 21 days internship at Clinqon India as a Social media intern. Post Graduated in Journalism and Mass Communication from Central University of South Bihar, Gaya. Graduated in English from Purnea Mahila College, Purnea.

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