गोपालगंज. जिले की मिट्टी को गन्ना की खेती के लिए जाना जाता था. अंग्रेजों के शासन से इसका ख्याति गनांचल के नाम से है. अब बदलाव आ रहा है. सासामुसा चीनी मिल 2017 में बंद हो गया. किसानों का मोह गन्ना से भंग हो गया. ऐसे में हिमालय से जुड़ा एक फल, जिसे ठंडी जलवायु की जरूरत होती है, अब यहां की तेज़ धूप में भी उग रहा है. सेब, लाल और रस भरे चॉकलेटी है. जो कभी नामुमकिन लगता था, वह अब जिले के किसानों के लिए हकीकत बन चुका है.
बागवानी मिशन के तहत मिला था सेब का पौधा
गोपालगंज सदर प्रखंड के एकडेरवां गांव की किसान ध्रुप कुमार सिंह ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका छोटा-सा प्रयोग एक सफल सेब बागान में बदल जायेगा. 2021 में उन्हें कृषि विभाग के बागवानी मिशन से 12 सेब का पौधा मिला था, जो अब बढ़कर हर साल तीन क्विंटल से ज्यादा फल देने वाला बाग बन चुका है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगले पांच सालों में जिले के और भी इलाकों में सेब की खेती फैल सकती है. जो कभी असंभव लगता था, आज हकीकत बन चुका है. अब मीठे सेबों की खुशबू से महकने लगी है.
सपना जो हकीकत बना
एकडेरवां के रहने वाले सेब की बागवानी लगाने वाले ध्रुव कुमार सिंह पेशे से अधिवक्ता है. वकालत के बाद बागवानी उनका प्रमुख शौक है. गांव के ही पास प्रयोग के तौर पर 20 कट्ठा खेत में बागवानी किये है. बाजार में हिमाचल और कश्मीर के सेब जहां सीजन में 80 से 120 तो गर्मी में 230 रुपये किलो बिकते हैं, अब यहां का भी सेब उनको टक्कर देगा.
शुरुआत में लोग हंसे, अब देख कर हो रहे प्रभावित
अधिवक्ता ध्रुव कुमार सिंह बताते है कि एक बिगहा खेत में पहले नींबू, अमरूद और मौसमी उगाते थे. सेब उगाना एक कल्पना जैसा था. शुरुआत में हमें भी भरोसा नहीं था. पौधे को पानी दिया, जैविक खाद डाली और देखभाल की. एक साल बाद उस पर सेब उगते दिखे.” गांव वालों ने मज़ाक उड़ाया, “गन्नाचंल में सेब? नामुमकिन! लेकिन ध्रुव कुमार सिंह के पौधे ने सबको गलत साबित कर दिया. चौथे ही साल पेड़ ने 40 किलो सेब दिये.गर्मी में भी लहलहा रहे सेब
इस चमत्कारी बदलाव का रहस्य हिमाचल-99 सेब की खास प्रजाति है, जो अत्यधिक गर्मी सहन कर सकती है. “यह वैरायटी 40°C से अधिक तापमान में भी फल देती है. नतीजा यह रहा कि पौधे लगाकर बाग को 12 पेड़ों तक बढ़ा लिया. अब तो ज्यादा पानी भी नहीं लगता. सेब के पेड़ परिपक्व होने के बाद बहुत कम सिंचाई की जरूरत होती है. “चार साल बाद इसे हर 15 दिन में एक बार पानी देना पड़ता है,जो कभी हंसे, अब वही मांग रहे पौधे
अब वही लोग, जो पहले हंसते थे, वकील साहब से पौधे मांग रहे हैं. हंसते हुए वह कहते हैं, “जो पहले मानते नहीं थे, अब वही पौधा मांग रहे हैं.” उधर जिला उद्यान पदाधिकारी आकश कुमार ने बताया कि सेब की बागवानी प्रयोग के तौर पर सरकार ने शुरू कराया. सफल होने लगा है. अब इसे विस्तार देकर किसानों से कराने की तैयारी चल रही है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है