राकेश कुमार, फुलवरिया
गोपालगंज के फुलवरिया गांव की सरजमीं इन दिनों कौमी एकता और गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बनकर पूरे देश को प्रेम और सौहार्द का संदेश दे रही है. मुहर्रम के पाक महीने में यहां के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए जो उदाहरण पेश कर रहे हैं, वह अद्वितीय और प्रेरणादायक है. गांव में हिंदू युवक मुस्लिम भाइयों के साथ मिलकर ताजिये बनाते हैं, मातमी जुलूस में शामिल होते हैं और हर मोड़ पर इंसानियत की सेवा व एकता का पैगाम देते हैं. यहां की फिजाओं में मोहब्बत घुली हुई है, और धर्म की सीमाओं से परे इंसानियत की बुनियाद मजबूत होती जा रही है. यह नजारा केवल देखने वालों को नहीं, बल्कि महसूस करने वालों को भी गहराई से छू जाता है.तीन हिंदू महिलाएं मुहर्रम पर रखतीं हैं रोजा
गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि तीन हिनंदू महिलाएं, जो पिछले 20 वर्षों से मुहर्रम पर रोजा रख रही हैं. ये हैं संतोषी देवी, राजकुमारी देवी और बबीता देवी. तीनों की कहानियां अलग हैं, लेकिन विश्वास एक है – खुदा पर भरोसा. संतोषी देवी ने अपने बेटे की जान बचाने के लिए रोजा रखा था, और तब से हर साल मुहर्रम में रोजा रखती हैं. राजकुमारी देवी को संतान सुख मिला तो उन्होंने खुदा का शुक्र अदा करने के लिए रोजा रखना शुरू किया. बबीता देवी ने पारिवारिक कठिनाइयों के समय मुहर्रम में रोजा रखा और उन्हें राहत मिली, जिससे उनका विश्वास और गहरा हो गया. इन महिलाओं को न आलोचकों की चिंता है, न समाज की टीका-टिप्पणी की. उनका विश्वास है कि खुदा इंसान के दिल देखता है, धर्म नहीं. फुलवरिया की यह तस्वीर उस भारत की झलक देती है जहां प्रेम, सहिष्णुता और साझा विरासत आज भी जीवित है. यह गांव बताता है कि सच्ची आस्था मजहब से ऊपर होती है और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है