राकेश कुमार, फुलवरिया
आजादी के बाद से कोयला देवा की महादलित बस्ती में शिक्षा एक सपना मात्र थी. मुसहर समाज के किसी भी व्यक्ति ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था. पीढ़ियों से शिक्षा से वंचित यह समाज अब बदलाव की राह पर है. अब यहां के बच्चे स्कूल ड्रेस में नजर आते हैं और अंग्रेजी के शब्द बोलते हैं. यह गांव के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है. इस बदलाव की कहानी की नींव रखी कोयला देवा राजकीय मध्य विद्यालय के हेडमास्टर दिलीप पटेल ने. उन्होंने गांव के मुसहर समुदाय के बीच बैठ-बैठकर उन्हें समझाया और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया. छह महीने की अथक मेहनत ने रंग लाया. अब बस्ती के 130 से अधिक बच्चे एक किलोमीटर दूर स्कूल जाकर नियमित पढ़ाई कर रहे हैं. दिलीप पटेल की दूरदृष्टि, संकल्प और ईमानदार प्रयासों ने उस समाज में शिक्षा का अलख जगाया है, जिसे लंबे समय से समाज और व्यवस्था ने हाशिए पर रखा था. कोयला देवा का यह प्रयास सिर्फ एक स्कूल की सफलता नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मिसाल है. यह साबित करता है कि यदि नेतृत्व ईमानदार हो और प्रयास दृढ़ निश्चयी हों, तो कोई भी समाज अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर हो सकता है. राजकीय मध्य विद्यालय कोयला देवा की यह पहल सामाजिक जागरूकता और शैक्षिक नवचेतना का प्रतीक बन चुकी है.ट्रैक्टर से पढ़ने स्कूल आ रहे छात्र
खास बात यह है कि मुसहर बस्ती के एक जागरूक व्यक्ति राहुल मंडल ने तो अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉली को ही बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए समर्पित कर दिया है. प्रतिदिन दो खेप में ट्रैक्टर-ट्रॉली के जरिये बच्चे स्कूल पहुंचते हैं. बच्चे सुबह नहा कर तैयार रहते हैं और अभिभावक खुद दरवाजे पर खड़े होकर बच्चों को स्कूल के लिए विदा करते हैं.योजनाओं का लाभ देकर शिक्षकों ने पायी उपलब्धि
शिक्षा को हर बच्चे तक पहुंचाने का संकल्प लिया. इसके तहत उन्होंने अपने सहकर्मी शिक्षकों के साथ महादलित बस्ती में कई बार दौरा किया. दर्जनों बैठकों के माध्यम से उन्होंने समाज के लोगों को शिक्षा के महत्व को समझाया. उन्होंने बताया कि विद्यालय में निःशुल्क नामांकन, मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति, ड्रेस, किताबें, फर्नीचर, शुद्ध पेयजल और बेहतर भवन जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं. धीरे-धीरे मुसहर समाज के लोग इस पहल से जुड़ते गये और अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे. सत्र 2025-26 में विद्यालय में कुल पांच सौ से अधिक छात्र-छात्राओं का नामांकन हुआ है, जिनमें अधिकतर संख्या मुसहर समाज के बच्चों की है. बच्चों की उपस्थिति प्रतिदिन बढ़ रही है, जो यह दर्शाता है कि शिक्षा को लेकर अब मुसहर समाज में सकारात्मक सोच विकसित हो चुकी है.ग्रामीणों की नाराजगी भी झेली
कोयला देवा की महादलित बस्ती में बच्चे सुबह से खेलते थे. जो थोड़ा बड़ा हुआ वह खेतों में काम करने चला गया. पढ़ाई क्या होती है उनको पता नहीं था. शिक्षक दिलीप पटेल अपने शिक्षकों के साथ जब गांव के लोगों के बीच बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अपील करने गये, तो उन्हें ग्रामीणों के आक्रोश का सामना भी करना पड़ा. लोगों ने स्कूल भेजने से इंकार कर दिया. हेडमास्टर दिलीप पटेल हार नहीं माने. स्कूल के शिक्षकों ने भी उनको साथ दिया. फिर संकल्प के साथ गांव में हेडमास्टर गये. निःशुल्क नामांकन, ड्रेस, भोजन, पानी और अच्छा भवन की बात समझाये तो गांव शोभन मंडल अपने बच्चे राजेंद्र मंडल को स्कूल भेजने को राजी हुए. उसके बाद शिक्षकों काे भी उम्मीद बढ़ी और लोगों को बता-बता कर छह माह के प्रयास से सोच बदलने में सफल हुए तो बच्चे स्कूल आने लगे. इस सत्र में 100 से अधिक बच्चों का नामांकन हुआ है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है