वैशाली. वैशाली का ऐतिहासिक अभिषेक पुष्करणी अब उपेक्षाओं के कारण अपनी ऐतिहासिकता खोने के दहलीज पर खड़ा दिख रहा है. अव्यवस्था और प्रशासनिक अनेदखी के कारण ये सरोवर ना होकर गंदगी कचरे के कारण कोई गंदा तालाब नजर आने लगा है. सरोवर के चारों तरफ फैले जंगल, झाड़ एवं पोखर के भिंडा पर कुड़ा कचरे का लगा अंबार इसकी उपेक्षा का गवाह बना हुआ है. इसके सौंदर्यीकरण के नाम पर पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, मगर स्तिथि जस की तस है. पुष्करणी के चारों तरफ लगे लोहे का ग्रिल टूट कर गिर रहा है. चारों छोर पर बने बाॅक्स की भी हालत काफी जर्जर हालत में है. सरोवर के चारों ओर किये गये सोलिंग में लगाये गये ईंट उखड़ रहे हैं, वही चारों ओर लगे स्ट्रीट लाइट भी महज शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. इसी वर्ष पोखर के विकास के लिए उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने की थी 30 करोड़ रुपये देने की घोषणा : ऐतिहासिक इसके पास ही हर वर्ष लगने वाले वैशाली महोत्सव में इसी वर्ष उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने भी इस पोखर के विकास के लिए 30 करोड़ की राशि देने की बात कही थी. वैशाली के ऐतिहासिक स्थलों को देखने काफी संख्या में श्रीलंका, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैंड, जापान आदि देशों के पर्यटक आते हैं. साथ ही पूरे देश से लोग इस ऐतिहासिक स्थल को देखने आते है. ऐतिहासिक अभिषेक पुष्करणी की दुर्दशा देख लोग काफी आश्चर्यचकित होते हैं, की आखिर इसकी हालत ऐसी क्यों बनी हुई है. पुष्करणी के पवित्र जल से लिच्छवी और वज्जी संघ के सदस्यों को कर्तव्य निर्वाहन की दिलायी जाती थी शपथ : इतिहासकारों के अनुसार यही वह मंगल अभिषेक पुष्करणनी है, जहां लिच्छवी वंश और वज्जी संघ के सदस्यों को इस पुष्करणी के पवित्र जल से अभिषिक्त कर कर्तव्य निर्वहन की शपथ दिलायी जाती थी. इतना ही नहीं बौद्ध धर्म ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि लिच्छवी गणराज्य की प्रजा जब प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त थी, यहां महामारी फैली थी और दुर्भिक्ष की स्तिथि थी, तो ऐसी परिस्थिति में भगवान बुद्ध ने लिच्छवियों के बुलावे पर वैशाली पहुंचकर एक कल्याणकारी सूत्र की रचना की एवं इसी पवित्र अभिषेक पुष्करणी से जल लेकर संपूर्ण वैशाली के क्षेत्रों में परिक्रमा किया एवं सूत्र पाठ किया गया. इतना ही नहीं इतिहास के पन्नों में यह भी वर्णित है कि तत्कालीन भारत की तमाम पवित्र नदियों से जल लाकर इसमें रखा गया था. इस पुष्करणी की पवित्रता को अक्षुण बनाये रखने के लिए संपूर्ण पुष्करणी को लोहे के जाल से ढककर रखा जाता था. वर्ष 1957-58 में हुई खुदाई में पोखर 1420 फीट लंबा और 660 फीट था चौड़ा : सन 1957-58 में के पी जायसवाल शोध संस्थान के निदेशक डाॅ एएस अल्केतर ने वर्तमान पोखर की खुदाई अपनी निदेशन में करवायी. इनके द्वारा प्रेषित उत्खनन प्रतिवेदन में इसकी लंबाई 1420 फिट और चौड़ाई 660 फिट थी. लेकिन आज हालत यह है कि इस अभिषेक पुष्करणी का पानी सूख गया है, थोड़ा बहुत जो पानी है, वह भी काफी दूषित हो गया है तथा जलीय पौधे से पटा पड़ा है. इस पुष्करणी के दक्षिण छोड़ पे विश्व शांति स्तूप है. वहीं इसके उत्तरी छोर पर रैलिक स्तुप एवं पुरातत्व संग्रहालय है, जिसे देखने काफी संख्या में देशी एवं विदेशी पर्यटक आते हैं. ऐसे में इस ऐतिहासिक पुष्करणी को देख तथा इसके इतिहास को जानने वाले पर्यटक को काफी हैरानी होती है कि आखिर इसकी दुर्दशा इस तरह की क्यों है. वैशाली के विकास को लेकर सरकार का रवैया काफी उदासीन दिख रहा है. अगर ईमानदारी पूर्वक वैशाली का विकास किया जाये, तो वैशाली आने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ेगी और वैशाली का चौमुखी विकास होगा. सत्य प्रकाश श्रीवास्तव, पर्यटक लोकतंत्र की आदि भूमि, भगवान महावीर की जन्मभूमि, भगवान बुद्ध की कर्मभूमि एवं आम्रपाली से जुड़ी यह धरती आज भी उपेक्षित है, जबकि बोधगया, राजगीर आज वैशाली से ज्यादा विकसित है. वैशाली का भी समुचित विकास होना चाहिए, ताकि यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके. दिग्विजय नारायण, स्थानीय पर्यटक स्थलों के आसपास सार्वजनिक शौचालय, शुद्ध पेयजल, यात्री शेड, वाहनों के लिए पार्किंग स्थल, सड़क किनारे लाइटिंग आदि नहीं होने से वैशाली भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों को काफी परेशानी होती है. यहां के ऐतिहासिक पर्यटक स्थलों में एक अभिषेक पुष्करणी है, जिसका अपना एक इतिहास है. जलीय पौधे से पटा इस पोखर की उपेक्षा ही वैशाली के विकास की कलई खोल रही है. डॉ विनय पासवान, स्थानीय ऐतिहासिक अभिषेक पुष्करणी सरोवर के जीर्णोद्धार को लेकर योजना स्वीकृत हुई है. जल्द ही इसका जीर्णोद्धार कार्य शुरु करवाया जायेगा. अंजनी कुमार, बीडीओ, वैशाली प्रखंड
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