हाजीपुर. शिक्षा के क्षेत्र में फिल्म और रंगमंच की भूमिका विषय पर सोमवार को सेमिनार का आयोजन किया गया. यह आयोजन साहित्य-संस्कृति की संस्था बाबू शिवजी राय मेमोरियल लाइब्रेरी की ओर से आयोजित किया गया. इसके मुख्य वक्ता ऑस्कर के लिए नामित हुई फिल्म चंपारण मटन के लेखक और निर्देशक रंजन उमाकृष्ण कुमार तथा वरिष्ठ रंगकर्मी व नाट्य निर्देशक क्षितिज प्रकाश थे. शहर के सिनेमा रोड स्थित लाइब्रेरी के सभाकक्ष में कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ के स्नातक व रंग निर्देशक कुमार वीरभूषण ने की. एफटीआइ, पुणे के प्रशिक्षित फिल्मकार रंजन उमाकृष्ण कुमार ने फिल्म को जीवंत, तकनीकीपूर्ण और सर्वाधिक प्रभावोत्पादक कला के रूप में रेखांकित करते हुए कहा कि फिल्म पुस्तकों के टेस्ट को घटना में बदलती है और दर्शकों को घटना का हिस्सेदार बना देती है. दर्शकों के दिल और दिमाग में स्थायी रूप से अंकित ही नहीं होती, बल्कि फिल्म आगे की कल्पना को भी खोल देती है. यदि शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण व अध्यापन कार्य के लिए फिल्म को माध्यम बनाया जाये, तो इससे पठन-पाठन आसान और रोचक होगा. शिक्षा में फिल्म माध्यम के उपयोग से छात्रों में सीखने के प्रति रुचि बढ़ेगी, साथ ही रोजगार के अवसरों का भी विकास होगा. वहीं, नाट्यगुरु व करीब 50 नाटकों के निर्देशक क्षितिज प्रकाश ने रंगमंच विधा की चर्चा करते हुए कहा कि किताबों में छपी कविता, कहानी, वृतांत, भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास आदि को मंच पर प्रस्तुत करने और सरलीकरण करने की क्षमता नाट्यकला में होती है. पंचम वेद नाट्य कला छात्रों में उबाऊपन खत्म कर सकती है और अध्ययन में लालित्य भर कर रोचक बना सकती है. आज सभी स्कूल बोर्ड के विद्यालयों में बाल रंगमंच की कार्यशालाएं हो रही हैं, जिससे छात्रों के व्यक्तित्व का विकास हो रहा है. फिल्म हो या रंगमंच, छात्रों में रुचि और रोचकता भरेगा तथा छात्रों को सृजनशील बनायेगा. इस मौके पर शिक्षक राजेश पराशर, विवेक मिश्रा, रंगकर्मी किरण कुमारी, विवेक कुमार, कर्नल कुमार, अनीश कुमार, आलोक उमाकृष्ण, सुष्मिता भारती आदि ने फिल्म तथा रंगमंच क्षेत्र की चुनौतियों और संभावनाओं के बारे में दोनों से अनेक प्रश्न किये.
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