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Motihari : शिक्षकों को पढ़ाने और छात्रों को सीखने की स्वतंत्रता ही होती है लोकतांत्रिक देश की असली पहचान : प्रो. मोरध्वज

शिक्षा नीतियां एवं भारत में उच्च शिक्षा विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया.

केविवि में शिक्षा नीतियां एवं भारत में उच्च शिक्षा विषय पर व्याख्यान मोतिहारी. महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के शैक्षिक अध्ययन विभाग द्वारा शिक्षा नीतियां एवं भारत में उच्च शिक्षा विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष प्रो. मोरध्वज वर्मा थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता समाज विज्ञान विद्याशाखा के संकायाध्यक्ष प्रो. सुनील महावर ने की.हिंदी विभाग के आचार्य राजेन्द्र सिंह द्वारा मुख्य अतिथि को विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठित शोध-पत्रिका ज्ञानाग्रह की प्रति भेंट की गई. प्रो. मोरध्वज वर्मा ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था के ऐतिहासिक विकास क्रम को विस्तार से प्रस्तुत करते हुए लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति (1835), वुड डिस्पैच (1854), प्रमुख विश्वविद्यालयों की स्थापना, पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा की स्थिति और वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख बिंदुओं पर विश्लेषणात्मक चर्चा की. उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक परिवर्तन तभी संभव है, जब हम सकल घरेलू उत्पाद का कम-से-कम छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की नीति को धरातल पर उतारने के लिए ठोस प्रयास करें. उन्होंने सुझाव दिया कि यदि बजट में विवेकपूर्ण संतुलन स्थापित किया जाए तो यह लक्ष्य कठिन नहीं है. प्रो. वर्मा ने भारतीय लोकतंत्र में शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार रक्षा क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप सीमित होता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा को भी स्वतंत्र और निर्बाध होना चाहिए. शिक्षकों को पढ़ाने और छात्रों को सीखने की स्वतंत्रता ही किसी भी लोकतांत्रिक देश की असली पहचान होती है. प्रो. सुनील महावर ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षकों को शिक्षण और शोध कार्यों के लिए अधिकतम समय दिया जाना चाहिए ताकि वे शिक्षा की गुणवत्ता को सुदृढ़ कर सकें. कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी मनीष कुमार ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रश्मि श्रीवास्तव ने किया. इस अवसर पर हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी श्रीवास्तव, डॉ. मनीषा रानी, डॉ. पाथलोथ ओमकार, सुश्री कंचन, सुश्री अर्चना, सुश्री रितु, सुश्री मनीषा राय, श्री चंदन, सुश्री सोमा तांती, श्री विनय, श्री मोहन, श्री कनाई, श्री प्रणब, श्री सुमित सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

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