Motihari : पीपराकोठी. भाकृअनुप-राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर ने लीची किसानों के हित में विभिन्न वैज्ञानिक एवं तकनीकी जानकारी देते हुए बताया है कि किसानों को जागरूक किया जाना आवश्यक है, ताकि लीची की अधिक उत्पादन हो सकें. इस संबंध में केविके प्रमुख डा अरविन्द कुमार सिंह ने बताया कि अप्रैल माह में लीची में किए जाने वाले कार्य को कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से लीची किसानों को जागरूक किया जा रहा है.
कहा कि शाही किस्म में फल लौंग का आकार ले चुका है तो किसान भाईयों को लीची में निम्नलिखित कार्य को विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. पेड़ों के थालों में हल्की सिंचाई करें : 8-12 वर्ष के पेड़ों में 350 ग्राम यूरिया एवं 250 ग्राम पोटाश (एमओपी) का व्यवहार करें और 15 वर्ष के उपर पेड़ों पर 450-500 ग्राम यूरिया एवं 300 से 350 ग्राम पोटाश का व्यवहार करें. छत्रक के बाहरी फैलाव से 1 मीटर अंदर की तरफ जमीन पर 2 फीट चौड़ाई में पेड़ के चारों तरफ गोलाई में उर्वरक डालकर कुदाल/फावड़ा से मिट्टी में मिला दें. ध्यान रहें कि उर्वरकों का प्रयोग पर्याप्त नमी होने पर ही करें.रोग से बचाव के लिए कीटनाशक का करें छिड़काव
लीची फल बेधक (बोरर) कीट से बचाव के लिए थियाक्लोप्रिड (21प्रतिशत एस.सी) 0.6 मिली/लीटर पानी अथवा नोवाल्यूरान 10 ई.सी. 1.5 मिली/लीटर या संयुक्त उत्पाद (नेवाल्यूरान 5.25% एवं इन्डोक्साकार्ब 4.5%) एस.सी. 1.5 मिली/लीटर दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें. फल बड़ी लौंग के आकार के हो जाने के बाद ही दवा का छिड़ाकाव करें. मंजर/झुलसा एवं अन्य रोग से बचाव के लिए कीटनाशक के साथ ही कवकनाशी थायोफेनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें. अच्छे परिणाम के लिए कीटनाशी/कवकनाशी के साथ स्टिकर 0.3 मिली./लीटर या सर्फ एक चम्मच प्रति 15 लीटर पानी में प्रयोग अवश्य करें. इस तरह से देख भाल करने से लीची के अच्छे फल एवं उत्पादन में वृद्धि होगी.
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