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नाटक ‘पंचलाइट’ में कलाकारों ने दिखाये ग्रामीण परिवेश की झलक

नाटक पंचलाइट

आजादी के कालखंड के दौरान गांवों की अशिक्षा पर भी किया प्रहार

कलाभवन नाट्य विभाग के कलाकारों ने दी नाटक की दमदार प्रस्तुति

पूर्णिया. ‘पंचलाइट के चक्कर में हम तो सुबह से चूल्हा-चौका भी ना किए, यही सोचे थे कि पंचलाइट आएगा तो गुजिया बनाकर पूरे टोला को खिलाएंगे लेकिन अब ना ई पंचलाइट जलेगा ना ही गुजिया बनेगी.’ इसी तरह के संवादों के साथ कलाभवन नाट्य विभाग के कलाकारों ने कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी पर आधारित नाटक ‘पंचलाइट’ की प्रस्तुति देकर न केवल आजादी के कालखंड में बिहार के ग्रामीण परिवेश की झलक दिखायी बल्कि अशिक्षा पर भी करारा प्रहार किया. यह अवसर था विद्या बिहार आवासीय विद्यालय परोरा में आयोजित रेणु स्मृति पर्व के समारोह का जिसमें कला भवन नाट्य विभाग के कलाकारों ने नाटक की दमदार प्रस्तुति दी. पूर्णिया के वरिष्ठ रंगकर्मी और बिहार कला पुरस्कार भिखारी ठाकुर अवार्ड से सम्मानित विश्वजीत कुमार सिंह छोटू ने इसका निर्देशन किया. करीब 45 मिनट चले इस नाटक में निरन्तर हास्य और मनोरंजन का माहौल बना रहा. नाटक के अनुरुप सभी दृश्यों में क्षेत्रीयता का बोध बनाए रखना एक बड़ी चुनौती थीऔर सभी कलाकार अपनी-अपनी भूमिका में जीवंत नजर आए और यही भाव दर्शकों को अंत तक नाटक से बांधे रखा. नाटक में सभी कलाकारों ने अपनी भूमिका से दर्शकों को काफी प्रभावित किया. निर्देशक विश्वजीत कुमार सिंह द्वारा नाटक में संगीत,हास्य और प्रेम, और पंचायत का दृश्य दर्शाते हुए नाटक की सफल प्रस्तुति दी गई. इस नाटक में पूर्णिया के वरिष्ठ रंगकर्मी अजीत कुमार सिंह, अंजनी श्रीवास्तव, गरिमा कुमारी, प्रवीण कुमार, सुमित कुमार, अभिनव आनंद, मीरा झा, साक्षी झा, अवधेश कुमार, और झारखंड के दिनकर शर्मा आदि कलाकारों ने अपनी भूमिका को जीवंत कर दर्शकों को नाटक से जोड़ दिया. विशेष सहयोग कुंदन कुमार सिंह एवं राजरोशन का रहा. नाटक में संगीत की मुख्य भूमिका थी जिसमें हारमोनियम और ढोलक पर रामपुकार टूटू, खुशबु स्पृया, संगीत झा ने निरन्तर संगीत के साथ-साथ नाटक की लय और ताल को भी बांधे रखा.

ग्रामीण जीवनशैली पर आधारित है नाटक की कहानी

कहानी ‘पंचलाइट’ में एक छोटे से गांव के लोगों की जीवनशैली और उनकी समस्याओं का चित्रण किया गया है. गांव के लोग अशिक्षित हैं और एक मेले से पेट्रोमैक्स खरीदते हैं, जिसे वे पंचलाइट कहते हैं. पंचलाइट को जलाने की समस्या आती है क्योंकि गांव के लोग इसे जलाना नहीं जानते. गोधन नामक युवक को यह काम करने के लिए बुलाया जाता है. इस कहानी में गोधन और मुनरी का प्रेम प्रसंग को निर्देशक में पंच लेट जल जाने के बाद दोनों के प्रेम को शादी के बंधन में दोनों को जोड़कर नाटक को चार चांद लगा दिया. ग्राम्य परिवेश पर आधारित कहानी के नाट्य रुपांतर को मंच पर कुछ इस कदर जीवंत दर्शाया गया मानो कुछ देर के लिए लोग उस जमाने के गांव में बैठकर सब कुछ अपने सामने घटित होते देख रहे हों.

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