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प्री-मानसून की बारिश से पूर्णिया के मक्का किसानों को बड़ा झटका

आंधी से प्रभावित हुई फसल

धराशायी हुई बेहतर उत्पादन को लेकर किसानों की उम्मीदें

बारिश के साथ बीच-बीच में आयी आंधी से प्रभावित हुई फसल

निचले स्थानों में जलजमाव से भी मक्का को पहुंचा काफी नुकसान

पूर्णिया. जिले में प्री-मानसून में हुई लगातार बारिश ने मक्का उत्पादक किसानों को बड़ा झटका दे दिया है. एक तरफ जहां उनकी मेहनत पर पानी फिर गया वहीं दूसरी ओर बेहतर उत्पादन की उम्मीद पर भी ग्रहण लग गया. आलम यह है कि बारिश के साथ बीच बीच में आई तेज आंधी से जहां खेतों में खड़े मक्का के फसलें धराशायी हो गयीं वहीं निचले स्थानों में जलजमाव ने मक्का की फसल को नुकसान पहुंचाया. मक्का उत्पादक किसानों का कहना है कि खेतों में खड़ी मक्का की पैदावार पर इस मॉनसून पूर्व बारिश का असर तो पड़ा ही है इसके साथ साथ जो फसलें खेतों में रह गयी थीं या खलिहानों में दाने तैयार हो रहे थे उनके भंडारण में परेशानी आयी.

जिले के कई किसानों ने बताया कि फसलें जो सुखाने के क्रम में बारिश के पानी में या तो पूरी तरह भीग गयीं या चारो ओर जल भराव की वजह से डूब गयी. किसानों का कहना है कि जिन फसलों पर पानी का असर हो गया है वो पूरी तरह से बर्बाद हो गये हैं, भविष्य में उनका इस्तेमाल किसी भी कार्य में नहीं लिया जा सकता. उनमें नमी की वजह से अंकुरण, फंगस और सड़न-गलन की समस्या होगी. उनका भंडारण अन्य फसलों को भी नष्ट कर दे सकता है. उसे पशुओं को भी खिलाया नहीं जा सकता. नतीजतन वो सारी फसलें अब किसी काम की नहीं रहीं. किसानों ने बताया कि इस बार बेहतर उत्पादन की उम्मीद के साथ अपेक्षाकृत अधिक रकवा में खेती की गई थी पर इस हालात में सारे सपने बिखर गये.

आखिरी नवम्बर वाले वेराइटी मक्का ज्यादा प्रभावित

बीते दिनों मॉनसून पूर्व बारिश ने रबी मक्का की नवम्बर के आखिर में लगायी जाने वाली किस्मों को ज्यादा प्रभावित किया है. हालांकि मक्के की फसल लगभग यहां सालोभर की जाती है लेकिन अमूमन रबी महीने में किसान अक्टूबर माह से इसकी बुवाई शुरू कर देते हैं और इस इलाके में नवम्बर व दिसम्बर माह तक मुख्य रूप से मक्के की रोपायी करते रहते हैं. भवानीपुर प्रखंड के किसान बमशंकर ने बताया कि इस दफा उन्होंने एक हेक्टेयर में मक्का की फसल लगाई थी. उनमें से कुछ भाग में मक्का की कटायी हो गयी थी जबकि ढाई एकड़ की फसल काटने की स्थिति में पहुंच रही थी. जिन्हें इस वर्षा ने प्रभावित किया. उन्होंने बताया कि लगभग 25 प्रतिशत का नुकसान हुआ है. जबकि पिछात को इससे फायदा पहुंचा है. 20 नवम्बर तक लगाई गयी फसल ठीक रही जबकि 30 नवम्बर में उन्होंने मक्का के जिस वेराइटी की रोपाई की उनपर पानी ने अपना प्रभाव डाला है. इस हिसाब से लगभग 50 हजार रूपये का उन्हें नुकसान हुआ है. उन्होंने बताया कि उनके इलाके में राज किशोर मेहता, लुकमान आलम, कृष्ण कुमार मंडल, सुभाष मंडल आदि किसानों को भी नुकसान पहुंचा है.

भीगे मक्के की कीमत को ले हलकान हैं किसान

किसान इस बात को लेकर परेशान हैं कि इन भीग गये मक्का का बाजार भाव अब उन्हें नहीं मिल पायेगा. किसानों का कहना है कि मक्का की फसल उन सभी के लिए पीला सोना है इसके उत्पादन में प्रति एकड़ 30 से 35 हजार रुपये की लागत आती है, जबकि प्रति एकड़ 50 से 60 क्विंटल मक्का का उत्पादन होता है जबकि इस दफा मक्के का बाजार भाव 2 हजार से लेकर 22 सौ रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है. वहीं किसानों का कहना है कि उन्हें एक बीघा मक्का में अमूमन 80 हजार रूपये की प्राप्ति होती है. जबकि भीगे हुए मक्का फसल की क्वालिटी और रंग के दब जाने से अमूमन बाजार भाव से 2 सौ से लेकर 3 सौ रुपये प्रति क्विंटल कम भाव मिलता है. वहीं बर्बाद हुए मक्के की कोई कीमत नहीं.

पच्चीस फीसदी तक नुकसान का अनुमान

कृषि कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार बीते रबी के सीजन में पूरे जिले में लगभग एक लाख उन्नीस हजार हेक्टेयर भूभाग में मक्का का आच्छादन हुआ था. हालांकि विभाग इस दफा हुई बारिश से ज्यादा क्षति का अनुमान नहीं लगा रहा है जबकि किसानों का अनुमान है कि उन्हें 20 – 25 प्रतिशत से ज्यादा फसल का नुकसान हुआ है. वहीं किसान बताते हैं कि सरकार द्वारा फसलों के 30 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान के मामले में ही क्षतिपूर्ति दिए जाने का प्रावधान है.

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