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सहज और सस्ता नहीं रहा बच्चों को पढ़ाना, टेंशन में हैं अभिभावक

बच्चों को पढ़ाना अब सहज और सस्ता नहीं रहा. एक तो महंगाई की रफ्तार खुद तेज है और उस पर कई स्कूल बच्चों पर बस्ता और अभिभावकों पर खर्च का बोझ लाद रहे हैं.

शिक्षा की महंगाई ने तोड़ी अभिभावकों की कमर, बच्चों को पढ़ाना हो रहा मुश्किल

किताबों के आसमान छूते दाम से बढ़ा अभिभावकों पर खर्च का बोझ

पूर्णिया. बच्चों को पढ़ाना अब सहज और सस्ता नहीं रहा. एक तो महंगाई की रफ्तार खुद तेज है और उस पर कई स्कूल बच्चों पर बस्ता और अभिभावकों पर खर्च का बोझ लाद रहे हैं. एक तो कॉपी-किताब महंगे हो गये हैं और उस पर स्कूलों की फीस में हर साल इजाफा के कारण अभिभावकों के घरों का बजट असंतुलित होकर रह गया है. हालांकि सरकारी स्कूलों में ढेर सारी सुविधाएं हैं पर वहां तमाम प्रयासों के बावजूद पठन-पाठन का न तो माहौल बन सका है और न ही व्यवस्था दुरुस्त हो सकी है. नतीजतन निजी स्कूलों में बच्चों का दाखिला अभिभावकों की विवशता बन गयी है.

गौरतलब है कि एनसीईआरटी की किताबें सस्ती होती हैं और इसी के पाठ्यक्रम के अनुसार स्कूलों में पढ़ाई भी करनी है. अगर देखा जाए तो एनसीईआरटी में कक्षा पहली से आठवीं तक की किताबें महज 200 रुपए से लेकर 700 रुपए तक मिल जाती हैं. मगर, पूर्णिया में विभिन्न स्कूलों के अभिभावकों से सिर्फ किताबों के लिए 4000 से 8000 तक लिए जा रहे हैं. कई स्कूलों ने अभिभावकों को किताबों की लिस्ट थमा दी है. मजे की बात यह है कि किताबें उन्हीं दुकानों में उपलब्ध हैं जिन स्कूलों से उनके व्यावसायिक संबंध हैं. परेशानी यह है कि हर साल किताबों के सेट में थोड़ा बहुत बदलाव कर दिया जाता है, जिससे अभिभावक का काम पुरानी किताबों से न चले. तरकीब इस तरह की है कि एक ही घर में यदि दो बच्चे आगे-पीछे की कक्षा में हैं तो वे भी पुरानी किताबों का इस्तेमाल नहीं कर सकें.

एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम पर अमल नहीं

यह किसी विडंबना से कम नहीं कि सीबीएसई स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों के पाठ्यक्रम के अनुरूप पढ़ाई होती है पर किताबें निजी प्रकाशकों की चलायी जाती हैं. अगर स्कूल की ओर से बच्चों को एनसीईआरटी की किताबें खरीदने को कहा भी जाता है तो अलग से निजी प्रकाशकों की पुस्तकें खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता है. अभिभावकों की मानें तो इतना ही पर समस्या खत्म नहीं होती क्योंकि निजी प्रकाशनों की कीमतों में हर साल कम से कम 20 से 25 फीसदी की वृद्धि कर दी जाती है. दूसरी परेशानी कॉपी एवं अन्य पठन-पाठन सामग्रियों की कीमतों की भी है, क्योंकि किताबों के साथ इसके दाम भी कमोबेश हर साल बढ़ते हैं.

आंकड़ों का आईना

5000 रुपए तक बेची जा रही दो सौ की पुस्तक

150 से अधिक निजी स्कूलों की संख्या है पूर्णिया में

709419 बच्चे पूरे जिले में अलग-अलग स्कूलों में पढ़ते हैं

2196 स्कूल हैं कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों के लिए

06 लाख पहली से आठवीं के बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित

कहते हैं अभिभावक

बढ़ती महंगाई के कारण मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देना बहुत कठिन हो गया. जिस तरह किताबों के दाम बढ़े हैं उससे परेशानी बढ़ गयी है. समझ में नहीं आ रहा है पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए बजट में कहां कटौती करें.

-उपेंद्र नायक

हमें पता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कराने से काफी कम खर्च आता है पर हम इन स्कूलों में व्यवस्था की हकीकत से भी अवगत हैं. कोशिश है कि बच्चे बेहतर पढ़ाई करें. इसलिए सरकारी स्कूल का रुख नहीं किए पर यहां तो महंगाई चरम पर है.

-बिनोद कुमार

परेशानी अकेले किताब के दाम की नहीं है. किताबों के दाम तो बढ़े ही हैं, पर इसके साथ कापियों एवं पठन-पाठन की अन्य सामग्रियां भी महंगी हो गयी हैं. इसके बाद भी रि-एडमिशन के साथ स्कूलों की बढ़ी हुई फीस ने घर का बजट बिगाड़ दिया है.

-रमण सिंह

निश्चित रूप से एनसीईआरटी की किताबें सस्ती होती हैं पर बच्चों के लिए किताबें वही खरीदनी पड़ती है जो स्कूलों में पढ़ाई जाती है. स्कूलों को चलाने के लिए कई संस्थान निजी प्रकाशनों को महत्व देते हैं और सब कुछ जानते हुए हम झेलते हैं.

-विक्रांत कुमारB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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