अमूमन 60 से 70 मरीज एंटी रेबीज वैक्सीन के लिए प्रतिदिन पहुंच रहे जीएमसीएच
पूर्णिया. अब इसे बदलते परिवेश का दोष कहें अथवा विशेष परिस्थिति इन दिनों हर किसी में बर्दाश्त करने की क्षमता का ह्रास हुआ है. इंसान हो या जानवर सभी में आक्रामकता बढती जा रही है. इससे परिणाम यह हुआ है कि लोगों में आपसी कलह और झगड़े फसाद बढ़ते जा रहे हैं. जहां तक जानवरों की बात की जाए तो बीते समय की तुलना में उनमें भी आक्रामकता बढ़ गयी है. भोजन, आवास, वर्चस्व और खतरों को लेकर सबसे पालतू और वफादार कहे जाने वाले कुत्तों में भी सामान्य तौर पर दांत गडाए जाने या किसी को काट खाए जाने के मामलों में भी वृद्धि देखी जा रही है. गांव घरों और गली मुहल्लों की सड़कों पर आवारा घूमने वाले बड़े अथवा छोटे पिल्लों द्वारा बड़ों से लेकर बच्चों तक को काट लेने या नाख़ून गडाने जैसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं. अगर आंकड़े की बात की जाय तो राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में ऐसे लगभग 60 से 70 मरीज प्रतिदिन आते हैं जिन्हें एंटी रेबीज का इंजेक्शन दिया जाता है. वे सभी प्रायः किसी न किसी प्रकार के जंगली जीवों द्वारा काट खाए गये होते हैं. इसके अलावा अगर पूरे माह की बात करें तो लगभग 1500 से भी ज्यादा एंटी रेबीज वैक्सीन की खपत यहां होती है जबकि कई लोग निजी अस्पतालों या निजी चिकित्सकों के क्लीनिकों में भी बाजार से खरीद कर एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाते हैं.एंटी रेबीज वैक्सीन की 3 से 5 डोज की होती है जरुरत
चिकित्सकों का कहना है कि किसी भी जंगली जीव द्वारा काटे जाने के बाद पीड़ित को तीन से लेकर पांच डोज तक एंटी रेबीज वैक्सीन के कोर्स पूरे करने होते हैं. बचाव के रूप में या हल्के जख्म के मामले में पहली सुई के बाद उसके तीसरे दिन और सातवें दिन यानि तीन वैक्सीन. जबकि गंभीर काटने के मामले में अगर उसी कुत्ते ने कई अन्य लोगों या मवेशियों को भी काट लिया है और कुत्ते की मौत हो गयी है तो तीन वैक्सीन के बाद चौदहवें और अट्ठाईसवें दिन भी यानि कुल मिलाकर उन्हें एंटी रेबीज वैक्सीन की पांच डोज लेने की जरुरत पड़ती है. इसके अलावा जख्म भरने के लिए भी दवा और उपचार की जरुरत पड़ती है.किसी भी जीव के द्वारा काटे जाने पर ध्यान देने योग्य बातें
चिकित्सकों का कहना है कि रेबीज एक जीवाणु जनित बीमारी है जो पालतू अथवा जंगली जानवरों के काटने से होता है. यदि पीड़ित व्यक्ति डोज के अनुसार सभी टीका ले लेते हैं तो उनमें रेबीज होने का खतरा समाप्त हो जाता है. लेकिन जो लोग टीका नहीं लेकर झाड़ फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं उनमें किसी भी समय रेबीज के लक्षण आ सकते हैं और तब उस व्यक्ति को किसी भी सूरत में बचाया नहीं जा सकता. उनका यह भी कहना है कि लोगों में रेबीज के लक्षण 18 दिनों से लेकर 3 वर्षों के बाद भी प्रकट हो सकते हैं. हालांकि पशुओं को टीका लगा दिए जाने के बाद पशु सुरक्षित हो जाते हैं लेकिन उनके द्वारा भी अगर किसी व्यक्ति को दांत गड़ा दिया जाता है तो एहतियात के तौर पर चिकित्सक से संपर्क कर एंटी रेबीज टीका अवश्य ले लेनी चाहिए. साथ ही जख्म वाले जगह को समय समय पर साबुन, शैम्पू या डिटर्जेंट से खूब साफ़ करना चाहिए इससे रेबीज के जर्म्स खत्म होते हैं या बिलकुल ही साफ़ हो जाते हैं. साफ़ सफाई के साथ साथ निर्धारित अंतराल और सुई की डोज भी जरुरी है. इसके अलावा चिकित्सक की सलाह से जख्म भरने की दवा भी जरुरी है.बोले पशु चिकित्सक
किसी भी प्रकार का जंगली जीव हो या कुत्ता, गलियों मुहल्लों में धूमने वाला हो या पालतू अगर वो काट ले तो समय पर एंटी रेबीज वैक्सीन लेना बेहद जरुरी है इसी के द्वारा रेबीज रोग से लोगों को बचाया जा सकता है क्योंकि रेबीज के लक्षण कुछ दिनों बाद प्रकट होते हैं और उसके बाद मरीज को बचाना असंभव हो जाता है.
डॉ. राजीव कुमार, पशु चिकित्सकजीएमसीएच में एंटी रेबीज वैक्सीन की खपत का आंकड़ा
फरवरी माह में – 1690 वैक्सीन मार्च माह में – 1875 वैक्सीन अप्रेल माह में – 1749 वैक्सीन मई माह में – 1772 वैक्सीनडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है