Samastipur News:विद्यापतिनगर : फलों का राजा आम बाजार में अपने मिठास और खुशबू के साथ छा गया है. बागों में बाहर है. बाजारों में भरमार है. न्यूनतम मूल्य के बाद भी फलों का राजा आम का बादशाहत बरकरार है. विद्यापतिनगर के बैसा बगीचा में अत्यधिक उत्पादन से आम प्रेमियों के साथ साथ वन्य प्राणी भी खुशहाल हैं. अत्यधिक फलन से न्यूनतम कीमत की चिंता हवा हवाई हुआ है. बागवान, व्यवसायी और बाजार का मजबूत गठजोड़ आम की मिठास को बढ़ा दिया है. बाजार में चहुओर इसका साम्राज्य कायम है. बगीचे में पके आम के जमी पर बिछने से वन्य प्राणियों की भी चहल कदमी बढ़ गयी है. बागों में बंदर अपने पसंद की खा रहे हैं तो खूंटे से बंधे मवेशी को फलों का रस निचोड़ कर भूसे के साथ खिलाया जा रहा है. बाजारों में फल बेचने वाले कि जुबान पर सफेद मालदह सौ के पांच किलो, अन्य वेरायटी फ्री में ले लो, का रट लगा है. सस्ते आम ने सब्जियों के बाजार पर कब्जा जमा लिया है. फलस्वरूप देहाती कहावत किसानों की जुबानी बनी है. कहते है शोधलक नारायणा चारों घरैयना. पके आम की अधिक आमद ने सब्जियों व विभिन्न मिठाइयों सहित अन्य खाने वालों सामग्री की विक्री पर विराम लगा दिया है.
दो हजार हेक्टेयर भूभाग में फैला है बैसा बगीचा
प्रखंड क्षेत्र में बैसा बगीचा लंबे भूभाग में फैला है. जानकार बताते हैं कि दो हजार से अधिक भूभाग में इसका फैलाब है. इसमें सफेद मालदह की बहुयता है. अन्य किस्म के आम भी भारी मात्रा में हैं. यहां के दस फीसदी किसानों की खेती बाड़ी आम की फसल से होती है. उत्पादन होने पर यह ज्यादातर दूसरे राज्यों में विक्री किया जाता है.
उगना महादेव से जुड़ा है बैसा बगीचा की दास्तान
धार्मिक मान्यताओं में बैसा बगीचा का जुड़ाव विद्यापतिधाम के उगना महादेव से है. किवदंतियां हैं कि सोलहवीं शताब्दी में मनोकामना उगना महादेव लिंग ( पत्थर ) को चुरा कर ले जाने का प्रयास चोरों ने किया था. असफलता के साथ वापस लौट रहे चोरों पर ईश्वरीय ब्रजपात हुआ. इससे सभी की मौके पर मौत हुई थी. वह स्थल ब्रजमार कहा जाने लगा. आगे इस नाम के साथ इस भूभाग पर खेती बाड़ी का प्रयास विफल होता रहा. तब कृषकों ने फलदार पौधे इस जमीन पर लगाने लगे. जो धीरे धीरे यह बड़े भूभाग में फैलता चला गया. आगे इसे बैसा नाम दिया गया.
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