Samastipur News: समस्तीपुर : गर्मी की छुट्टियों का सदुपयोग करने के लिए शिक्षा विभाग ने समर कैंप जिले के सभी प्रखंडों में प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के सहयोग से लगाया है. पढ़ने-लिखने में कमजोर बच्चों को इस समर कैंप के दौरान बेहतर ढंग से शिक्षा देने का लक्ष्य रखा है ताकि वे अन्य बच्चों से पीछे न रहें. डीपीओ एसएसए मानवेंद्र कुमार राय ने बताया कि शैक्षणिक सत्र 2025-26 में जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में कक्षा 4,5,6 व 7 में अध्ययनरत वैसे छात्र-छात्राएं जो सरल गणित करने की दक्षता में अपेक्षाकृत रूप से कमजोर हैं, उनके लिए प्रथम संस्था के सहयोग से गणितीय समर कैम्प का आयोजन किया गया है. मालूम हो कि गणित में कई सरकारी स्कूल के छात्र सरल सरल सवाल का भी जवाब नहीं दे पा रहें है. जिस कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. मालूम हो कि गणित में कई सरकारी स्कूल के छात्र सरल सरल सवाल का भी जवाब नहीं दे पा रहें है. जिस कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. वहीं प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के डिविजनल काॅडिनेटर हेमंत कुमार ने बताया कि जिले के 6700 सेंटर पर 80400 बच्चों गणित में दक्ष बनाने की कवायद जारी है. प्रत्येक सेंटर पर 10 से 12 बच्चे सम्मिलित हैं. कैम्प की सफलता के लिए 166 पॉइंट ऑफ कॉन्टैक्ट सभी प्रखंडों में बनाये गये हैं. 6619 वीटी पंजीकृत हुए हैं और 6606 वीटी को प्रशिक्षित भी किया गया है. समय-समय पर माॅनिटरिंग भी कई जा रही है. स्वयंसेवकों को प्रथम संस्था द्वारा प्रशिक्षण दिया गया है. प्रशिक्षित स्वंयसेवक असर टूल के माध्यम से बच्चों का चयन कर चिह्नित बच्चों के साथ प्रतिदिन एक से डेढ घंटे तक गणित विषय के विशेष शिक्षण प्रदान कर रहे है. बच्चों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्रतिदिन सुबह सात से नौ बजे और शाम पांच से सात बजे तक समर कैंप आयोजित किया जा रहा है. शैक्षणिक गतिविधियों में वार्मअप, संवाद, गणित की कहानियां, शाब्दिक सवाल और माथापच्ची शामिल हैं. गणितीय खेलों में संख्याओं का पिटारा, तीसरा कौन, कौन बड़ा-कौन छोटा, कैलेंडर से दोस्ती और सेंचुरी बनाओ जैसे नवाचार शामिल किये गये हैं.
समर कैंप में शाब्दिक जोड़-घटाव सीखते मिले छात्र-छात्राएं
प्रभात पड़ताल के दौरान समस्तीपुर प्रखंड के सिंघिया खुर्द में टोला सेवक रमेश महतो बच्चों को जोड़ घटाव व अंक पहचान करना बता रहे थे. टोला सेवक ने बच्चों पूछा, सुबोध के घर में लगे 10 पंखों में तीन खराब हो गये तो कितने बचे, जवाब आया 7, पूछने पर बच्चों ने बताया यह घटाव है. टोला सेवक ने बताया कि संख्याओं के प्रति चेतना बचपन से ही हमारे अंदर मौजूद होती है. छोटी उम्र से ही बच्चों को यह पता होता है कि ‘ज्यादा’ ही अच्छा होता है. अगर हम उन्हें चॉकलेट के दो बक्से दें तो बच्चे स्वतः ही वह बक्सा चुनेंगे जिसमें ज्यादा चॉकलेट हैं. अगर कोई चीज बच्चों के पहुंच से परे किसी ऊंची जगह पर रखी हुई है, तो उसे लेने के लिए वे स्वतः ही अपने किसी बड़े की सहायता मांगते हैं. एक मोटे तौर पर बच्चों को कम या ज्यादा ऊंचाई का अंदाजा भी होता है. ये उदाहरण बच्चों में संख्याओं के प्रति एक जन्मजात समझ दर्शाते हैं. संख्याओं की इस जन्मजात समझ के बावजूद भी गणित को हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग एक कठिन विषय की तरह देखता है. आत्मविश्वास की कमी, गणित को आसान भाषा में समझने वाली किताबों का अभाव, छोटी उम्र में मार्गदर्शन का अभाव, इत्यादि इसके प्रमुख कारण हैं. शिक्षकों और अभिभावकों के थोड़ा सा सचेतन रहने पर इनका निवारण किया जा सकता है. जितनी छोटी उम्र में बच्चों के लिए ऐसी कोशिशें की जायेगी, उतनी ही यह सम्भावना बढ़ेगी कि वे गणित को पसंद करने लगेंगे.
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