चिंताजनक. जिला शिक्षा विभाग ने चलाया पुनः नामांकन अभियान
यह केवल शिक्षा का संकट नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और प्रशासनिक विफलता भी हैप्रतिनिधि, सासाराम ऑफिसजब बच्चे स्कूल छोड़ने लगे, तो यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं रह जाती है. यह हमारे भविष्य पर सवालिया निशान बन जाता है. जिले में शैक्षणिक सत्र 2024-25 में करीब 813 बच्चों ने सरकारी स्कूलों से पढ़ाई छोड़ दी है. कुल 4.52 लाख नामांकित बच्चों के अनुपात में यह संख्या लगभग 0.18 प्रतिशत है. यह आंकड़ा चौंकाने वाला भी है और चेतावनी भरा भी. यह केवल शिक्षा का संकट नहीं है, यह सामाजिक और प्रशासनिक विफलता की कहानी है, जो चुपचाप हमारे भविष्य को खोखला कर रही है. सरकारी दावों और योजनाओं के बीच हकीकत यह है कि बच्चों के लिए स्कूल अब भरोसेमंद नहीं रह गए हैं. गरीब परिवारों की आर्थिक विवशता, स्कूलों में शिक्षकों की कमी, मूलभूत सुविधाओं का अभाव और योजनाओं का समय पर लाभ न मिलना जैसे कई कारण बच्चों को पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं. खासतौर पर माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर अधिक है. इसका बड़ा कारण यह है कि इस स्तर पर पढ़ाई कठिन हो जाती है, लेकिन सहायता नहीं मिलती. कई छात्र आर्थिक कारणों से कामकाज में लग जाते हैं, तो कई अभिभावकों को लगता है कि अब बच्चों का स्कूल जाना कोई लाभ नहीं देगा. शिक्षा विभाग और प्रशासन को इस स्थिति को सामान्य आंकड़ों की तरह नहीं देखना चाहिए. ये 813 बच्चे आने वाले कल की तस्वीर हैं, और अगर वे आज स्कूल छोड़ रहे हैं, तो कल यह समाज और राष्ट्र के लिए संकट बन सकता है. अब वक्त है कि पंचायत स्तर पर पुनः नामांकन अभियान चलाया जाए, प्रत्येक ड्रॉपआउट बच्चे की पहचान कर उन्हें फिर से मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाये. योजनाओं को पारदर्शी बनाया जाए और स्कूलों की बुनियादी समस्याओं का समाधान प्राथमिकता पर हो. विभाग व सरकार को यह समझना होगा कि स्कूल सिर्फ दीवारें नहीं होते-वहां भविष्य गढ़े जाते हैं. और जब बच्चे स्कूल छोड़ने लगें, तो सबसे पहले हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए कि कहीं हम उन्हें पीछे तो नहीं छोड़ रहे?प्रशासन की पहल-अभियान से फिर लौटे स्कूल
हालांकि, इस चुनौती को गंभीरता से लेते हुए जिला शिक्षा विभाग ने पुनः नामांकन अभियान शुरू किया है. ड्रॉपआउट छात्रों की पहचान की गयी. विशेष रूप से ड्रॉपआउट 10वीं से 12वीं के छात्रों को बिहार बोर्ड, बी-बोस जैसे बोर्ड के तहत फिर से परीक्षा में शामिल कराया गया. कई बच्चों को फिर से स्कूलों में लाया गया, ताकि वह शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़े रहें.अब क्या जरूरी है?
-पंचायत स्तर पर लगातार पुनः नामांकन और जागरूकता अभियान चलाना.
-योजनाओं को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से लागू करना.-स्कूलों की मूलभूत समस्याओं का शीघ्र समाधान करना.
-माध्यमिक स्तर पर विशेष शिक्षण सहायता की व्यवस्था करना.क्या कहते हैं डीपीओ
ड्रॉपआउट बच्चों को चिह्नित कर स्कूलों में वापस लाया गया है. ज्यादातर बच्चों का नामांकन हो चुका है, कुछ ही बाकी हैं. अभियान के तहत उन्हें स्कूल से जोड़ा जा रहा है. बोर्ड के ड्रॉपआउट छात्रों को पुन: परीक्षा में शामिल कराया जा रहा है. ज्यादातर ड्रॉपआउट पांचवीं से छठी और आठवीं से नौवीं कक्षा में स्कूल बदलने के दौरान होता है, इसे ध्यान में रखकर कार्य किया जा रहा है. इसके साथ अन्य कई कारण भी हैं. उनके लिए भी योजनाएं तैयार की गयी हैं. ड्रॉप आउट कम करने के लिए विभाग सक्रिय है. रोहित रौशन, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, सर्वशिक्षा अभियान.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है