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Sasaram News : चैत में ही सूख गये ताल-तलैया, सताने लगी ज्येष्ठ की चिंता

संकट. अतिक्रमण की जद में होने से ग्रामीणों इलाकों में जल संकट गहराया

कोचस. सरकार की ओर से एक तरफ जहां ग्रामीण इलाकों में सात निश्चय योजना के तहत करोड़ों रुपये खर्च कर जलसंकट से उबरने के लिए तरह-तरह की योजनाएं चलायी जा रही हैं. वहीं, दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में जल संचय के प्रति जागरूकता की कमी से ताल-तलैया चैत महीने में ही सूख गये. इससे नगर समेत ग्रामीण क्षेत्रों में जलसंकट की स्थिति गहराने लगी है. सुदूरवर्ती इलाका के लोगों को गर्मी के शुरूआती दिनों में ही ज्येष्ठ महीने का भय सताने लगा है. चिलचिलाती धूप व भीषण गर्मी के कारण शुरुआती दिनों में ही भू-तल स्तर नीचे खिसकने से 40-50 फुट गहरे सामान्य स्तर पर लगे हैंडपंपों की जलधारा सूखने लगी है. इससे सिंगल लेयर निजी चापाकलों से जलापूर्ति लगभग बंद होने के कगार पर है. शुरूआती दिनों में भीषण गर्मी के कारण समय से पहले नदी, नाले व ताल-तलैया सूखने से जंगली जानवर पानी की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास भटकने लगे हैं. बताया जाता है कि प्रखंड के विभिन्न हिस्सों में जल संरक्षण के नाम पर अब तक करोड़ों रुपये का बंदरबांट किया गया है. जल जीवन हरियाली के तहत विभिन्न पंचायतों में चयनित अधिकांश ताल-तलैया का जीर्णोद्धार नहीं होने से लोगों को इस समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. लेकि, इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है. जबकि, ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में लगे सबमर्सिबल पंप से हर दिन अनावश्यक रूप से लाखों लीटर पानी की बर्बादी हो रही है. अगलगी के दौरान वरदान साबित होते हैं संचित जल: जानकारों का कहना है कि रबी फसल के अंतिम दिनों खेतों की सिंचाई के लिए नहरों से छोड़े गये पानी का दुरुपयोग कर इसे नदियों में बहा दिया जाता है. प्रशासन के ढुलमुल रवैये के कारण जागरुकता के अभाव में लोग इसका सदुपयोग नहीं कर पाते हैं. नहरों में छोड़े गये पानी को समय के साथ अगर ताल-तलैया में इकट्ठा कर दिया जाता, तो समय से पहले ताल-तलैया व सिंगल लेयर हैंडपंप बंद नहीं होते. वहीं, आगलगी के दौरान यह सिंचित जल आग बुझाने में वरदान साबित होता है. प्रशासनिक उदासीनता व आमलोगों की लापरवाही के कारण विभिन्न गांवों के बधार में स्थित तालाब व पोखरें में जल संचित नहीं किया जाता है. इसके अभाव में अगलगी के दौरान खेतों में खड़ी फसल जल कर भस्म हो जाती है. अतिक्रमण की चपेट में हैं अधिकतर ताल-तलैया: प्रखंड के विभिन्न हिस्सों में स्थित अधिकांश तालाब पोखर अधिकारियों व स्थानीय जनप्रतिनिधियों के ढुलमुल रवैया के कारण अतिक्रमण की जद में आ गये हैं. गांव के समीप स्थित ताल-तलैया में मिट्टी भराई कर गृह निर्माण कार्य किया गया है. इससे इनका अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है. वहीं, गांव के बधार में खेतों के आसपास स्थित अधिकतर तालाब-पोखर किसानों के कब्जे में है. इससे विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं. क्या कहते हैं सीओ वर्ष 2016 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में कुल 538 ताल-तलैया, पोखरा, आहर और कुएं को चिह्नित किया गया था. इस दौरान 18 तालाब-पोखर अतिक्रमण की चपेट में पाये गये थे. इसमें से पांच-छह तालाबों को अतिक्रमणमुक्त किया गया है और शेष प्रक्रियाधीन है. सरकारी जमीन पर स्थित तालाब पोखर को अतिक्रमित करने वाले लोगों को चिह्नित करने की कवायद शुरू कर दी गयी है. उन्हें नोटिस देकर हर हाल में ताल-तलैया को अतिक्रमण मुक्त किया जायेगा. – विनीत व्यास, सीओ कोचस

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