नारायण कृषि विज्ञान संस्थान की वैज्ञानिक ने बताये मछली पालकों के लिए गर्मी में बचाव और उत्पादन बढ़ाने के उपायतालाब की गहराई, ऑक्सीजन संतुलन और आहार प्रबंधन से गर्मियों में भी मछली पालन बन सकता है लाभदायकफोटो-12- मछली पालन में लगे बच्चे.
प्रतिनिधि, सासाराम ऑफिसगर्मी का मौसम जहां इंसानों के लिए परेशानी लेकर आता है, वहीं मछलियों के लिए यह जीवन-मरण का सवाल बन जाता है. जल का बढ़ा हुआ तापमान, ऑक्सीजन की कमी और रोगों का खतरा मछली पालन को चुनौतीपूर्ण बना देता है. लेकिन अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो यही चुनौती अवसर बन सकती है, ऐसा मानना है गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय जमुहार के अंतर्गत नारायण कृषि विज्ञान संस्थान की मत्स्य वैज्ञानिक डॉ प्रज्ञा मेहता का. उनके अनुसार गर्मी के मौसम में मछलियों की देखरेख में जरा सी लापरवाही भारी नुकसान का कारण बन सकती है. इसीलिए जरूरी है कि हर मछली पालक कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखें. डॉ मेहता के मुताबिक तालाब की गहराई कम से कम 5 से 6 फीट होनी चाहिए ताकि पानी की निचली परतों में ठंडक बनी रहे. तालाब के किनारों पर छायादार पेड़ गर्मी के असर को कम करने में सहायक होते हैं.ऑक्सीजन की कमी है सबसे बड़ी चुनौती
गर्मी में खासकर सुबह के समय पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बेहद कम हो जाती है. इससे मछलियों को सांस लेने में कठिनाई होती है. ऐसे में एरेटर या पैडल व्हील जैसे उपकरणों का सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद उपयोग करना चाहिए. यदि ये उपकरण उपलब्ध नहीं हों, तो पानी को हिलाना, ताजा पानी का प्रवाह बनाना, या ऑक्सीजन टैबलेट का प्रयोग करना जरूरी हो जाता है. सतह पर मछलियों को मुंह से सांस लेते देखें, तो समझें खतरे की घंटी बज चुकी है. इस स्थिति में तुरंत आहार और खाद का प्रयोग बंद करें और एरेशन शुरू करें.गर्मी में मछलियों को लगती है भूख कम, पर पोषण जरूरी
डॉ मेहता बताती हैं कि गर्मी के कारण मछलियों की भूख सामान्य से कम हो जाती है. इसलिए उन्हें सुबह 9 बजे से पहले या शाम 4 बजे के बाद उनके शरीर के वजन के अनुसार 1.5 से 2% मात्रा में 25% प्रोटीन युक्त संतुलित आहार देना चाहिए. बैग फीडिंग विधि से आहार की बर्बादी भी रोकी जा सकती है. डॉ मेहता के अनुसार इसके लिए जैविक खाद जैसे सड़ा गोबर, वर्मी कम्पोस्ट, बायोगैस स्लरी और अकार्बनिक खाद जैसे यूरिया, सुपर फॉस्फेट का संतुलन जरूरी है. लेकिन सावधानी यह कि अधिक मात्रा में खाद से शैवाल की अत्यधिक वृद्धि हो सकती है, जिससे रात में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है.जल का रंग देता है संकेत
उन्होंने बताया कि यदि तालाब का पानी हरा, भूरा या लाल हो जाए तो खाद का प्रयोग तुरंत रोक दें. साथ ही जरूरत पड़ने पर फिटकरी, जिप्सम का प्रयोग कर पानी को संतुलित करें. गर्मी में मछलियां रोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं. इसलिए गतिविधियों और रंग-रूप की नियमित निगरानी जरूरी है. चूना, पोटेशियम परमैंगनेट या सिफैक्स जैसे रसायनों का सावधानी से उपयोग किया जा सकता है.जल प्रबंधन से मिल सकता है दोहरा लाभ
डॉ. मेहता बताती हैं कि तालाब के पोषक जल को खेतों की सिंचाई में उपयोग कर बदले में ताजा जल तालाब में लाना चाहिए. इससे मछलियों को साफ जल मिलता है और फसलों को पोषण. इससे रासायनिक खादों की जरूरत भी घटती है. वह कहती हैं कि मछली पालन अब केवल परंपरागत काम नहीं, यह विज्ञान और समझदारी का खेल बन चुका है. गर्मी जैसे कठिन मौसम में यदि मछली पालक थोड़ी सावधानी और तकनीकी ज्ञान अपनाएं तो न केवल नुकसान से बच सकते हैं बल्कि उत्पादन को भी बढ़ा सकते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है