बिना महिला पुलिस के ही पीड़िता को घर से उठा ले जाने का मामला बाल कल्याण समिति ने काराकाट थानाध्यक्ष को लिखा पत्र, एक सप्ताह में मांगा जवाब समिति ने इस कृत्य को जबर्दस्त पुलिसिया अन्याय का निकृष्ट उदाहरण ही नहीं, बल्कि एक संज्ञेय अपराध माना है प्रतिनिधि, सासाराम कार्यालय काराकाट थाना कांड सं.-213/25 की पीड़िता के साथ गत चार मई 2025 को काराकाट की पुलिस द्वारा दुर्व्यवहार करने और उसे गैरकानूनी हिरासत में लेने पर बाल कल्याण समिति ने काराकाट थानाध्यक्ष को शोकॉज नोटिस जारी किया है. समिति के अध्यक्ष संतोष कुमार ने जारी पत्र में कहा है कि पुलिस की यह कार्रवाई किशोर (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 75 के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. अत: इस संबंध में स्पष्टीकरण दें कि क्यों नहीं इस मामले में किशोर न्याय अधिनियम की सुसंगत धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया जाये और इस कृत्य को जुवेनाइल जस्टिस मॉनीटरिंग कमेटी पटना हाइकोर्ट को सूचित कर दिया जाये. अपना स्पष्टीकरण एक सप्ताह के अंदर देना सुनिश्चित करें. पत्र के अनुसार, काराकाट की पुलिस पीड़िता किशोरी को उसके घर से तब ले गयी, जब घर में उसके माता-पिता या कोई अन्य बालिग सदस्य नहीं था. इस पर संज्ञान लेते हुए समिति ने काराकाट के कांड विवेचना अधिकारी निशांत कुमार से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि उसे कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए थाना लाये हैं. महिला पुलिसकर्मी की बात पर उन्होंने जवाब दिया था कि काराकाट थाने में कोई महिला पुलिसकर्मी की नियुक्ति नहीं है. विवेचना अधिकारी ने स्वीकार किया कि महिला पुलिसकर्मी के नहीं होने के कारण पीड़िता को नासरीगंज थाना में रखा जायेगा. शाम में उसकी मां को भी थाना लाया और रात भर मां-बेटी को नासरीगंज थाने में रखा गया. घर से उठाते समय पीड़िता के साथ गाली-गलौज और दुर्व्यवहार किया गया, जिससे उसे घोर मानसिक पीड़ा हुई और परिवार की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचा है. किशोर न्याय अधिनियम की यह अपेक्षा है कि बालिका से जुड़ा कोई व्यक्ति बालिका के साथ शिशु मैत्रीपूर्ण व्यवहार करेगा और अभियोगात्मक भाव का प्रदर्शन नहीं करेगा. लेकिन, बालिका के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया. इससे किशोर न्याय कानून के सिद्धांत का हनन हुआ. बालिका को गैरकानूनी तरीके से पुलिस हिरासत में चार मई को 11.30 बजे से अगले दिन तक रखा गया. यह जबर्दस्त पुलिसिया अन्याय का निकृष्ट उदाहरण ही नहीं, बल्कि एक संज्ञेय अपराध है.
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