24.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Sharda Sinha Death: लोकसंगीत की विरासत छोड़ गईं शारदा, नैहर में छाई उदासी

Sharda Sinha Death:लोक गायिका शारदा सिन्हा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है. वहीं, उनके निधन की खबर आने के बाद मातमी सन्नाटा पसार गया है. लोग सच्चाई जानने की लिए इधर-उधर फोन घुमाते दिखे.

राजीव/आशुतोष, सुपौल. मोहे लागे प्यारे, सभी रंग तिहारे, दुःख-सुख में हर पल, रहूं संग तिहारे, दरदवा को बांटे, उमर लरकइयां, पग पग लिये जाऊं, तोहरी बलइयां…..और पति के जाने के बाद अकेली हो गयी शारदा. निभाया सात जनम साथ रहने का वादा. उन्हीं के गाये गीत उनके जीवन पर सटीक बैठ गये. कुछ दिन पहले ही पति का निधन हो गया था. इस दुख से वह उबर नहीं पायी और बीमार होकर इस दुनिया से चली गयी. शारदा सिन्हा के मौत की खबर सुनते ही पैतृक गांव हुलास में मातमी सन्नाटा छा गया. लोग सच्चाई जानने के लिए परिजनों को फोन करने लगे. सच सुनते ही लोगों की आंखें नम हो गयी.

हुलास गांव में छाया मातमी सन्नाटा

प्रभात खबर की टीम जब हुलास गांव पहुंची तो गांव में मातमी सन्नाटा छाया हुआ था. जहां कल तक छठी मैया का गीत से पूरा गांव भक्ति के रस में डूबा हुआ था आज वहां सन्नाटा छाया था. लोग अपने-अपने घरों में बैठ पुराने दिनों को याद करते थे. मिथिला कोकिला की अंतिम विदाई से उनका नैहर हुलास गांव उदास था. कोसी-कमला के कछेर से गंगा के पाट तक अपनी सुरीली आवाज से लोक गीत को सिंहासन पर बैठाने वाली शारदा सिन्हा के नहीं रहने से जैसे पूरा मिथिला सन्न है.

कभी पटना और दरभंगा आकाशवाणी से उनका नाम सुनते ही रेडियो दलान पर खोल लिये जाते थे. उनके नैहर के लोग खुश रहते थे कि आज अपनी शारदा रेडियो पर गायेंगी. दलान पर रेडियो बज उठते थे. बाद में तो कैसेट घर-घर बजने लगा. छठ और दुर्गा पूजा में केवल शारदा के ही गीत बजते थे. विद्यापति समारोह में शारदा के स्वर से ही समारोह की शुरुआत होती थी. लेकिन वो खनक आवाज अब सदा के लिए बंद हो गयी.

संगीत की शुरुआत

01 अक्तूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा की मातृभूमि के देहाती खेतों से लेकर भव्य मंच तक की यात्रा उनके अटूट समर्पण और असाधारण प्रतिभा का प्रमाण था. शारदा सिन्हा का प्रारंभिक जीवन बिहार के सांस्कृतिक परिवेश में गहराई से निहित था. ग्रामीण बताते हैं कि गीत के साथ उनका लगाव तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने घर के हरे-भरे परिदृश्यों में गूंजने वाले दिल को छू लेने वाले मैथिली लोकगीतों को अपनी आवाज़ दी. यह एक संगीत यात्रा की शुरुआत थी जो उनके जन्मस्थान की सीमाओं से कहीं आगे तक गूंजेगी.

पंडित रघु झा से मिली थी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा

राघोपुर प्रखंड अंतर्गत हुलास गांव स्थित मैके व सुपौल की यादें उनकी स्मृति में हमेशा ताजा रहती थी. यह अलग बात है कि 31 वर्ष बाद वर्ष 2011 में सुपौल आने का सौभाग्य मिला है. इससे पूर्व 1985 ई में बरूआरी आने का मौका मिला था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुलास व स्थानीय विलियम्स स्कूल में हुआ था. संगीत की प्रशिक्षण उन्हें महान संगीतज्ञ पंडित रघु झा से मिली. जो उस समय में विलियम्य स्कूल में ही संगीत शिक्षक पद पर पदस्थापित थे. हलांकि इससे पूर्व बचपन में पैतृक गांव हुलास में पंडित रामचन्द्र झा ने उन्हें संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी थी, लेकिन पंडित रघु झा के सान्निध्य ने उन्हें संगीत की ऊंचाई प्रदान की. पंडित युगेश्वर झा तब तबले पर उनका संगत करते थे. तब शिक्षा विभाग के सचिव पद से सेवानृवित उनके पिता सुखदेव ठाकुर लोगों के अनुरोध पर स्कूल के प्रचार्य पद पर आसीन थे.

शारदा सिन्हा के परिजन बताते हैं कि ससुर की कमाई दिहले उनका पहला गीत था. राजश्री प्रोडक्सन के मालिक ताराचन्द बड़जात्या ने जब मौका दिया तो असद भोपाली के लिखे गीत- कहे तो से सैयां का रिकार्डिंग यादगार पल था. दरअसल एचएमवी में सबका उनका ट्रिब्यूट विद्यापति श्रद्धांजलि प्रसारित हुई थी तो वो बड़जात्या जी को बहुत पसंद आई थी. इसमें मुरली मनोहर स्वरूप जी का संगीत एवं पंडित नरेन्द्र शर्मा की हिन्दी कमेंटरी थी, ताकि हिन्दी भाषी क्षेत्र में महाकवि कालीदास को लोग समझ पायें.

गांव में पसरा मातमा सन्नाटा

मंगलवार की सुबह जब प्रभात खबर की टीम हुलास गांव पहुंची तो सभी लोग शांत अपने-अपने घरों में बैठे थे. एक बुजुर्ग ने कहा कि गांव की कोहिनूर नहीं रही. हमने बचपन में उसे गाते हुए सुना. अब कौन सुनायेगा ससुर की कमाई दिलहे… गाना. कहा कि वह जब भी गांव आती थी तो हर एक लोगों से मिलती थी. उसकी सरलता ही उसे महान बना दिया.

09 माह पहले आयी थी गांव

लगभग 09 माह पहले 31 मार्च 2024 को शारदा सिन्हा अपने भाई पद्नाभ शर्मा के पुत्र के रिशेप्सन में अपने मायके आयी थी. अंतिम बार गांव वालों ने अपने लाडली को देखा था. उसके बाद वह गांव नहीं आयी. भतीजा विजय शर्मा बताते हैं कि दीदी उस दिन भी घर में गीत गायी थी. अब कौन सुनायेगा गीत.

पांच साल तक रही विलियम्स स्कूल परिसर में

विलियम्स स्कूल में प्रधानाध्यापक स्व सुखदेव ठाकुर पिता व मां के अलावे दो भाइयों के साथ स्कूल में पांच साल तक यही रहकर पढ़ाई की थी. उस वक्त विलियम्स स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर कार्यरत कालीचरण मिश्र ने बताया कि शारदा सिन्हा पढ़ने में मेधावी थी. उसका स्वभाव भी काफी अच्छा था. उसे ग्रामीण संगीत से काफी लगाव था. कहा कि शारदा सिन्हा आठ भाई व एक बहन थी. कहा कि शारदा सिन्हा कई बार स्कूल आयी और बच्चों को संगीत का गुर भी सिखाया.

इसे भी पढ़ें: Sharda Sinha Death: सीएम नीतीश ने जताया शोक, कहा- संगीत के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति

कतय चलि गेलही गे शारदा : निर्मला

कभी निर्मला जी और शारदा जांता पर गेहूं पीसते हुए मैथिली में लगनी गीत गती थीं. जब छठ का समय आता था तो दोनों की स्वर लहरियां तैरने लगती थी. बस्ती के लोग समझ जाते थे कि शारदा गाना गा रही हैं. लेकिन इसी छठ में शारदा के नैहर का अंगन गीत ही नहीं, शारदा के नहीं रहने से सूना हो गया है. शारदा को गीत सिखाने वाली निर्मला के कंठ से गीत क्या बोल भी नहीं फूट रहे हैं. वह बोलते ही भावुक होकर रोने लगती हैं. कहा कि जखन शारदा छोट रहैय तैय हम आगु-आगु और शारदा पाछु-पाछु गीत गाबैत रही. शारदा केय अपन भाषा से बेहद प्रेम रहैय. यैह कारण रहैय जैय ओ जखन गांव आबैत रहैय तो मैथिली में सबसैय बात करैत रहैय. इतना कहते ही निर्मला की आखें नम हो गयी.

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel