मधुपुर. झारखंड बंगाली समिति के प्रदेश अध्यक्ष विद्रोह मित्रा ने राज्य में शिक्षक नियुक्ति में बांग्ला भाषा की उपेक्षा किये जाने का आरोप लगाते हुए नाराजगी व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा निर्गत प्रस्तावित भाषा सूची के अनुसार जेटेट के लिए मात्र नौ जिले में ही बांग्ला को प्रस्तावित भाषा सूची में दर्शाया गया है. सिर्फ नौ जिलों में ही बंगला भाषा के शिक्षक नियुक्त होगा. यह बिल्कुल अनुचित और गलत है. उन्होंने कहा कि क्या देवघर, गिरिडीह, हजारीबाग, कोडरमा समेत अन्य जिलों में बंगाली समुदाय के लोगों का निवास नहीं है. इन जिलों में बंगला शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होगी. क्या यहां के बंगाली समुदाय के बच्चों को मातृभाषा बंगला पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस तरह झारखंड सरकार फिर एक बार यह साबित कर दिया है कि झारखंड में बंगला भाषा की पढ़ाई का कोई औचित्य नहीं है. जबकि सत्य यह है कि झारखंड में सबसे अधिक बोली जाने वाली बंगला भाषा भाषी के लोगों का निवास है. झारखंड की संस्कृति के साथ बंगाली संस्कृति का एक अटूट संबंध है. सरकार के निरंतर गलत सोच, गलत नियत, गलत मंशा से झारखंड में 42 प्रतिशत बंगाली समुदाय के लोग हताश हैं. उन्होंने कहा कि बंगाली समुदाय के साथ सरकार निरंतर खिलवाड़ कर रही है. सरकार के शिक्षा मंत्री कभी कहते हैं-पहले छात्र लाइए फिर शिक्षक और किताब देंगे. अभी शिक्षा विभाग द्वारा आधे से अधिक जिलों से क्षेत्रीय भाषा बंगला को हटा कर अपनी मंशा साफ कर दिया है. वर्तमान सरकार ने ठान लिया है कि मातृभाषा बंगला को राज्य से मिटा देना है. जबकि गुरुजी शिबू सोरेन ने कहा कि बंगला भाषी झारखंड के मूलवासी हैं. संथाल परगना सह एकाधिक क्षेत्रों में बंगला भाषी लोगों की बड़ी आबादी है. बंगला भाषा राज्य के कई हिस्सों में बोलचाल की एक सामान्य भाषा है. उन्होंने झारखंड के कई रेलवे स्टेशनों के नाम पट्टिका से बंगला भाषा हटायें जानें पर भी नाराजगी जतायी थी. आश्चर्य की बात है एक तरफ लोग चुनाव जीत कर बंगला में शपथ लेते हैं. राज्यसभा में बंगाली समुदाय के प्रतिनिधि भी है. फिर भी हम उपेक्षित है. प्रदेश अध्यक्ष विद्रोह कुमार मित्रा ने जिला शिक्षा पदाधिकारी देवघर को पत्र के माध्यम से देवघर जिला के लिए प्रस्तावित भाषा सूची में बंगला भाषा को शामिल करने का अनुरोध किया है.
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