27.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

कमरथुआ और कांवर : कांवर धारण कर बम-बम का उच्चारण करने से मिलता है अश्वमेध यज्ञ का फल

Kamrathua and Kanwar: कांवर चढ़ाने की प्रथा बैद्यनाथ कामद् लिंग पर सर्वाधिक है. ऐसी मान्यता है कि भ्रमवश भी जो कांवर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है. कांवर को लोकभाषा में पुण्यवाचक माना जाता है. प्राचीनकाल से ही शिव के विग्रह पर गंगा जल चढ़ाने की प्रथा कांवर के माध्यम से वर्तमान है. लोकप्रसिद्धि ही इसके प्रचलन का आधार है. कांवर के प्रसंग में शिव और राम की कथा मिलती है. मराठी, बंगला और मैथिली में कांवर के अनेक प्रसिद्ध गीत हैं. इस दिशा में मिथिला की महेशवाणी और नचारी को आज भी लोकप्रियता प्राप्त है.

Kamrathua and Kanwar|Shravani Mela 2025: कांवर में जल भरकर तीर्थाटन की परंपरा अति प्राचीन है. वैदिक साहित्य में कांवर में जल भरने की प्रथा का कोई वर्णन नहीं है, किन्तु देवताओं को जल चढ़ाने का प्रसंग है. आज कर्मकांड में जल उत्सर्ग करने का महत्व है. जल को प्राचीनकाल से ही जीवन माना जाता है, क्योंकि जल के बिना प्राणी जीवित नहीं रह सकता है. स्वयं विष्णु को भी जलरूप माना गया है. उत्तर वैदिक साहित्य में भी कांवर वहन करने की प्रथा के प्रसंग नहीं मिलते हैं, किन्तु पौराणिक साहित्य में कांवर के अनेक प्रसंग हैं. रामायण युग में श्रवण कुमार की कथा आती है, जिसमें पितृ-भक्त श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को कांवर में बैठाकर तीर्थयात्रा पर चल पड़े थे. इस कथा से यह प्रमाणित है कि प्राचीनकाल में भी भारतीय जीवन-पद्धति में कांवर की प्रथा को धार्मिक एवं सामाजिक मान्यता प्राप्त थी. उस युग में आज के समान वाहन की सुविधा सुलभ नहीं थी. इसलिए निजी साधनों के आधार पर ही लोग तीर्थ यात्रा पर जाते थे.

कांवर चढ़ाने की प्रथा बैद्यनाथ कामद् लिंग पर सर्वाधिक है. ऐसी मान्यता है कि भ्रमवश भी जो कांवर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है. कांवर को लोकभाषा में पुण्यवाचक माना जाता है. प्राचीनकाल से ही शिव के विग्रह पर गंगा जल चढ़ाने की प्रथा कांवर के माध्यम से वर्तमान है. लोकप्रसिद्धि ही इसके प्रचलन का आधार है. कांवर के प्रसंग में शिव और राम की कथा मिलती है. मराठी, बंगला और मैथिली में कांवर के अनेक प्रसिद्ध गीत हैं. इस दिशा में मिथिला की महेशवाणी और नचारी को आज भी लोकप्रियता प्राप्त है.

श्रवण कुमार की कथा को मान सकते हैं कांवर प्रथा का आधार

रामायण में अनेक तीथों के प्रसंग भरे पड़े हैं. तीर्थ-संस्कृति ही भारतीय जीवन पद्धति का मूल आधार है. ऐतिहासिक दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि कांवर की प्रथा का सामाजिक और धार्मिक रूप रामायण युग से ही प्रारंभ हुई. रामायण के अनुसार, श्रवण कुमार की कथा को इसका आधार माना जा सकता है. आध्यात्म रामायण और आनंद रामायण में भी ऐसे प्रसंग मिलते हैं. आनंद रामायण में राम के कांवर लेकर बैद्यनाथधाम और सुलतानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा में स्नान करने तक का वर्णन है. संत एकनाथ के धार्मिक प्रसंग में भी कांवर लेकर जल चढ़ाने का वर्णन है.

Kamrathua and Kanwar: प्रसिद्ध शैवपीठ है बैद्यनाथधाम

बैद्यनाथधाम एक प्रसिद्ध शैवपीठ है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग यहां अवस्थित हैं. इसे एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ भी माना जाता है. इसलिए तीर्थयात्री यहां कांवर लेकर आते रहते हैं. अजगैबीनाथ की तलहटी में प्रवाहित गंगा जल भर ये बैद्यनाथधाम की ओर चल पड़ते हैं. अभयकांत चौधरी का कहना है कि ईस्वी पूर्व की शताब्दियों से ही यह परंपरा प्रचलित है. मध्यकालीन भारतीय इतिहास के अनेक दस्तावेजों में भी कांवर लेकर जल चढ़ाने की प्रथा का संकेत है. आत्म-संयम, चित्त की एकाग्रता तथा धार्मिक दृष्टि से कांवर उठाना एक हठयोग है. धार्मिक दृष्टि से कांवर को ‘कामल’ के रूप में भी जाना जाता है, और शास्त्रों में इसे आठ नामों से सम्बोधित किया गया है.

उक्ति इस प्रकार है :-
कामलं कामदं कामरथः कांवरमित्यथो ।
कार्मरं कार्मलं विष्णो कामदं कर्मभार धृत ।।

जीव विकार रहित हो जाता है

अर्थात् अतीत के जन्मान्तरों से भविष्य के जन्मान्तरों में जीवात्मा को ले जानेवाले तीन आणविक कारण, कायिक और मल हैं. इन तीनों मलों को धारण करने मात्र से ही जीव विकार रहित हो जाता है. इसलिए मनीषीगण इसे कामल कहते हैं. उक्ति इस प्रकार है :-
यस्य धारण मात्रेण नश्यति त्रिमलं श्रृणु ।
एतस्नात् कामलं प्रोक्तं विद्वद्भिः तत्व दर्शिभिः ।।

Kamarthua And Kanwar Chanting Bam Bam With Kanwar Gives Results Of Ashwamedha Yagya News
गंगाजल लेकर बाबा मंदिर की ओर बढ़ते कमरथुआ के कदम. फोटो : प्रभात खबर

कांवर शब्द को लेकर है विवाद

आजकल कांवर शब्द को लेकर विवाद है. कांवर को संस्कृत में कामारि का अपभ्रंश माना जाता है. कामारि का अर्थ कामभाव के विनाश से है. कांवर लेकर शिव को गंगा जल अर्पित करने से मनुष्य के काम विकारों का शमन होता है. देवत्व भाव की प्राप्ति के लिए पापवृत्तियों का विनाश आवश्यक है. इस संबंध में पुराणों की यह उक्ति प्रसिद्ध है :-
स्कन्धेतु कामरं धृत्वा
बम्-बम् प्रोच्य क्षणे क्षणे।
पदे-पदे अश्वमेधस्य अक्षयं पुण्य मश्नुते ।।

पद्मपुराण पाताल खंड में भी है कांवर का उल्लेख

अर्थात् कन्धे पर कांवर धारण कर जो नर-नारी क्षण-क्षण में बम-बम का उच्चारण करते हैं, उन्हें अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. शिव धूप, दीप और नैवेद्य से उतने प्रसन्न नहीं होते हैं, जितने कि कांवर के जल से. पद्मपुराण पाताल खण्ड में इस संबंध में उक्ति इस प्रकार है:-
धूप दीपैस्तथा पुष्पै नैवेद्ये विविधेरपि ।
न तुष्यति तथा शम्भुर्यथा कांवर वारिणा ।।

कांवर की महिमा है सर्वोपरि

स्पष्ट है कि कांवर की महिमा सर्वोपरि है. कांवर शब्द की अर्थ प्रवणता लोक संस्कृति से सम्पृक्त है. दृढ़ संयम और तपस्या का यह सरल मार्ग है. कांवर शब्द तद्भव है. इस संबंध में यह भी भाषिक विमर्श है कि कार्तिक महीने को क्वॉर कहते हैं. कार्तिक महीने में जलवायु समशीतोष्ण रहती है. इस महीने को धार्मिक दृष्टि से भी पवित्र माना जाता है. अतः इस महीने में तीर्थाटन को पुण्यप्रद कहा गया है. यहां तक कि अनेक पुराणों में कार्तिक महिमा के विस्तृत वर्णन हैं. प्राचीनकाल में वर्षारंभ मार्गशीर्ष से होता था.

झारखंड की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कांवर किसे कहते हैं?

गीता में ‘महीनों में मार्गशीर्ष हूं’ की उक्ति है, मार्गशीर्ष से पूर्व ही कार्तिक का महीना होता है. इसलिए वर्षारम्भ के समय लोग तीर्थाटन करते थे. उन दिनों भी कांवर की प्रथा प्रचलित रही होगी. कांवर के स्थान पर क्वॉर और फिर कांव का लोक-प्रचलन भाषा-विस्तार की दृष्टि से कल्पित है. कांवर शब्द के अर्थ बोध के प्रसंग में यह भी कथा है कि काम्पिलवासिनी लक्ष्मी को जो हठपूर्वक ला दे, उसे कांवर कहते हैं. इस प्रकार भक्ति भाव से पूरित होकर जो कांवर उठाते हैं, उनके तीनों जन्मों के पापों का विनाश हो जाता है और लक्ष्मी उनके घर में निवास करती है.

कामद् लिंग पर कांवर चढ़ाने की प्रथा

कांवर चढ़ाने की प्रथा बैद्यनाथ कामद् लिंग पर सर्वाधिक है. ऐसी मान्यता है कि भ्रमवश भी जो कांवर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है. कांवर को लोकभाषा में पुण्यवाचक माना जाता है. प्राचीनकाल से ही शिव के विग्रह पर गंगा जल चढ़ाने की प्रथा कांवर के माध्यम से वर्तमान है. लोकप्रसिद्धि ही इसके प्रचलन का आधार है. कांवर के प्रसंग में शिव और राम की कथा मिलती है. मराठी, बंगला और मैथिली में कांवर के अनेक प्रसिद्ध गीत हैं. इस दिशा में मिथिला की महेशवाणी और नाचारी को आज भी लोकप्रियता प्राप्त है. कामर लेकर चलने वाले को कमरथुआ कहा जाता है.

सुल्तानगंज से बैद्यनाथधाम तक सुनी जाती है कमरथुआ के भजनों की धुन

कमरथुआ के भजनों की धुन आज भी सुल्तानगंज से बैद्यनाथधाम तक सुनी जा सकती है. इन्हीं लोकगीतों को आश्रय मानकर कांवर माहात्म्य या कांवर के इतिहास के संबंध में जानकारी मिलती है. आदिकाल से धर्म और इतिहास की परंपरा में कुछ ऐसी बातें प्रचलित हैं, जिनका शास्त्रीय उल्लेख हमें कम प्रभावित करता है, किन्तु जिनकी लौकिक सत्ता यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि शास्त्रों की वार्ता से बढ़कर वे धार्मिक मान्यताएं जिन्हें लोक संस्कृति ने सहज ही अनादिकाल से आध्यात्मिक उन्नति कि लिए अपनाया है, कांवर की प्रथा उसी आध्यात्मिक ज्योतिपुंज का मूर्तरूप है. यही कारण है कि अतीत के अनाम तिथि पत्र के युग से ही सुलतानगंज से बैद्यनाथधाम तक पैदल गंगाजल लाने की प्रथा प्रचलित है. बैद्यनाथधाम ही वह पवित्र तीर्थ स्थल है, जहां करोड़ों भारतीय कांवर चढ़ाकर अपने को धन्य समझते हैं. (साभार : श्रीश्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग वाङ्गमय से)

इसे भी पढ़ें

बसिया के ओमप्रकाश साहू की मत्स्य क्रांति के मुरीद पीएम मोदी, ‘मन की बात’ में कही बड़ी बात

Weather Alert: झारखंड के इन 3 जिलों में अगले 3 घंटे में बदलेगा मौसम, होगी बारिश, वज्रपात का भी अलर्ट

Shravani Mela 2025: धरना की प्रथा और बाबा बैद्यनाथधाम

Shravani Mela 2025: कांवरिया पथ पर शिवभक्तों का रेला, बाबा मंदिर से 30 किलोमीटर दूर तक लगी भीड़

Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel