देवघर. छोटी-छोटी बातों में विवाद बढ़ने से लोग थाने और कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने को मजबूर हो जाते हैं. यह विवाद धीरे-धीरे दुश्मनी का रूप ले लेता है, जिसका असर बच्चों और पूरे परिवार पर पड़ता है. केस और काउंटर केस में पूरी कमाई पुलिस, डॉक्टर और वकीलों के बीच बंट जाती है. ऐसे में जरूरत है कानून की बुनियादी जानकारी रखने की और विवादों का समाधान लोक अदालत जैसे वैकल्पिक मंच से करने की. देवघर कोर्ट के अधिवक्ता संजीव कुमार ने प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में इन पहलुओं को विस्तार से बताया.
लीगल एक्सपर्ट ने कहा कि आर्थिक विकास व पारिवारिक उन्नति के लिए कानून की सामान्य जानकारी लोगों को रखनी वर्तमान में अनिवार्य हो गयी है. बढ़ते अपराध पर संतुलन लाने व समाज में शांति कायम करने के लिए लोक अदालत के माध्यम से केस-मुकदमाें को निष्पादित कराने का अभियान चलाया गया है. उन्होंने कहा कि थाना में घटना के संदर्भ में शिकायत देने पर एफआइआर दर्ज हो गया है और पुलिस आरोपितों के विरुद्ध अग्रेतर कार्रवाई नहीं कर रही है, तो निराश होने की जरूरत नहीं है. न्याय के लिए वरीय पदाधिकारी को आवेदन दें. अगर वरीय पदाधिकारी के निर्देश पर भी पुलिस कार्रवाई नहीं करती है, तो संबंधित न्यायालय में सूचक पिटीशन दें, अदालत थाना से मुकदमा के संबंध में प्रोग्रेस रिपोर्ट की मांग कर सकती है. शनिवार को प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में देवघर, गोड्डा, साहेबगंज, दुमका व जामताड़ा से डेढ़ दर्जन से अधिक कॉल आये, जिसमें सबसे अधिक जमीन संबंधित सवाल पूछे गये. पश्चात पारिवारिक विवाद, चेक बाउंस, सरकारी विभाग से मिलने वाली परेशानी आदि के थे. अधिवक्ता ने उनके सवालों को बारीकी से सुना व विधिसम्मत सलाह दी.लोगों के सवाल व लीगल एक्सपर्ट के जवाब
देवघर से संतोष कुमार का सवाल : देवघर से बांका जाने के क्रम में बांका के निकट एक वाहन ने धक्का मार दिया था, जिससे मैं गंभीर रूप से जख्मी हो गया. जनवरी की घटना है, केस दर्ज हो गया है, लेकिन पुलिस आरोपितों पर कार्रवाई नहीं कर रही है. क्या करेंअधिवक्ता की सलाह : सबसे पहले एफआइआर तथा संपूर्ण आदेश फलक की सर्टिफाइड कॉपी अदालत से निकलवा लें तथा आवेदन के साथ इसकी छायाप्रति लगा कर वरीय पुलिस पदाधिकारी को आवेदन दें. जांच के पश्चात आरोपितों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होगी. अगर कार्रवाई नहीं की जाती है, तो संबंधित अदालत में मिसलेनियस पिटीशन अपने अधिवक्ता के माध्यम से दें, अदालत थाना से प्रगति प्रतिवेदन यानि प्रोग्रेस रिपोर्ट की मांग कर सकती है. साथ ही साथ क्लेम ट्रिब्यूनल में क्लेम केस दाखिल कर क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं.
साहेबगंज से तौफिक आलम का सवाल : एक अधिवक्ता हैं, जिसे हत्या के केस में आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी. वर्तमान में वे जेल से बाहर आ गये हैं. क्या वे पुन: कोर्ट में प्रैक्टिस कर सकते हैं.अधिवक्ता की सलाह : सेशन कोर्ट से सजा सुनायी गयी है और हाइकोर्ट से अगर उन्हें रिहा कर दिया है, तो निश्चित तौर पर वकालत कर सकते हैं. एडवोकेट एक्ट में मनाही नहीं है. प्रैक्टिस पर रोक बार काउंसिल ऑफ इंडिया लगा सकती है.
गोड्डा के अमलो से सन्नी कुमार शर्मा का सवाल : सरकारी जमीन का अतिक्रमण कुछ लोग कर रहे हैं. इसे रोकने के लिए क्या करें. कहां आवेदन देने से जल्दी कार्रवाई होगी.अधिवक्ता की सलाह : जिस अंचल क्षेत्र की जमीन है, वहां के अंचल पदाधिकारी को पहले आवेदन देकर त्वरित कार्रवाई का अनुराेध कर सकते हैं. सीओ द्वारा अतिक्रमण करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी. अगर वहां से संतुष्ट नहीं हैं, तो एसडीओ कोर्ट में पिटीशन दे सकते हैं. जमीन की जांच के पश्चात अतिक्रमण को मुक्ति कराया जायेगा. सरकारी जमीन पर घर बना लिया है, तो घर पर प्रशासन बुलडोजर चला सकती है.
देवघर के सोनारायठाढ़ी से कौशल्या देवी का सवाल : रैयती जमीन ली हूं और विगत 25 साल से घर बना कर रह रही हूं. खाली जमीन पर शौचालय बनाया था, जिसे जमीन के मालिक ने जबरन तोड़ दिया और वह दूसरे के पास बेच रहा है. क्या करेंअधिवक्ता की सलाह : आपके पास जमीन के जो भी दस्तावेज हैं एवं टूटे शौचालय की तस्वीर खींच कर नजदीकी थाना में उसके विरुद्ध शिकायत दे सकती हैं. जांच के पश्चात कानूनी कार्रवाई की जायेगी. वैसे तो एसपीटी एक्ट में रैयती जमीन खरीद बिक्री का प्रावधान नहीं है. दूसरे व्यक्ति को अगर वह बेच रहा है, तो कानून की नजर में सही नहीं माना जायेगा.
गोड्डा के पथरगामा से अनिल कुमार का सवाल : पथरगामा थाना में मारपीट का केस दर्ज कराया हूं. पुलिस ने केस सिंपल कर कोर्ट भेज दिया है. पांच गवाही हो चुकी है. क्या गैर जमानती धाराएं जोड़ने का आवेदन दे सकते हैं.अधिवक्ता की सलाह : केस का ट्रायल चल रहा है, तो अपने अधिवक्ता के माध्यम से धारा जोड़ने का आवेदन दे सकते हैं. अदालत दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात आदेश पारित करती है. आदेश पक्ष में आने पर धाराएं जुट सकती हैं. अगर आरोपित के पक्ष में आदेश होता है, तो रिवीजन पिटीशन दाखिल करने के लिए आप स्वतंत्र हैं.
देवघर से अशोक सरकार का सवाल : सेल डीड के माध्यम से पूर्वजों द्वारा जमीन खरीदी गयी है. उक्त जमीन को अपने नाम से कराना चाहता हूं. इसके लिए क्या जानकारी चाहता हूं.अधिवक्ता की सलाह : जमीन से संबंधित सभी प्रकार के दस्तावेजों को लेकर सीओ को आवेदन दें ओर अपने नाम से म्यूटेशन करा सकते हैं. जमीन के कई अंश धारक हैं, तो सिविल सूट के माध्यम से पहले बंटवारा करा सकते हैं.
देवघर के कुंडा से संजय राउत का सवाल : चार भाई हैं और सभी एक साथ रह रहे हैं. अलग-अलग जगहाें पर काम करते हैं. सेलेबुल जमीन बड़े भाई ने अपने नाम से खरीद ली है. सभी भाईयों ने पैसे लगाये हैं, लेकिन जमीन दे नहीं रहे हैं.अधिवक्ता की सलाह : अगर सभी भाइयों द्वारा आर्थिक सहयोग देकर जमीन की खरीदारी हुई तो उसका विवरण सेल डीड में होगा. सेल डीड में स्पष्ट लिखा रहता है कि निजी कमाई से खरीदी गयी है या संयुक्त आय से खरीद की गयी है. जमीन में हिस्सा के लिए सिविल जज सीनियर डिविजन प्रथम के कोर्ट में बंटवारा का सूट दाखिल कर सकते हैं.
————-इसके अलावा गोड्डा के जमनी पहाड़पुर से रूपमुनि टुडू, गोड्डा पहाड़पुर से मदन कुमार मंडल, देवघर से शुभम कुमार,सोनारायठाढ़ी से संतोष साह, देवघर बाजार से पूनम गुप्ता, गिरीडीह से धीरज कुमार सिंह आदि ने सवाल किये, जिसका अधिवक्ता ने विधिसम्मत तरीके से सलाह दी.
हाइलाइट्स
आरोपितों के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई नहीं करे, तो पिटीशन देने पर कोर्ट थाना से मांग सकती है प्रोग्रेस रिपोर्ट
प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में अधिवक्ता संजीव कुमार ने लोगों को दी कानूनी सलाहडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है