Gurudas Chatterjee Death Anniversary| निरसा (धनबाद), अरिंदम चक्रवर्ती : निरसा के दिवंगत विधायक गुरुदास चटर्जी ने बिहार की लालू प्रसाद यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री का ऑफर ठुकरा दिया था. अपनी जगह टुंडी के विधायक डॉ सबा अहमद को मंत्री बनाने का सुझाव बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को दिया था. डॉ अहमद मंत्री भी बने. निरसा से लगातार 3 बार विधायक रहने के बावजूद गुरुदास चटर्जी ने कभी अपनी कार नहीं खरीदी. चमक-दमक की राजनीति से सदैव दूर रहे. लालू यादव ने अपनी सरकार में मंत्री बनने का ऑफर दिया, तो गुरुदास चटर्जी ने हंसते-हंसते कहा- ‘हम तो जाति से ब्राह्मण हैं. विचार से वामपंथी हैं. जिस घर में जायेंगे, वहीं दो वक्त का भोजन मिल जायेगा.’ लालू प्रसाद से बातचीत करते हुए अपने अभिन्न मित्र और टुंडी के तत्कालीन विधायक डॉ सबा अहमद को मंत्री बनाने की सिफारिश कर दी.
गुरुदास के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले एक नेता ऐसे करते हैं याद
भले ही आज गुरुदास नहीं हैं, लेकिन उनका व्यवहार, उनके विचार, उनके संस्कार आज भी लोगों को याद हैं. गुरुदास चटर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले एक नेता कहते हैं कि स्वाभाविक रूप से राजनीतिक विरोधी थे. निरसा की एक फैक्ट्री में आंदोलन शुरू किया था. कुमारधुबी पुल से अपने एक कार्यकर्ता के स्कूटर पर बैठकर निरसा आंदोलन स्थल पर आ रहा था. गुरुदास बुलेट से चिरकुंडा की ओर जा रहे थे. कुमारधुबी पुल पर अचानक जोर से आवाज देकर रोका. गुरुदास चटर्जी अपनी बुलेट से उतरे और मुझे बुलाया. कार्यकर्ताओं की भीड़ से दूर ले गये. एकांत में कहा कि उस समय के झारखंड आंदोलन के अलावा अन्य कांड में एसपी रैंक के पुलिस अधिकारी उन्हें खोज रहे हैं. कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है. या तो अपना पक्ष रख दो, नहीं तो सरेंडर कर देना. एसपी रैंक के अफसर को कन्विंस कर दये हैं.
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एके राय ने कहा था- माफिया ने उनके भविष्य का कत्ल कर दिया
14 अप्रैल को बंगाली समाज के लोग पोईला वैशाख मनाते हैं. यह उनका नव वर्ष होता है. उसी दिन गुरुदास चटर्जी की हत्या कर दी गयी. अपने गुरु एके राय की बातों पर गुरुदास चटर्जी अंतिम समय तक अडिग रहे. समझौताविहीन, सुविधाविहीन राजनीति की बुनियाद रखी. 3 छोटे कमरों वाले घर में रहना, न लाल बत्ती की गाड़ी, न बॉडीगार्ड, न नौकर-चाकर से सेवा लेना, अत्यंत सादा जीवन था. समझौतावादी एवं सुविधापरस्त राजनीति को गुरुदास बदलना चाहते थे. उनकी हत्या ने मार्क्सवादी समन्वय समिति के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद एके राय को भी झकझोर दिया. अपने जीवन काल में राय साहब ने कहा था कि माफियाओं ने उनके भविष्य का कत्ल कर दिया है.
शोषणविहीन झारखंड की लड़ाई रह गयी अधूरी
14 अप्रैल 2000 को घायल अवस्था में गुरुदास चटर्जी के पास उनके बड़े भाई रामदास चटर्जी, छोटे भाई सुकेश सहित अन्य परिजन मौजूद थे. अचानक सुकेश ने कहा- ‘दादा हमें छोड़कर चले गये. अब हमारे साथ कौन खड़ा रहेगा.’ कॉमरेड गुरुदास सिर्फ अपने परिवार को छोड़कर नहीं गये. झारखंड के लोगों के कंधे पर उन अधूरे कामों को पूरा करने का दायित्व भी छोड़ गये, जो वे पूरा नहीं कर सके. अब झारखंडियों के लिए चुनौती है कि वे उनके उसूलों, आदर्शों, संघर्षों को शोषणविहीन झारखंड निर्माण में कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं या नहीं…
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