Dhanbad News: आइआइटी आइएसएम के इनवायरमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों व शोधार्थियों की टीम वातावरण से कार्बन डाइ-ऑक्साइड के स्तर को कम करने के लिए काम कर रही है. टीम ने इस अभियान को बायो-बैरियर नाम दिया है. इन बैरियरों का उद्देश्य खनन और औद्योगिक गतिविधियों से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को कम करना है. बायो-बैरियर दरअसल शैवाल (एलगी) से बनी दीवारें होती हैं, जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर लेती हैं. चीन और जापान में यह तकनीक पहले से इस्तेमाल हो रही है और सफल भी है. अब भारत में भी इसका विकास तेजी से हो रहा है. इनवायरमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो आलोक सिन्हा के अनुसार भारत की खनन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह शोध कार्य किया जा रहा है. इस प्रयास के साथ ही समानांतर रूप से पौधरोपण पर भी जोर दिया जा रहा है.
प्रदूषण नियंत्रण की दोहरी रणनीति
: प्रो सिन्हा बताते हैं कि इस शोध में विशेष ध्यान वायु और जल प्रदूषण को कम करने पर दिया गया है. प्रयास यह भी है कि खनन स्थलों से निकलने वाले पानी को आसपास की आबादी के लिए सुरक्षित रखा जा सके. खनन में प्रयुक्त मशीनों से कम कार्बन उत्सर्जन हो.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है