अंतरराष्ट्रीय संयुक्त परिवार दिवस पर विशेष :
तेजी से बदलते समय में जहां एकल परिवार की अवधारणा ने शहरी जीवनशैली को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, वहीं आज भी कई घरों में संयुक्त परिवार की जड़ें मजबूती से टिकी हैं. जीवन की आपाधापी, प्रोफेशनल व्यस्तताओं व स्वतंत्रता की चाह ने भले ही लोगों को अलग कर दिया हो, लेकिन आज भी बहुत से परिवार ऐसे हैं, जहां तीन पीढ़ियां एक साथ हंसती, लड़ती, सुलझती व जीती है. दादा-दादी की कहानियां, चाचाओं की डांट, भाइयों की शरारत और बहनों का साथ, ये सब मिलकर उस खूबसूरत रिश्तों की माला को गूंथते हैं जिसे संयुक्त परिवार कहते हैं. हर साल 15 मई को अंतरराष्ट्रीय संयुक्त परिवार दिवस मनाया जाता है, ताकि समाज में संयुक्त परिवारों के महत्व, उनके योगदान और सांस्कृतिक विरासत को सम्मान दिया जा सके. भारत में सदियों से संयुक्त परिवार की परंपरा रही है.परिवार जो आज भी संजोए है संयुक्तता की मिसाल
तेजी से बदलते सामाजिक ढांचे व न्यूक्लियर फैमिली के इस दौर में धनबाद के धैया निवासी विकास बजानिया का परिवार आज भी संयुक्त परिवार की शानदार मिसाल पेश कर रहा है. यहां चार पीढ़ियां एक साथ एक ही छत के नीचे रहती हैं. माता-पिता, बड़े भाई-भाभी, भतीजे उनकी पत्नी व उनकी संतानों के साथ विकास का परिवार आज भी अपने हर सुख-दुख, हंसी-खुशी को साझा करता है. विकास बताते हैं कि उनके बच्चे उनसे ज्यादा अपने चाचा-चाची के साथ वक्त बिताते हैं. पूरे परिवार का खाना एक साथ बनता है. सभी साथ बैठकर भोजन करते हैं. वे कहते हैं, “हमारे घर में अगर कोई एक दुखी होता है, तो पूरा परिवार उसके साथ खड़ा होता है.” विकास के परिवार की एकता व आपसी प्रेम आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है कि साथ रहना अब भी संभव है और बेहद खूबसूरत भी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है