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बकाया पैसे के लिए क्वार्टर रोके रखना, आपकी कानूनी स्थिति को कर सकता है कमजोर

Prabhat Khabar Legal Counseling: हाईकोर्ट में ज्यूडिशियल रिव्यू या रिट याचिका दायर कर सकते हैं. इसमें आप न्यायिक त्रुटि का हवाला देते हुए निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकते हैं. यदि आपकी आय तीन लाख से अधिक है, तब भी आप "विशेष परिस्थितियों में विधिक सहायता" की मांग कर सकते हैं, यह दिखाते हुए कि आपकी स्थिति असाधारण है.

Prabhat Khabar Legal Counseling: भूमि, संपत्ति, दुर्घटनाओं के लिए बीमा कंपनियों से क्लेम और पारिवारिक विवादों में कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग के दौरान अधिवक्ता विभाष कुमार महतो ने दिये. लीगल काउंसलिंग के दौरान धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और कोडरमा से कई लोगों ने कानूनी सलाह ली.

गिरिडीह से जगत नारायण का सवाल : मैं 2014 में सीसीएल से सेवानिवृत्त हुआ था. कंपनी ने अभी तक मेरा पूरा पावना क्लियर नहीं किया है. इसलिए मैंने अबतक कंपनी का क्वार्टर खाली नहीं किया है. इन सबमें 10 वर्ष से अधिक समय हो गये हैं. मुझे मेरा पूरा पावना मिल जाए, इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : कंपनी को आपका पूरा पावना दे देना चाहिए. आप कंपनी से आरटीआइ के तहत जानकारी मांग सकते हैं कि भुगतान में देरी क्यों हो रही है. एक वकील की मदद लेकर लेबर कोर्ट में दावा दायर कर सकते हैं. हालांकि क्वार्टर रोके रखना आपकी कानूनी स्थिति को कमजोर कर सकता है, इसलिए कानूनी मार्ग से समाधान बेहतर होगा.

धनबाद से एसके सिंह का सवाल : धनबाद की निचली अदालत से मेरे एक ही मामले में न्यायिक त्रुटि के कारण दो अलग-अलग फैसले आ गए हैं. जिला (सेशन कोर्ट) ने इसे न्यायिक त्रुटि मानते हुए मुझे हाईकोर्ट जाने की सलाह दी है. जबकि मेरी इसमें कोई गलती नहीं है, फिर भी मुझे हाई कोर्ट का खर्च वहन करना पड़ेगा. मैंने झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा) को पत्र लिखा था, लेकिन मेरी वार्षिक आय तीन लाख रुपये से अधिक होने के कारण मुझे नि:शुल्क विधिक सहायता देने से इनकार कर दिया गया. अब मुझे क्या करना चाहिए?

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अधिवक्ता की सलाह : आप हाईकोर्ट में ज्यूडिशियल रिव्यू या रिट याचिका दायर कर सकते हैं. इसमें आप न्यायिक त्रुटि का हवाला देते हुए निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकते हैं. यदि आपकी आय तीन लाख से अधिक है, तब भी आप “विशेष परिस्थितियों में विधिक सहायता” की मांग कर सकते हैं, यह दिखाते हुए कि आपकी स्थिति असाधारण है. आप हाई कोर्ट के लीगल एड सेल से संपर्क करें. ऐसे में कोर्ट विशेष निर्देश देकर आपको राहत दे सकता है. इसमें कोर्ट फीस व वकील का शुल्क माफ करना शामिल है.

तोपचांची से महेन्द्र सिंह का सवाल : एक जमीन संबंधी टाइटल सूट में निचली अदालत का निर्णय मेरे पक्ष में नहीं आया, जिसे मैंने हाई कोर्ट में चुनौती दी है. लेकिन अपील लंबित रहने के दौरान ही विपक्षी पक्ष ने उस भूमि का कुछ हिस्सा बेच दिया है, कृपया बताएं कि मुझे इस स्थिति में क्या कानूनी कदम उठाने चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : आपको उच्च न्यायालय में तुरंत स्थगन याचिका दाखिल करनी चाहिए, जिसमें बिक्री पर रोक लगाने की मांग करें. साथ ही, यह साबित करें कि मामला विचाराधीन होने के बावजूद विपक्षी ने कोर्ट की प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए संपत्ति बेची है. यदि संपत्ति की बिक्री हो चुकी है, तो आप खरीदार को भी पक्षकार बनाकर विक्रय रद्द करने की याचिका दायर कर सकते हैं.

धनबाद के सुशील कुमार का सवाल : मैंने 50 वर्ष की उम्र में एलआइसी की जीवन सरल पॉलिसी 15 वर्षों की अवधि के लिए ली थी, जिसकी मैच्योरिटी वैल्यू 1.25 लाख रुपये निर्धारित थी. पॉलिसी पूरी होने पर एलआइसी मुझे केवल ₹83,000 रुपये ही दे रहा है. कृपया बताएं कि मुझे पूरी राशि प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : आप इसे बीमा लोकपाल के पास शिकायत दर्ज करें. अगर फिर भी न्याय नहीं मिलता है, तो आप उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज कर सकते हैं. सभी दस्तावेज जैसे पॉलिसी बांड, प्रीमियम रसीद और भुगतान पत्र अपने पास रखें. बीमा कंपनियों को पारदर्शिता और वादा अनुसार भुगतान देना बाध्यकारी है.

गोमिया से सतीश प्रताप का सवाल : मैं भारतीय सेना का एक सेवानिवृत्त जवान हूं. पिछले वर्ष मेरे गांव में एक पक्ष द्वारा जबरन दूसरे पक्ष के खेत से धान काट लिया गया था. मैंने इस मामले में कोर्ट में पीड़ित के पक्ष में गवाही दी थी. तब से दूसरा पक्ष, जो कि दबंग है, मुझे अंजाम भुगतने की धमकी दे रहा है. मुझे क्या करना चाहिए ?

अधिवक्ता की सलाह : आप तत्काल अपने क्षेत्र के थाना में जाकर धमकी देने की लिखित शिकायत दर्ज कराएं और स्वयं की गवाही के कारण खतरे की आशंका स्पष्ट करें. आप जिला प्रशासन को आवेदन देकर पुलिस सुरक्षा की मांग भी कर सकते हैं. आप चाहें तो एसपी को भी लिखित शिकायत दे सकते हैं. पूर्व सैनिक होने के कारण आपकी शिकायत को विशेष संवेदनशीलता से देखा जाएगा.

बगोदर से रमेश पांडेय का सवाल : मैं एक सरकारी बैंक में आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से कार्यरत हूं. मुझे पिछले छह माह से वेतन नहीं मिल रहा है. कृपया बताएं कि मुझे अपने बकाया वेतन की प्राप्ति के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : आप सबसे पहले संबंधित आउटसोर्सिंग एजेंसी को लिखित रूप से वेतन भुगतान की मांग करें और उसकी एक प्रति बैंक शाखा प्रबंधक को भी दें. यदि समाधान नहीं मिले, तो श्रम आयुक्त कार्यालय में शिकायत दर्ज करें. साथ ही आप कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट के तहत कार्रवाई और बकाया वेतन की मांग कर सकते हैं.

बोकारो से संजय साव का सवाल : मैंने हाल ही में एक व्यक्ति को यूपीआइ के माध्यम से 30 हजार रुपये का भुगतान किया था. बाद में पता चला कि जिस खाते में यह राशि भेजी गई, उसका उपयोग साइबर अपराधियों द्वारा किया जाता है. अब मुझे चिंता है कि कहीं इस लेन-देन के कारण मैं किसी कानूनी मुसीबत में न फंस जाऊं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : आप तुरंत साइबर थाना या पुलिस स्टेशन में जाकर स्वैच्छिक सूचना दें कि आपने अनजाने में संदिग्ध खाते में राशि भेज दी थी. अपने लेन-देन की रसीद, चैट या कॉल रिकॉर्डिंग जैसे साक्ष्य साथ रखें. यह पूर्व सूचना आपको भविष्य में किसी जांच या कार्रवाई से सुरक्षित रखने में मदद करेगी. साथ ही, बैंक को लिखित सूचना देकर लेन-देन की जांच की मांग करें. यदि संभव हो तो राशि वापस पाने के लिए बैंक और साइबर सेल की मदद लें.

झरिया से सूरज कुमार सवाल : कुछ दिनों पहले एक घटना के दौरान मैं मौके पर पुलिस की वीडियो बना रहा था. पुलिस ने मुझे जबरन ऐसा करने से रोका और मेरी उनसे बहस हो गई. इसके बाद पुलिस मुझे थाने ले गयी, जहां मेरे साथ मारपीट की और पीआर बांड भरने का दबाव डाला, जिसे मैंने नहीं भरा. हालांकि मुझे छोड़ दिया गया, लेकिन इस घटना से मैं मानसिक रूप से आहत हूं. कृपया बताएं कि ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : वीडियो बनना कानूनी अपराध नहीं है. आप इस मामले में सबसे पहले एसएसपी को लिखित शिकायत दें, जिसमें घटना, स्थान, समय और दोषी पुलिसकर्मियों के नाम या पहचान का विवरण हो. यदि कार्रवाई न हो, तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराएं.

धनबाद से सुधीर कुमार का सवाल : मैंने वर्ष 2010 से 2016 के बीच एक बिल्डर को प्लॉट खरीदने के लिए 18 लाख रुपये से अधिक राशि चेक के माध्यम से दी थे. अब तक न तो उसने मुझे जमीन दी है और न ही मेरी पूरी राशि लौटाई है. मैंने इस संबंध में धोखाधड़ी का आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया, जिसके बाद बिल्डर ने केवल एक लाख रुपये लौटाया है. शेष राशि लौटाने में वह टालमटोल कर रहा है. कृपया बताएं कि मुझे आगे क्या कानूनी कदम उठाने चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : आपको आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी वसूली मुकदमा (मनी सूट) भी दाखिल करना चाहिए, ताकि शेष 17 लाख रुपये से अधिक की राशि की कानूनी वसूली सुनिश्चित हो सके. मनी सूट में कोर्ट आरोपी की संपत्ति कुर्की कर राशि की वसूली कर सकती है.

चास से गोपाल सिंह का सवाल : मैंने एक व्यक्ति को 1.05 लाख रुपये का चेक दिया था, जो बाउंस हो गया. इस पर कोर्ट ने मेरे खिलाफ निर्णय देते हुए राशि लौटाने का निर्देश दिया और यह भी कहा कि 25 प्रतिशत राशि 30 दिनों के भीतर कोर्ट में जमा करायें. दुर्भाग्यवश, मैं यह राशि समय पर जमा नहीं कर पाया. अब कोर्ट वह राशि लेने को तैयार नहीं है और मेरी गिरफ्तारी की आशंका है. कृपया बताएं कि मुझे अब क्या करना चाहिए?

अधिवक्ता की सलाह : आपको तत्काल हाई कोर्ट में जाकर जमानत याचिका दाखिल करनी चाहिए. साथ ही, 25 प्रतिशत राशि देरी से जमा करने की अनुमति के लिए अनुग्रह याचिका दाखिल करें. कोर्ट को बताएं कि विलंब अनजाने व आर्थिक तंगी के कारण हुआ था, लेकिन अब आप भुगतान के लिए तैयार हैं. किसी भी स्थिति में भागने या छिपने की कोशिश न करें, बल्कि कानूनी माध्यम से राहत पाना ही उचित मार्ग है. इस मामले में एक बेहतर वकील की मदद लें.

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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