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अब संताल परगना में चरमपंथियों का आतंक नहीं, दुर्गम क्षेत्रों में विकास की गति बढ़ी, क्रशर इंडस्ट्री में भी रौनक लौटी

संताल परगना में नक्सलवाद समाप्ति की ओर, विकास की गति बढ़ी

हिंसा को बढ़ावा देकर चुनाव में भी बनते रहे थे बाधक, विकास के कार्यों को भी किया जाता रहा था प्रभावित

राहत. राज्य में 58 फरार इनामी नक्सली, एक भी संताल परगना से नहीं

आनंद जायसवाल, दुमका

संताल परगना के दुमका-पाकुड़ व गोड्डा जिले में पिछले चार-पांच साल से नक्सलवाद का सफाया हो चुका है. इस अवधि में न तो कोई ऐसी वारदात हुई है और न ही नक्सलियों की अपनी उपस्थिति ही दिखी है. लगातार चलाये गये अभियान ने संताल परगना से नक्सलवाद को और नक्सल विचारधारावाले चरमपंथियों का सफाया करने में पुलिस-प्रशासन व सरकार सफल रही है. कई बड़े और कुख्यात नक्सलियों ने या तो हथियार डालकर मुख्य धारा में लौटना ही बेहतर समझा है या उनका पुलिस की गोली से खात्मा ही हुआ है. हथियार डालनेवाले और सरकार की आत्मसर्मपण नीति से प्रभावित ऐसे कई नक्सली आज ओपेन जेल में हैं. उनके परिवार को इस नीति से लाभान्वित करने की पहल भी हुई है. राहत भरी खबर यह भी है कि राज्य में सूचीबद्ध 58 फरार इनामी नक्सली में एक भी संताल परगना से नहीं हैं.

नक्सल गतिविधियां थमने से तेज हुई विकास की रफ्तार

दुमका, पाकुड़ व गोड्डा जिले में नक्सल दस्ते के सफाये व नक्सल गतिविधियों पर लगे विराम से दुर्गम व सुदूरवर्ती इलाके में विकास की रफ्तार तेज हुई है. दुमका-पाकुड़ जैसे जिले जो पत्थर उद्योग के लिए जाने जाते थे, वहां नक्सली धमक, पोस्टरबाजी, लेवी वसूली और अन्य घटनाओं ने कारोबारियों को व्यवसाय समेटने के लिए मजबूर कर दिया था, पर आज एक बार फिर इलाके में पत्थर व्यवसाय चमकने लगा है. इलाके की खुशहाली लौटने लगी है. सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से होने लगा है. ग्रामीण सड़कों का जाल बिछ चुका है. जो इलाके उग्रवाद प्रभावित माने जाते थे, वहां आसानी से लोग देर शाम भी आवाजाही कर पा रहे हैं. साल 2020 से पहले जेसीबी फूंकने, हाइवा जलाने, क्रशर प्लांट में आगजनी करने, पुलिस अभियान के दौरान हमला करने व मुखबिरी का आरोप लगाकर आम लोगों के हत्या की घटनाएं होती रहती थी.

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नक्सलियों के लिए पारसनाथ से राजमहल की पहाड़ियां बन गया था कोरिडोर

दरअसल दुमका जैसे जिले में अस्सी के दशक में भी नक्सलवाद ने जड़े जमानी शुरू की थी, पर उसे इलाके में पोषण नहीं मिल पाया था. तब बंगाल के वीरभूम से सटे कुछ इलाके ही प्रभावित थे. तब टोंगरा जैसे थाना को बनाना पड़ा था. हालांकि उसके बाद इस पर विराम लग गया था. बाद में 2004-05 में नक्सलवाद ने जड़े जमानी शुरू की. बद्री राय जैसे लोगों ने इसकी जड़ों को सींचने का, इसे विस्तारित करने का काम किया था. बाद में एक के बाद एक हुई घटनाओं ने दुमका ही नहीं देशभर को दहलाया था. इसी जिले में पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार समेत छह पुलिस कर्मियों की हत्या नक्सलियों ने काठीकुंड में 2 जुलाई 2013 को कर दी थी. उसके बाद दुमका, गोड्डा व पाकुड़ जिले की पुलिस को एसएसबी का साथ मिला, जिसने उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलाने में अहम भूमिका निभायी.

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दुमका में बड़ी नक्सली घटनाएं

26 अप्रैल 2008: शिकारीपाड़ा के थाना प्रभारी शमशाद अंसारी, पुलिस नासीर अंसारी व रामदयाल पासवान हुए शहीद

23 अप्रैल 2009: काठीकुंड के जोड़ाआम में लोकसभा चुनाव में प्रतिनियुक्त चौकीदार हरिलाल मिर्धा की हत्या

08 दिसंबर 2009: शिकारीपाड़ा के रामगढ़ में दो बीएसफ जवान धर्मवीर सिंह व दिनेश कुमार हुए शहीद

10 सितंबर 2010: काठीकुंड के तालपहाड़ी में नक्सली मुठभेड़ में जामा के तत्कालीन थाना प्रभारी सतानंद सिंह हुए शहीद.

02 जुलाई 2013: काठीकुंड थाना क्षेत्र के जमनी-आमतल्ला के बीच पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार व उनके पांच अंगरक्षक शहीद हुए.

24 अप्रैल 2014: लोकसभा चुनाव के दौरान शिकारीपाड़ा के पलासी-सरसाजोल के बीच लौट रही पोलिंग पार्टी पर हमला, पांच पुलिसकर्वी व तीन मतदानकर्मी की मौत.

02 जून 2019: रानीश्वर के कठलिया में एसएसबी के जवान नीरज छेत्री हुए शहीद.

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बेगुनाहों की नक्सलियों ने ली थी जान

15 नवंबर 2007: रामगढ़ के कुलापाथर में बलराम पाल की हत्या कर मोटरसाइकिल जलायी.

11 फरवरी 2009: शिकारीपाड़ा के मटियाजोर में ग्रामीण शंकर टुडू की हत्या कर सारी संपत्ति जला दी.

04 सितंबर 2009: शिकारीपाड़ा के पाटोसिमल में ग्रामीण राजेंद्र भगत की हत्या.

22 मार्च 2010: मसलिया के इसमाला में ग्रामीण रामपद गोरायं की गोली मारकर हत्या.

28 फरवरी 2011: रामगढ़ के सांपडहर हटिया के पास श्रीकांत किस्कू की गला रेतकर हत्या.

31 जनवरी 2011: शिकारीपाड़ा के चितरागढ़िया में गला काटकर बाबूराम किस्कू व पुत्ती मुर्मू की हत्या.

10 जुलाई 2014: मसलिया के मकरमपुर में सिदपहाड़ी के हन्नान अंसारी की गोली मारकर हत्या.

15 साल में 100 नक्सली धराये, कई ने किया सरेंडर, मारा गया था ताला दा

पिछले 15 साल में केवल दुमका जिला में ही ऐसे 100 से अधिक नक्सली जेल भेजे गये, जिन्हें वारदातों में किसी न किसी रूप में संलिप्त रहने का आरोपी बताया गया था. कई जेल से सजा काटकर मुख्य धारा में लौट चुके हैं और आज सम्मान की जिंदगी जीने की शुरूआत कर चुके हैं. करीब 13 नक्सलियों ने सरेंडर भी किया था.

26 अप्रैल 2008: शिकारीपाड़ा के पोखरिया पहाड़िया टोला में नक्सल समर्थक शिबास्टीन मारा गया.

05 जुलाई 2009: रामगढ़ के खोडंभा में हुए मुठभेड़ में मारा गया नक्सली सोमनाथ दा, इंसास बरामद,

29 जुलाई 2018: गोपीकांदर के कछुवाकांदर में हुए मुठभेड़ में दो नक्सली मारे गये, हथियार भी बरामद.

13 जनवरी 2019: 10 लाख का इनामी व पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या में शामिल जोनल कमांडर ताला दा मारा गया.

17 जून 2019: पांच-पांच लाख रुपये की इनामी पीसी दी व किरण ने चार अन्य के साथ किया सरेंडर

24 जनवरी 2020: पांच-पांच लाख का इनामी सबजोनल कमांडर राजेंद्र राय व रिमिल दा समेत तीन ने किया सरेंडर

आज ही के दिन शहीद हुए थे पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार

2 जुलाई 2013 को पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार जब दुमका में पुलिस उप महानिरीक्षक कार्यालय में आहूत एक बैठक के उपरांत काठीकुंड के रास्ते वापस अपने जिला लौट रहे थे, तब घात लगाए नक्सलियों के सशस्त्र दस्ते ने उनके वाहन पर ताबड़तोड़ फायरिंग करनी शुरू कर दी थी. ब्रस्ट फायरिंग की वजह से एसपी बलिहार के पांच अंगरक्षक शहीद हो गये. श्री बलिहार ने इसके बावजूद अंतिम सांस तक मुकाबला किया. लेकिन वे नक्सलियों के सशस्त्र दस्ते से इस कदर घिर चुके थे कि इस घटना में वे शहीद हो गये. दुमका में शहीद अमरजीत बलिहार की स्मृति में शहर में एक सड़क का नामकरण भी किया गया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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