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कोयला लदे 227 वाहनों को सड़क से हटाने की दी गयी अनुमति

पंचुवाड़ा कोल माइंस से दुमका रैक तक कोयला ढुलाई रोकने को लेकर काठीकुंड प्रखंड के चांदनी चौक में चल रहा धरना प्रदर्शन पांचवें दिन भी जारी रहा.

ट्रक एसोसिएशन और ग्रामीणों के बीच हुआ समझौता

प्रतिनिधि, काठीकुंड

पंचुवाड़ा कोल माइंस से दुमका रैक तक कोयला ढुलाई रोकने को लेकर काठीकुंड प्रखंड के चांदनी चौक में चल रहा धरना प्रदर्शन पांचवें दिन भी जारी रहा. इस बीच धरनास्थल पर ट्रक ऑनर एसोसिएशन के प्रतिनिधियों और आंदोलनकारी ग्रामीणों के बीच शिकारीपाड़ा विधायक आलोक कुमार सोरेन व प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति में महत्वपूर्ण वार्ता हुई, जिसका परिणाम लिखित समझौता पत्र के रूप में सामने आया. प्रदर्शनकारियों और ट्रक मालिकों के बीच हुए समझौते के तहत खराब मौसम को देखते हुए कोयला लदे पिछले चार-पांच दिन से फंसे 227 वाहनों को दो दिनों के भीतर सड़क किनारे से हटाने की अनुमति दी गयी, ताकि वाहनों के खराब होने से बचाव हो सके. यह कदम ट्रक मालिकों के अनुरोध और भारी वर्षा के पूर्वानुमान के आधार पर लिया गया. वहीं जब तक आंदोलनकारियों की मुख्य मांगों पर लिखित सहमति नहीं बनती, तब तक कोयला वाहनों का परिचालन बीते पांच दिनों की भांति बंद रहेगा. वार्ता के दौरान एसडीओ दुमका, भूमि सुधार उपसमाहर्ता दुमका, सीओ काठीकुंड, बीडीओ काठीकुंड, थाना प्रभारी काठीकुंड के साथ ही ट्रक ऑनर एसोसिएशन के प्रतिनिधि, ग्राम प्रधान जॉन सोरेन, आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधि सहित धरना प्रदर्शनकारी मौजूद थे.

एसडीओ ने सीएसआर-डीएमएफटी फंड की मांग को पूरा करने को लेकर किया आश्वस्त

धरना स्थल पर अनुमंडल पदाधिकारी कौशल कुमार और एसडीपीओ विजय कुमार महतो दिन में ही पहुंचे थे. उन्होंने प्रदर्शनकारियों से बातचीत करते हुए बताया कि डब्ल्यूपीडीसीएल द्वारा काठीकुंड प्रखंड के विकास के लिए प्रतिवर्ष 100 करोड़ रुपये का सीएसआर फंड और डीएमएफटी फंड से काठीकुंड और शिकारीपाड़ा के लिए 50 करोड़ रुपये प्रति वर्ष आवंटित करवाने की आंदोलनकारियों की मांग पर प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. उन्होंने यह बात लिखित रूप में देने का भरोसा भी जताया. हालांकि, ग्रामीणों का रुख इस पर स्पष्ट रहा. उन्होंने कहा कि जब तक कोल कंपनियों के वरीय प्रबंधन धरनास्थल पर आकर सीधे संवाद नहीं करते और समस्या का ऑनस्पॉट समाधान नहीं होता, तब तक आंदोलन वापस नहीं होगा.डब्ल्यूपीडीसीएल कर्मियों को वापस भेजा, कहा बातें नहीं, समाधान करें

धरनास्थल पर डब्ल्यूपीडीसीएल के कुछ कर्मचारी भी पहुंचे थे. उन्होंने यह कहा कि वे यहां की बातों व मांगों को अपने वरीय अधिकारियों तक पहुंचायेंगे. इस पर आंदोलनकारियों ने त्वरित रूप से तीखी प्रक्रिया दिखाते हुए नाराजगी जतायी. प्रदर्शनकारियों ने दो टूक शब्दों में कहा कि अब केवल संवाद से नहीं, सीधे निर्णय लेने वाला प्रबंधन ही यहां आकर ठोस समाधान प्रस्तुत करे. उन्होंने धरनास्थल पर कंपनी के शीर्ष अधिकारियों की मांग की. मिली जानकारी के मुताबिक शुक्रवार को कंपनी का शीर्ष प्रतिनिधिमंडल आंदोलकारियों से बात करने को धरनास्थल पहुंच सकता है.11 सूत्री मांगों को लेकर आंदोलन पर डटे हैं ग्रामीण

ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया कि यह निर्णय केवल कोयला लदे वाहनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया गया है. लेकिन जब तक सीएसआर, डीएमएफटी फंड और अन्य सामाजिक-आर्थिक मांगों समेत सभी 11 सूत्री मांगों पर कोयला कंपनी के वरीय अधिकारियों द्वारा धरनास्थल पर आकर लिखित व ठोस समाधान प्रस्तुत नहीं किया जाता, तब आंदोलन और कोयला ढुलाई रोक जारी रहेगा.वार्ता के बाद हाइवा मालिकों को मिली राहत

ट्रक एसोसिएशन की ओर से यह मांग की गई थी कि लंबे समय से कोयला लादे खड़े वाहनों में कोयला भरा होने से तकनीकी नुकसान हो रहा है. अब दो दिन के भीतर इन वाहनों को सुरक्षित स्थानों पर हटाया जायेगा, लेकिन वे कोयला खाली करने के बाद दोबारा नहीं चलाए जायेंगे, जब तक पूरी तरह से सहमति नहीं बन जाती. एसोसिएशन ने धरनास्थल पर आंदोलनकारियों को आश्वस्त किया कि जिन मांगों को लेकर वो आंदोलन पर बैठे हैं. जब तक आंदोलनकारियों से सहमति नहीं मिल जाती तब तक वो कोयला लोडिंग में अपनी गाड़ियों को नहीं भेजेंगे. इस तरह से इस आंदोलन को ट्रक एसोसिएशन ने भी अपना समर्थन देने का औपचारिक ऐलान किया.आदिवासी संताल बुद्धिजीवी मंच का समर्थन

आंदोलन को बौद्धिक और सामाजिक समर्थन भी मिलना शुरू हो गया है. गुरुवार को आदिवासी संताल बुद्धिजीवी मंच, दुमका की टीम धरनास्थल पहुंची और आंदोलन को अपना समर्थन दिया. मंच ने इसे सामाजिक न्याय, क्षेत्रीय अधिकार और विकास में हिस्सेदारी की मांग बताया. प्रतिनिधियों ने कहा कि यह आंदोलन केवल कोयले की ढुलाई का नहीं, बल्कि क्षेत्रीय असमानता, पारदर्शिता की कमी और जनहित में आवाज उठाने का प्रतीक बन गया है. बीते दिनों कई सामाजिक संगठन आंदोलन को नैतिक समर्थन दे चुके है. ग्रामीणों का कहना है कि अब यह आंदोलन सिर्फ एक स्थानीय लड़ाई नहीं, बल्कि अधिकार, सम्मान और पारदर्शी विकास की लड़ाई बन चुकी है.

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