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श्रीमद् भागवत दिव्य कल्पतरु है, इसका श्रवण मनुष्य को प्रदान करता है परम पद : साध्वी ब्रजकिशोरी

कथावाचिका साध्वी ब्रजकिशोरी ने शुकदेव मुनि के जन्म, परीक्षित श्राप, अमर कथा, अठारह पुराणों की रचना, देव ऋषि नारद के पूर्व जन्म आदि की कथा का सरस वर्णन किया.

रामगढ़. रामगढ़ के लखनपुर स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचिका साध्वी ब्रजकिशोरी ने शुकदेव मुनि के जन्म, परीक्षित श्राप, अमर कथा, अठारह पुराणों की रचना, देव ऋषि नारद के पूर्व जन्म आदि की कथा का सरस वर्णन किया. उन्होंने कहा कि देवऋषि नारद की प्रेरणा से जगदंबा पार्वती ने भगवान शिव से उनके गले में पड़ी मुंडमाला का रहस्य पूछा. इस पर आशुतोष शिव ने कहा कि मुंडमाला तो पार्वतीजी की ही है. शक्ति स्वरूपा पार्वती के विभिन्न जन्मों में शरीर त्याग के पश्चात उनके मुंड को भगवान शिव माला में पिरो लेते हैं. इसलिए भगवान शिव को मुंडमाला अत्यंत प्रिय है. जब पार्वती ने भगवान से कहा कि उन्होंने तो बहुत बार जन्म लिया लेकिन भगवान शिव के अजर-अमर होने का रहस्य क्या है. इसपर भगवान शिव ने कहा कि उन्होंने अमर कथा का श्रवण किया है. इसके बाद पार्वती ने अमर कथा सुनने की इच्छा प्रकट की. कथा व्यास ने कहा कि पार्वती द्वारा अमर कथा को सुनने की इच्छा प्रकट करने में ही श्रीमद् भागवत के प्रथम वक्ता शुकदेव मुनि के जन्म का रहस्य छुपा है. इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जब भगवान शंकर अमरनाथ की गुफा में जगदंबा पार्वती को अमर कथा सुनाने लगे तो गुफा में उन दोनों के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया. उसी से शुकदेव का प्राकट्य हुआ. कथा सुनते-सुनते पार्वतीजी सो गयीं. लेकिन वह पूरी कथा शुकदेव ने सुनी और अमर हो गए. जब भगवान शंकर को शुकदेव द्वारा अमर कथा के सुन लेने की जानकारी हुई तो वे उन्हें दंडित करने के लिए उद्यत हो गए. भगवान शिव से अपनी रक्षा के लिए भागते हुए भयभीत शुकदेव ऋषि व्यास के आश्रम पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए. 12 वर्ष बाद शुकदेव गर्भ से बाहर आए. इस तरह शुकदेव का जन्म हुआ. कथा व्यास ने बताया कि श्रीमद् भागवत की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बताती है. राजा परीक्षित को मिलने वाले शाप के कारण श्रीमद्भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. उन्होंने कहा कि भागवत शब्द चार अक्षरों से बना है. इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते हैं. इसके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार नारदजी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना आदि का मनोहारी वर्णन कथा व्यास ने किया. उन्होंने कहा कि दुख में ही गोविन्द का दर्शन होता है. जीवन की अन्तिम बेला में पितामह भीष्म के गोपाल का दर्शन करते हुए अद्भुत देह त्याग का वर्णन भी कथा व्यास ने किया. साथ ही राजा परीक्षित को ऋषि पुत्र के शाप तथा राजा परीक्षित के मृत्यु भय को दूर करने के लिए शुकदेव मुनि द्वारा उन्हें श्रीमद् भागवत की कथा सुनाए जाने का वर्णन भी तथा व्यास ने किया.श्रीमद्भागवत को दिव्य कल्पतरु बताते हुए उन्होंने कहा कि यह अर्थ, धर्म, काम के साथ-साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है. श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नहीं प्रभु श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप है. इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये हैं उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मों से बढ़कर है.

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