संवाददाता, दुमका. विश्व रक्तदान दिवस मौके पर युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी की ओर से शनिवार को जिला स्कूल दुमका में स्वैच्छिक रक्तदान जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. रेडक्रॉस सोसाइटी के चेयरमैन डॉ राजकुमार उपाध्याय ने रक्तदान के इतिहास पर चर्चा करते हुए बताया कि पहला ब्लड बैंक 1936 में स्पेन के बेसून में स्थापित किया गया. जबकि 1962 में भारत में पहला रक्तदान शिविर कोलकाता के यादवपुर विश्वविद्यालय में लगाया गया. रक्त में 55 प्रतिशत प्लाज्मा और 45 प्रतिशत डब्ल्यूबीसी, आरबीसी व प्लेटलेट्स होता है. पुरुष के शरीर में 76 एमएल प्रति किलोग्राम और महिला के शरीर में 66 एमएल प्रति किलोग्राम रक्त होता है. भारतीय रेडक्रॉस सोसाइटी के सचिव अमरेन्द्र कुमार यादव ने बताया कि सूई या खून देखने से डर के कारण भी लोग रक्तदान नहीं करते हैं. जरूरत के समय यदि खून नहीं मिलता है, तब जाकर लोगों को इसका महत्व समझ में आता है. रक्तदान करने से नये सेल्स बनते हैं. कोलेस्ट्रॉल और कार्बन डाई आक्साइड शरीर से निकल जाता है, जबकि ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है. नियमित रूप से रक्तदान करनेवालों को दिल संबंधी बीमारी नहीं होती. रक्तदान के तीन दिनों के अंदर 55 प्रतिशत प्लाज्मा की भरपाई हो जाती है, जबकि 14 से 21 दिनों में ब्लड सेल भी रिकवर हो जाता है. उन्होंने कहा कि सुगर के मरीज भी रक्तदान कर सकते हैं बशर्ते कि उसने 72 घंटे के अंदर दवा नहीं ली हो और हीमोग्लोबिन का स्तर 12.6 से अधिक हो. उन्होंने कहा कि सोसाइटी का प्रयास रहता है कि लोग रक्तदान के महत्व को समझें और नियमित रूप से रक्तदान शिविर लगे ताकि ब्लड बैंक में रक्त की उपलब्धता बनी रहे और रक्त के अभाव में किसी की जान नहीं जाए. उन्होंने छात्र एवं युवाओं से स्वैच्छिक रक्तदान करने के लिए आगे आने की अपील की. सोसाइटी के संयुक्त सचिव धर्मेंद्र सिंह बिट्टू ने कहा कि 18 में 65 आयु वर्ग का व्यक्ति जिसका वजन 45 किलो से अधिक हो और हीमोग्लोबिन 12.5 से अधिक हो, साल में तीन से चार बार रक्तदान कर सकता है. रक्तदान के बाद किसी भी तरह के परहेज की जरूरत नहीं होती है. मौके पर संयुक्त सचिव सिकन्दर कुमार भी मौजूद रहे. कार्यक्रम का संचालन शिक्षक दिलीप झा ने व अध्यक्षता प्राचार्य महेंद्र राजहंस ने की. धन्यवाद ज्ञापन सोसाइटी के कोषाध्यक्ष अंजनी शरण ने किया.
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